अपनों से अपनी बात-2 - अंतिम चरण सामने है, अब क्या करना है?

January 2001

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इस युग वसंत को गरिमामय ढंग से संपन्न करें

एक विराट् धर्मानुष्ठान की महापूर्णाहुति के चौथे चरण में सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ संपन्न हुआ। इस दौरान 7 से 11 नवंबर 2000 की अवधि में चले इस प्रयोग में प्रतिदिन आहुतियाँ उन सृजन संकल्पों के साथ दी गईं, जिनके लिए पूरे वर्षभर वातावरण बनाया गया था। असंख्यों व्यक्तियों ने यूप में बँधकर युग-प्रव्रज्या हेतु स्वयं को संकल्पित किया। न्यूनतम समयदान से लेकर संपूर्ण जीवनदान तक के संकल्प, सातों आँदोलनों को गति देने एवं देवसंस्कृति के विश्वविद्यालय स्तर की अनुपम स्थापना के निमित्त लिए गए हैं। साधनदान के संकल्प में अंशदान की बढ़ोत्तरी से लेकर इस भागीरथी प्रयास में, ज्ञानयज्ञ की प्रक्रिया को विस्तार देने तथा विश्वविद्यालय निर्माण हेतु साधन एकत्र करने के भी ढेरों संकल्प आए हैं। साधना में भागीदारी के संकल्प में ढेरों व्यक्तियों ने अपनी जीवन-साधना को और अधिक प्रखर करने, स्वयं को युगनायक के स्तर पर निखारने, अपनी साधना में उच्चस्तरीय सोपानों से जुड़ने के संकल्प लिए हैं। सब मिलाकर महापूर्णाहुति वर्ष उपलब्धियों से भरा रहा है।

यह युग वसंत है

अब 29 जनवरी 2001 के रूप में अंतिम चरण सामने है। यह युग वसंत युग है, जिसे इक्कीसवीं सदी रूपी अरुणोदय की अगवानी करने वाला कह सकते हैं। वसंत पंचमी परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म दिवस है। गायत्री परिवार, युग निर्माण मिशन इसी दिन अपना वार्षिकोत्सव मनाता है। शीत की ठिठुरन-कंपन में वासंती उल्लास एक नूतन प्रेरणा का संचार करता है, किंतु यह युग वसंत तो और भी विशिष्ट है। यह युगचेतना के अभ्युदय की हीरक जयंती (पिचहत्तरवें वर्ष) की वेला में आया है। पाठकों-परिजनों को ज्ञात होगा कि आज से 75 वर्ष पूर्व 1926 में वह ऐतिहासिक वसंत आया था, जब परमपूज्य गुरुदेव ने अपने दीपक की ज्योति में अपने गुरुदेव (सूक्ष्मशरीरधारी दादागुरु) के प्रथम दर्शन किए थे। उनका शक्तिपात पाया था। वही दीपक जो 18 जनवरी वसंत पर्व के दिन जला था, उसी अखण्ड अग्नि के रूप में अपनी पिचहत्तर वर्ष की यात्रा पूरी कर ढेरों उपलब्धियों के साथ अब 29 जनवरी 2001 की वसंत वेला में आ पहुँचा है। यही हमारे मिशन के जन्म से अब तक का गौरवमय इतिहास है, जो इक्कीसवीं सदी की सुदृढ़ नींव बनाने जा रहा है।

युगचेतना के अभ्युदय की हीरक जयंती

दो विशिष्ट सुयोग और इस 2001 वें वर्ष के साथ जुड़े हैं। एक अखण्ड दीपक के साथ-साथ शक्तिस्वरूपा स्नेहसलिला परमवंदनीया माताजी की जीवनयात्रा के 75 वर्ष भी पूरे होना। 1926 में ही आश्विन कृष्ण चतुर्थी की पावन वेला में आगरा नगर में श्री जसवंत बोहरे जी के परिवार में माता भगवती देवी ने जन्म लिया था। दूसरा सुयोग है श्री अरविंद (पाँडिचेरी) ने इसी वर्ष भागवत् चेतना के धरती पर अवतरण का वर्ष घोषित किया था, आज से 75 वर्ष पूर्व। अवतारों के लीला-संदोह को न समझ पाने वाले इन सुयोगों को मात्र संयोग कह देते हैं, पर यह एक विलक्षण एवं स्थापित तथ्य है कि यह युगचेतना के धरती पर अभ्युदय का हीरक जयंती वर्ष है एवं अब सतयुगी उल्लास के धरती पर प्रकट होने की प्रक्रिया को कोई भी न रोक सकेगा। गायत्री परिवार की ज्ञान मशाल इसी दिव्य ज्योति की प्रतीक है।

संगठनात्मक अनोखा एवं न्यूनतम कार्यक्रम

इस वर्ष जनवरी माह के प्रथम सप्ताह से ही एक विशिष्ट संपर्क-परामर्श शिक्षण की प्रक्रिया भारत के चुने हुए शक्तिपीठों में शाँतिकुँज के प्राणवान् कार्यकर्त्ताओं द्वारा आरंभ कर दी गई है। यह अंक पहुँचने तक विभिन्न शक्तिपीठों में टोलियाँ पहुँच चुकी होंगी एवं छह चक्रों में वे एक से डेढ़ दिवस के कार्यक्रमों में गहन संपर्क एवं सातों आँदोलनों की कार्य-योजना पर विचार-विमर्श कर रही होंगी। इनका वसंत पूर्व समापन होने तक फरवरी माह से आरंभ होने वाले प्रतिभा-परिष्कार सत्रों के लिए क्षेत्र की विभूतियों का सुनियोजन भी हो चुका होगा। किन-किन ने किन आँदोलनों को हाथ में लिया है एवं कैसे वे उस केंद्रीय शक्तिपीठ को संगठन की धुरी बनाकर अपने-अपने क्षेत्र में क्रियान्वित करेंगे, यह सब प्रशिक्षण पूरे जनवरी माह क्षेत्रों में चलेगा। न्यूनतम तीन कार्यक्रम तो हर परिजन, समयदानी, संगठन स्तर के युगनायक, प्रज्ञामंडलों, प्रज्ञापीठों से जुड़े परिजनों, अखण्ड ज्योति पाठकों-परिजनों के लिए दिए जा रहे हैं। ये हैं (1) जीवन-साधना को और अधिक प्रखर बनाना (2) नारी जाग्रति आँदोलन द्वारा परिवार निर्माण की प्रक्रिया को गतिशील बनाना (3) ग्रामतीर्थ योजना द्वारा समाज निर्माण में भागीदारी करना। सभी जानते हैं कि ग्रामतीर्थ से अर्थ है व्यसन मुक्त, स्वच्छ, संस्कारी, स्वस्थ, शिक्षित, सहकारी, स्वावलंबी ग्राम। सातों आँदोलनों में से जो-जो परिजन जो भी कुछ अतिरिक्त कर रहे हैं, वे करते रहें, पर साथ ही ये तीनों अनिवार्य क्रम में जोड़ लें। ध्यान रखें कि बिना साधनात्मक-आध्यात्मिक आधार के कोई भी सामाजिक, बौद्धिक आँदोलन सफल नहीं होता। आस्तिकता विस्तार एवं जीवन-साधना का दैनंदिन प्रखरतम अभ्यास ही वह धुरी है, जिस पर संगठन, क्राँति या आँदोलन की सफलता निर्भर है।

शाँतिकुँज से आ रही टोलियों के साथ परिजन, यदि अभी तक अपने क्षेत्र के संगठन की रूपरेखा, आँदोलनों को चलाने की रणनीति आदि विस्तृत विवरण न भेज पाए हों तो भेज दें। सभी आँकड़े यहाँ कंप्यूटर में डालकर पूरे राष्ट्र व विश्व के संगठन का एक समग्र ढाँचा खड़ा किया जा रहा है। अपने-अपने क्षेत्र की विभूतियों के नियोजन हेतु क्या योजना बनी, नहीं बनी, तो क्या व कैसे बनाने जा रहे हैं, यह भी विस्तार से सभी लिखकर भेज दें।

वसंत पर्व इस तरह मने

इस वर्ष की वसंत पंचमी इक्कीसवीं सदी की अगवानी ने निमित्त ठीक वैसे ही संपन्न होगी जैसी कि विगत वर्ष 10 फरवरी 2000 को सबके लिए निर्मल मन-सभ्य समाज के विकास की सद्भाव भरी प्रार्थना के रूप में संपन्न हुई थी। साथ ही विद्यावरण के संकल्प भी इसी के साथ विभिन्न प्रज्ञा संस्थानों, अन्याय संगठनों द्वारा इसी दिन लिए गए थे। प्रस्तुत वसंत जो 29 फरवरी 2001 सोमवार के दिन आ रहा है, राष्ट्र और विश्व की सभी इकाइयों द्वारा उसी भाव के साथ सभी संप्रदाय-वर्गों के लोगों के साथ मिलकर एक साथ संपन्न होगा। इक्कीसवीं सदी जो उज्ज्वल भविष्य लेकर आ रही है, की आरती इस तरह मात्र जलते दीपों द्वारा नहीं, अपने क्षेत्र के ज्योतित संकल्पों के साथ संपन्न होगी।

वसंत की पूर्व संध्या पर प्रत्येक इकाई अपनी सुविधानुसार अखण्ड जप का 12 या 14 घंटे का कार्यक्रम चलाएगी। न्यूनतम आधा घंटा तो सभी इस प्रक्रिया में बैठें ही। पर्व दिन प्रातः 6 से 8 तक सामूहिक जप के साथ ध्यान-धारणा का साधना प्रयोग चलेगा। यह विगत वर्ष भेजे गए ऑडियो कैसेट्स द्वारा संपन्न होगा। पूर्वाह्न 8 से 11.30 तक पर्वपूजन, पूज्य गुरुदेव का जन्म दिवस-गुरु पूजन, सरस्वती पूजन, यज्ञ आदि का क्रम, साथ ही विद्यालयों में सरस्वती पूजन के साथ विद्यावरण के संकल्प संपन्न हों। शाम 7 8.30 तक सायंकालीन कार्यक्रम सामूहिक प्रार्थना प्रयोग के रूप में सभी स्थानों पर मनाए जाएँ, किंतु इससे पूर्व शाम 5 से 6.30 की अवधि में एक प्रचार आमंत्रण यात्रा सभी स्थानों पर निकाली जाए। यह आयोजन भव्य-खर्चीला भले न हो, प्रभावी अवश्य हो। इस क्षेत्र के आम लोगों को कार्यक्रम की जानकारी देना, प्रेरणा देकर आमंत्रण देना इसका मुख्य उद्देश्य होगा। बैनर्स, प्रचार पट्टियों, प्रेरक नारों, कीर्तन व झाँकियों के साथ प्रेरणा का प्रसार हो। आगे मंगल कलश लेकर कुछ देवियाँ चलें। इस यात्रा के पहुँचते ही युग संगीत एवं शाम के कार्यक्रम की व्यवस्था का क्रम चल पड़े।

सायंकालीन कार्यक्रम

इसमें सभी संगठनों को आमंत्रित किया जाए। यदि वे अपने स्तर पर करना चाहें, तो सभी से प्रार्थना की जाए कि इस पावन दिन एक साथ एक समय पर न्यूनतम 7.30 से 8 की अवधि में सभी ‘सबके लिए सद्बुद्धि सबके लिए उज्ज्वल भविष्य’ की प्रार्थना करें। विभिन्न संगठन, संप्रदाय अपनी-अपनी उपासना पद्धति से यह क्रम संपन्न कर सकते हैं। जो पारिवारिक-व्यक्तिगत स्तर पर करना चाहते हैं, वे भी न्यूनतम इस आधे घंटे की अवधि को दीप प्रज्वलित कर जप-प्रार्थना द्वारा संपन्न करें, यह प्रेरणा दी जाए। इक्कीसवीं सदी की अगवानी की यह आरती हर दरवाजे पर, हर उपासना गृह में न्यूनतम पाँच दीपों द्वारा अवश्य उतारी जाए।

जहाँ सामूहिक कार्यक्रम गायत्री परिवार की संगठित इकाई, प्रज्ञा संस्थानों, शक्तिपीठों द्वारा संपन्न हो रहे हैं, वहाँ क्रम कुछ इस तरह रहे- शाम 7 से 7.30 आयोजन के महत्त्व, महापूर्णाहुति की अब तक की उपलब्धियों व गुरुसत्ता के जीवन-दर्शन पर उद्बोधन। 7.30 से 8 देव आह्वान, दीप प्रज्वलन, सामूहिक सस्वर मंत्रोच्चारण, मौन प्रार्थना (जप-ध्यान)। 8 से 8.30 महापूर्णाहुति के इस पाँचवे चरण का अनुयाज-युगचेतना के अभ्युदय की हीरक जयंती की रूपरेखा, सातों आँदोलनों का स्वरूप, क्रिया-योजना पर उद्बोधन। 7.30 से 8 जब जप-ध्यान-मौन प्रार्थना का स्वरूप चले, तब सभी के मन में भाव कुछ इस प्रकार रहें, “हे प्रभु! हमारे मन निर्मल बनें। मन की निर्मलता हमें सद्भाव भरे सहकार की ओर ले जाए, जिससे हमारे संगठन में युगशक्ति का प्रखर प्राणवान् स्वरूप उभरकर आए। हम नवसृजन के इस महायज्ञ में भागीदारी कर सकें।”

विद्यालयों में विद्यावरण संकल्प

माँ सरस्वती के अवतरण के इस पावन दिन गायत्री मिशन से जुड़े-प्रभावित सभी विद्यालयों में विद्यावरण संकल्प का क्रम चले। भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के क्रम में विगत दिनों लाखों भाई-बहन, छात्र-छात्राएँ सक्रिय हुए हैं। संक्षिप्त गीत, संक्षिप्त पूजन, शिक्षा-विद्या के अंतर को समझाते हुए इस दिन की महत्ता संबंधी उद्बोधन एवं अंत में विद्यावरण संकल्प यह क्रम चले। संकल्प के पुष्प बच्चों से एकत्र कराके माँ सरस्वती की प्रतिमा पर समर्पित हों। संकल्प का भाव इस प्रकार हो, “महाविद्या के अवतरण के इस पावन पर्व पर विद्या के विनम्र साधक के रूप में हम संकल्प लेते हैं कि लौकिक जीवन को सँवारने वाली शिक्षा के साथ, जीवन को पूर्णता तक पहुँचाने वाली विद्या को हम जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग मानकर अपनाएँगे। इसका स्वयं नियमित अभ्यास करेंगे।” इसी के साथ संस्कृति मंडलों की स्थापना संबंधी संकल्प भी लिए जा सकते हैं। इस तरह प्रस्तुत वसंत पंचमी का पावन पर्व पूरे भारतवर्ष में नई सहस्राब्दी के स्वागत आरती उतारने के क्रम में परिपूर्ण उल्लास के साथ मनाया जाए।


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