प्रकाशपूर्ण जीवन (kahani)

January 2001

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एक दिन, दो दिन और लगातार कई दिन तक भी रात-रात भर सितारों की गिनती करते देखकर आखिर एक दिन माँ ने अपने बच्चे से पूछ ही लिया, बेटे! तुम रात भर आकाश की ओर मुँह किए क्या गिना करते हो? आकाश के सितारे माँ! बहुत प्रयत्न करता हूँ, किंतु आकाश इतना विराट् और नक्षत्र इतने अधिक हैं कि वे गिनने में नहीं आते। माँ ने थपकी दी और बोली, बेटा! देर हो गई, तू सो जा, यह सितारे गिनने को नहीं वरन् इसलिए बनाए गए हैं कि लोग उन्हें देखकर स्वयं भी प्रकाशपूर्ण जीवन जीना सीखें।


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