VigyapanSuchana

January 2001

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सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ का पूरा विस्तृत विवरण प्रज्ञा अभियान पाक्षिक के बीस पृष्ठ के विशेषाँक (1-12-2000) तथा ‘महापूर्णाहुति’ नामक स्मारिका में प्रकाशित हुआ है। इस एवं विगत अंक में तो मात्र कुछ झलकियाँ ही दी गई हैं। जिन्हें विस्तार से पढ़ना हो, वे स्मारिका (विमोचन 29-1-2001 वसंत पंचमी के दिन) सुरक्षित करा लें। बिना पोस्टेज के मूल्य है पच्चीस रुपया।

पूरा पूजनक्रम आश्वमेधिक ढंग से चला। देवमंच पर प्रथम दिन का पूरा यज्ञ विशिष्ट आहुतियों के साथ डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं शैलजीजी द्वारा किया गया। बाद में इसी अग्नि को 1501 कुँडों में विधिवत् विस्तार दे दिया गया, जिनमें अगले चार दिनों तक यज्ञ संपन्न हुआ।

ज्ञानमंच, दीपयज्ञ, विचारमंच

देवपूजन वाले दिन से ही ज्ञानमंच से उद्बोधन एवं प्रतिदिन दीपयज्ञ का क्रम आरंभ हो गया, साथ ही रोड़ी बेलवाला में बने विचारमंच का भी उद्घाटन देवपूजन के तुरंत बाद परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के मुनि श्री चिदानंद सरस्वती द्वारा दीप प्रज्वलन एवं श्रीमती अनीता स्नातिका द्वारा वेदवाणी-सरस्वती वंदना द्वारा किया गया। विचार मंच का विशाल पंडाल एक ओर हर की पौड़ी तथा दूसरी ओर गंगा की पावन धारा के बीच बनाया। उद्घाटन उद्बोधन में मनीषी श्री वीरेश्वर उपाध्याय जी डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं कई चिंतक-विचारक उपस्थित थे। मुनि जी ने परमपूज्य गुरुदेव द्वारा लगाए गए ज्ञानबीज का विस्तार देख अपनी हर्षाभिव्यक्ति प्रस्तुत की। कहा कि एक संत कैसे हजारों चलते-फिरते तीर्थ बना देता है, उसका नमूना है यह गायत्री परिवार। अगले दिन 8 नवंबर से 10 नवंबर सायं तक प्रातः 10 से 12 एवं अपराह्न 2 से 4 व कभी-कभी दिनभर यह विचारमंच सक्रिय रहा एवं विशिष्ट विभूतियाँ उसमें आती रहीं, अपने विचारों से खचाखच भरे विशाल सभागार को लाभान्वित करती रहीं।

विचारमंच पर वर्तमान संदर्भ में सामाजिक क्राँति के सशक्त आधार, आपदारहित विकास के आदर्श प्रारूप, शिक्षा एवं स्वावलंबन आँदोलन, नारी जागरण आँदोलन एवं सप्तसूत्री कार्यक्रम एवं समाज का पुनर्निर्माण जैसे विषयों पर विभिन्न वक्ताओं के उद्बोधन हुए। विशिष्ट वक्ताओं में डॉ. धर्मपाल (कुलपति गुरुकुल काँगड़ी), श्री जगदीशचंद्र पंत (पूर्व कृषि एवं स्वास्थ्य सचिव, ऋचा प्रमुख) श्री राजनाथ सिंह (मुख्यमंत्री उ.प्र.),श्री मुरली मनोहर जोशी (मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार), उ.प्र. के मंत्रीगण श्री धनराज यादव, वीरेंद्र सिंह आदि, भारत सरकार के मंत्रीगण रमेश बैस, डा. कंथेरिया, समन्वय परिवार के प्रमुख स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी महाराज, श्री देवेंद्र स्वरूप (चिंतक-विचारक-स्तंभकार), श्री भरत झुनझुनवाला, श्री चंद्रशेखर प्राण, डॉ. वी. कुमार आदि थे। इ समंच के संचालन में श्री वीरेश्वर जी उपाध्याय के साथ श्री कर्मयोगी जी, डॉ. एस.पी. मिश्र, श्री ए.एस. अवस्थी (रजिस्ट्रार, इंद्रप्रस्थ वि.वि.) आदि की विशिष्ट भूमिका रही। समय-समय पर विशिष्ट अतिथियों के साथ डॉ. प्रणव पण्ड्या भी पहुँचे व अपने विचार व्यक्त किए।

ज्ञानमंच पर प्रतिदिन सायं 5.30 से 8.30 तक 7,8,9,10 तारीखों में उद्बोधक मार्गदर्शन दिए गए एवं दीपयज्ञ का क्रम चलता रहा। यहाँ से डॉ. प्रणव पण्ड्या, श्रीमती शैलबाला पण्ड्या, गायत्री तपोभूमि के प्रमुख पंडित श्री लीलापत जी शर्मा एवं श्री वीरेश्वर उपाध्याय के ओजस्वी उद्बोधन प्रसारित हुए। सभी के उद्बोधनों की धुरी एक ही थी, घर-घर में गायत्री यज्ञ पहुँचे, महाकाल के विराट् रूप को सभी पहचानें, युग-परिवर्तन की पदचाप सुनें तथा सप्त आँदोलनों हेतु अपने संकल्प सक्रियता में बदलें। ज्ञानमंच की विशेषता जहाँ नौ नवंबर की संध्या पंडित लीलापत जी का ओजस्वी प्रायः डेढ़ घंटे चला उद्बोधन रहा, वहाँ आठ नवंबर की संध्या महामहिम पं. विष्णुकाँत शास्त्री (राज्यपाल उ.प्र.) का सारगर्भित प्रेरक व्याख्यान रहा। प्रतिदिन दीपयज्ञ भाइयों व ब्रह्मवादिनी बहनों की समन्वित टोलियों ने कराया। गंगा किनारे बने ज्ञानमंच पर प्रकाशित दीपकों, सुँदर क्यारियों में सजाए प्रज्वलित दीपों ने प्रतिदिन दीपोत्सव का सा दृश्य प्रस्तुत किया। प्रेरक युगगायन ने वातावरण को दिव्य बना दिया।

सृजन संकल्प सहित आहुतियाँ यज्ञशाला में

यज्ञाहुतियों का क्रम नियमित चला। हर पारी में पूर्णाहुति कराई गई। एक बार में प्रायः पच्चीस हजार से अधिक याजक यज्ञ संपन्न करते रहे। पुरुषमेध प्रयोग के अंतर्गत सविता देवता के निमित्त विशेष आहुतियाँ व्यष्टि पुरुष, राष्ट्र पुरुष तथा विराट् पुरुष हेतु भी दी गईं। सौत्रामणी के अंतर्गत त्रिदेवों के लिए आहुतियाँ तथा मौन ताँत्रिक आहुतियों के समय वातावरण ही विलक्षण होता था। एक पारी यज्ञ संसद के भाइयों द्वारा तथा दूसरी पारी ब्रह्मवादिनी बहनों द्वारा कराई जाती रही। यह क्रम चारों दिन चला। प्रायः तीस लाख से अधिक परिजन आहुतियाँ देकर जाते रहे। यूप बंधन में बँधे पुरुषमेध प्रव्रज्या संकल्प वाले परिजनों का दृश्य देख सभी गदगद थे। यज्ञमंच के साथ ही संस्कार मंच पर भी विभिन्न संस्कार संपन्न होते रहे। प्रतिदिन मंत्रदीक्षा भी दोनों स्थान पर दी गई।

समापन पर कुछ विशिष्ट

इतना बड़ा आयोजन जिस दैवी चेतना ने सँभाल रखा था, उसकी कण-कण में उपस्थिति सभी ने अनुभव की।

देव विसर्जन (11 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा) वाले दिन वातावरण भाव संवेदना से ओत−प्रोत था। सभी देवताओं को विदाई दी गई।

दूर-दूर से आए प्रवासी भारतीय एवं कोने-कोने से आए परिजनों ने कुछ विशिष्ट एकात्मा का भाव अनुभव किया। सभी के शारीरिक कष्ट मानो इन दिनों मिट गए।

समापन के तुरंत बाद पंद्रह दिन तक पूरे क्षेत्र की सफाई का क्रम श्री गौरीशंकर जी के मार्गदर्शन में चला। सामूहिक श्रमदान का विलक्षण दृश्य था यह।

8 दिसंबर को आभार ज्ञापन समारोह में आए सभी अधिकारीगण, पत्रकार बंधु, होटल-धर्मशाला संघों के प्रमुख व स्थानीय गणमान्य नागरिकगण हमारा आभार स्वीकार करने के स्थान पर उलटे शाँतिकुँज को इस महायज्ञ हेतु भावभरा धन्यवाद देकर गए।


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