आत्म-कल्याण (Kahani)

December 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक व्यक्ति अपने चार बच्चों को अनाथ-छोड़कर ही एक रात्रि घर से भाग निकला, आत्म-कल्याण के लिए। किसी सन्त के पास जाकर वह भगवत् प्राप्ति का उपाय पूछने लगा। उस व्यक्ति ने अपने त्याग की कहानी सुनाते हुए यों कहा-

“मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एकाएक बच्चा चीखा, तो मुझे लगा अब पत्नी जाग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा, पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया, और बच्चा चुप हो गया। मैं चुपचाप निकल आया। महात्मन्! अब संसार की मोह-माया में फँसना नहीं चाहता।”

साधु बोले-मूर्ख! दो भगवान् तो तेरे घर में ही बैठे हैं, जिन्हें तू छोड़ आया। जा, जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं होगा। पहले परिवार को सँभाल, अपने कर्तव्यों को पूरा कर, फिर सोचना कि पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए तेरा आत्म-कल्याण का लक्ष्य पूरा हुआ या नहीं? अध्यात्म भगोड़ों का नहीं, शूरवीरों का साथ देता है। परिवार में रहते हुए भी, तेरी साधना पूरी होती रह सकती है। त्याग करना ही है, तो अंतः के विकारों एवं भ्रम जंजालों का कर।” व्यक्ति ने वास्तविकता समझी एवं लौट पड़ा अपने घर को-अपनी व्यवहारिक साधना की पूर्ति हेतु।

इसी तरह शिखिध्वज को यथार्थता का बोध हुआ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118