काश! मनुष्य “जीवन देवता” के स्वरूप को समझ पाता

December 1995

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

मनुष्य जीवन ईश्वरीय सत्ता की एक बहुमूल्य धरोहर है, जिसे सौंपते समय उसकी सत्पात्रता पर विश्वास कर ही, उसे यह दिया गया मनुष्य के साथ और जीवधारियों की तुलना में यह कोई पक्षपात नहीं है, वरन् ऊँचे अनुदान देने के लिए यह एक प्रयोग परीक्षण मात्र है। अन्य जीवधारी शरीर भर की बात सोचते और क्रिया करते हैं, किन्तु मनुष्य को स्रष्टा का उत्तराधिकारी युवराज होने के नाते अनेकानेक कर्तव्य और उत्तरदायित्व निबाहने पड़ते हैं। उसी में उसकी गरिमा और सार्थकता है। यदि पेट-प्रजनन तक, लोभ-मोह के साथ अहंकार और जुड़ जाने पर तो बात और भी अधिक बिगड़ती है। महत्त्वाकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए उभरी अहमन्यता अनेकों प्रकार के कुचक्र रचती और पतन-पराभव के गर्त्त में गिरती है। अहंता से प्रेरित व्यक्ति अनाचारी बनता है और आभ्रमक इन्द्र भी। ऐसी दशा में उसका स्वरूप और भी भयंकर हो जाता है। दुष्ट-दुरात्मा एवं नरपिशाच स्तर की आसुरी गतिविधियाँ अपनाता है। इस प्रकार मनुष्य जीवन जहाँ श्रेष्ठ सौभाग्य का प्रतीक था, वहाँ वह दुर्भाग्य और दुर्गति का कारण ही बनता है। उसी को कहते हैं वरदान को अभिशाप बना लेना। दोनों ही दिशाएँ हर किसी के लिए खुली हैं। जो इनमें से जिसे चाहता है, उसे चुन लेता है। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप जो है।

मनुष्य ने अपने लिए इष्ट-उपास्य भी बहुत से चुन रखे हैं। किन्तु यदि वह एक ही देवता-इष्ट-उपास्य जीवन देवता की अभ्यर्थना सही रूप में कर ले तो इस कल्पवृक्ष के नीचे वह सब कुछ उसे प्राप्त हो सकता है जिसकी कहीं अन्यत्र संप्राप्त होने की आशा लगायी जाती है। जीवन देवता को परिष्कृत आत्मा या परमात्मा की अनुकृति भी कह सकते हैं। परब्रह्म की सारी क्षमताएँ ऋद्धि-सिद्धियाँ इस काय-कलेवर में समाई हैं। यदि उन्हें जगाया जा सके तो मनुष्य योगी, ऋषि मनीषी, महापुरुष, सिद्ध पुरुष जैसी विभूतियों से सम्पन्न हो सकता है। इस जीवन देवता की साधना से मनुष्य को सभी महासिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। कस्तूरी के हिरण की तरह मनुष्य अपने आप को महानता के मूल केन्द्र नाभिक को बाहर खोजता फिरता है। एक बार वह अपने भीतर झाँक कर उसे अपने अंतःकरण में देख ले तो उसे इस इष्ट सत्ता का दिव्य दर्शन हो जाएगा जो उसे महानता की श्रेष्ठतम ऊँचाइयों तक ले जा सकता है। जिस दिन यह हो जाता है, उस दिन मनुष्य के सौभाग्य का द्वार खुल जाता है। इसी दिन की प्रतीक्षा सतत् भगवान को भी बनी हुई है।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118