दुराग्रही न बनें, समझदारी अपनाएँ

December 1995

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दृष्टि जब संकुचित हो, तो उससे उपलब्ध होने वाली जानकारी भी अर्धसत्य स्तर की ही होती है। इसके विपरीत व्यापक दृष्टिकोण वस्तुस्थिति का समग्र और सही जानकारी देता है। फुटबाल के ऊपर रेंगने वाली पिपीलिका यही सोच कर सदा हर्षित होती रहती है कि वह इस संसार की अकेली स्वामिनी है। इससे परे भी कुछ विस्तृत और विशाल हो सकता है-इसकी वह कल्पना तक नहीं कर सकती। कुएँ में रहने वाले मेंढ़कों का भी यही हाल है। वह सम्पूर्ण जगत को उसी में समाया अनुभव करते हैं।

यह चिन्तन की कूपमण्डूकता है। सीमाबद्धता और पूर्वाग्रही दृष्टिकोण भी इसी को कहते हैं। मनुष्य जब अपने चिंतन को सीमाबद्ध बनाता है, तो वास्तविकता के सन्दर्भ में उसकी भी स्थिति मेढ़कों जैसी हो जाती है। फिर जो सामने और प्रत्यक्ष है, उसी को सर्वोपरि सत्य मानने की भूल करने लगता है। वस्तुस्थिति का भान तो तभी हो पाता है, जब मस्तिष्क को खुला और दृष्टिकोण को व्यापक रखा जाता है। तभी यह ज्ञात हो पाता है कि सच्चाई के सम्बन्ध में अपनी जो मान्यता थी, वह कितनी एकांगी, अपूर्ण और भ्रामक थी। यह सम्भव है कि किसी परिस्थिति, वातावरण, देश व काल विशेष में कोई अवधारणा सच जैसी प्रतीत हो सकती है, पर सर्वोपरि और सनातन सत्य यही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। बदली परिस्थितियों में तथ्य भी बदल सकता है। उदाहरणार्थ गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सापेक्ष वस्तुओं के वचन को लिया जा सकता है। यह भार हर स्थान पर स्थिर नहीं होता। आकर्षण शक्ति में न्यूनाधिकता के आधार पर यह बदलता रहता है।

ध्यान देने योग्य तो ये है कि गुरुत्वाकर्षण बल द्रव्यमान, दूरी और घनत्व के हिसाब से बदलता रहता है। इस आधार पर पृथ्वी पर भी किसी एक वस्तु का भार सदा स्थिर नहीं होता, अपितु सदा परिवर्तित होता रहता है। उसके केन्द्र में चूँकि आकर्षण शक्ति शून्य होती है, अतः प्रत्येक वस्तु का वजन वहाँ शून्य होगा। यदि किसी प्रकार वहाँ पहुँचना सम्भव हो सके, तो मनुष्य स्वयं वहाँ भारहीनता जैसी स्थिति अनुभव करेगा। इसी प्रकार पृथ्वी सतह से जैसे-जैसे ऊपर उठा जायेगा अर्थात् पृथ्वी केन्द्र से ज्यों-ज्यों व्यक्ति अथवा वस्तु की दूरी बढ़ती जायेगी भार में तदनुरूप न्यूनता भी परिलक्षित होने लगेगी। इस आधार पर समुद्र सतह पर वस्तुओं का भार सर्वाधिक होता है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण शक्ति वहाँ अधिकतम होती है, जबकि पहाड़ की चोटियों पर उसके कम होने के कारण वजन में भी कमी आ जाती है। ऊपर उठते-उठते पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बाहर निकल जाने पर एक बार पुनः भारहीनता की स्थिति पैदा होती है। अन्तरिक्ष यात्रियों को इसी मुश्किल का सामना करना पड़ता है। उन्हें इससे छुटकारा दिलाने के लिए पृथ्वी में ही कृत्रिम रूप से शून्य गुरुत्व उत्पन्न करके उस वातावरण में अभ्यस्त बनाया जाता है।

गुरुत्व-बल के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पृथ्वी पर भारी लगने वाले पदार्थ दूसरे खगोलीय पिण्डों पर उससे भी हल्का अथवा वजनदार बन सकते हैं। यदि उक्त आकाशीय पिण्ड की आकर्षण शक्ति पृथ्वी की तुलना में कम है, तो वहाँ वस्तुएँ पृथ्वी से अपेक्षाकृत हलकी लगेंगी, जबकि विपरीत दशा में भारी। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति पृथ्वी पर एक क्विंटल वजन उठा कर आसानी से चल सकता है। तो चन्द्रमा की धरती पर उसे लेकर वह दौड़ सकता है, क्योंकि उसका आकर्षण बल पृथ्वी के वस्तुओं का वजन वहाँ छः अंशों में कम हो जायेगा। धरती पर एक क्विंटल भार चन्द्र तल पर 17 किलो के लगभग होगा। सूर्य चूँकि पृथ्वी से करीब 30 गुना बड़ा है, अतः कोई व्यक्ति किसी प्रकार वहाँ चला भी जाय और धधकती आग से किसी तरह सुरक्षित भी बच जाये तो कि नितांत असम्भव है तो भी वह वहाँ की धरती पर किसी भाँति जीवित न रह सकेगा और अपने ही भार से दब कर मर जायेगा। मंगल, बुध ग्रहों पर आकर्षण बल कम है, तदनुरूप वजन भी कम होगा जबकि बृहस्पति का अधिक बल होने के कारण वहाँ खड़ा होना और चल पाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होगा। पृथ्वी पर किसी 30 फुट वाले असाधारण ऊँचाई के व्यक्ति का चल फिर पाना समस्या मूलक हो सकता है, पर चन्द्रमा पर उसकी समस्या समाप्त हो जायेगी। हाइट ड्वार्फ में माचिस की डिबिया जितनी मिट्टी का वजन एक डबल डेकर बस जितना होगा, जबकि न्यूट्रान स्टार की धरती और अधिक सघन व ठोस होने के कारण चम्मच के बराबर मिट्टी का भार वहाँ हाथी जितना होगा। ब्लैक होल की सघनता इतनी अधिक बढ़ जाती है कि उसका आकर्षण बल असाधारण हो जाता है। उससे होकर प्रकाश भी नहीं गुजर नहीं पाता। यदि कभी ऐसा प्रयास होता है, वह उसी में अवशोषित होकर रह जाता है। किसी प्रकार कोई वस्तु अथवा व्यक्ति वहाँ पहुँच जाये तो वह अपने मूल आकार में नहीं रह पायेंगे। असामान्य आकर्षण बल से उसका कणों में विभाजन क्षणार्थ में सम्पन्न हो जायेगा। वजन की तो वहाँ कल्पना ही नहीं की जा सकती।

प्रत्येक ग्रह पिण्ड के आकर्षण बल का वहाँ की परिस्थितियों से सघन सम्बन्ध है। पृथ्वी के गुरुत्व बल का यहाँ की परिस्थिति और जीवन से गहरा तादात्म्य है विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि पृथ्वी का आकर्षण बल समाप्त हो जाय, तो यहाँ की परिस्थिति और वातावरण में व्यापक परिवर्तन हो जायेगा। नदी-नाले फिर पहले जैसे न तो धावमान रह सकेंगे और न उनका कोई अस्तित्व ही रह जायेगा। वायुमण्डल विलुप्त हो जायेगा। वनस्पति और जीव-जन्तुओं का नामोनिशान न रहेगा। पृथ्वी जीवनहीन हो जायेगी।

वजन के संदर्भ में ही नहीं, दृश्य के सम्बन्ध में भी वास्तविकता सदा एक-सी नहीं रहती। जो आकाशीय पिण्ड पृथ्वी से जैसा दिखाई पड़ रहा है, अन्य ग्रहों से भी वह वैसा ही प्रतीत होगा-यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। पृथ्वी से सूर्य सुनहले रंग का दीखता है, पर चन्द्रमा की धरती से वह और अधिक चमकीला और कुछ नील वर्ण का प्रतीत होता है। आकाश का रंग पृथ्वीवासियों को नीला लगता है, किन्तु चंद्र तल से वह श्याम रंग का भासता है। पृथ्वी हमें मलिन, अनाकर्षक और आभाहीन दिखाई, पड़ती है पर चन्द्रमा से अवलोकन करने पर यह तथ्य सर्वथा विपरीत लगता है। वहाँ से वह अत्यन्त चमकीली और आकर्षक लगती है। पृथ्वी पर सूर्योदय से पूर्व अरुणोदय होता है, जबकि चन्द्रमा में इसका अस्तित्व ही नहीं है। इसी प्रकार वहाँ की धरती पर गेंद को पटकने से मीलों ऊपर उछल सकती है। घोड़े हवा से बातें करते हुए दौड़ सकते हैं मनुष्य अधिकाधिक भाग दौड़ वाला श्रम कर सकता है। तात्पर्य यही है कि सब कुछ गुरुत्वाकर्षण, वातावरण, और वायुमण्डल के सापेक्ष है। सम्पूर्ण सत्य इन्हें नहीं मान लेना चाहिए।

जो इस प्रकार के अगणित तथ्यों से अपरिचित होते हैं, वही पूर्वाग्रह करते और किसी मान्यता से चिपके रहने का दुराग्रह अपनाते हैं। ऐसी कितनी ही मान्यताएँ व्यवहारिक जीवन के सम्बन्ध में प्रचलित है, जो एक स्थान पर सत्य, तो दूसरी जगह असत्य जान पड़ती है, एक समय में प्रासंगिक तो बाद में अप्रासंगिक लगती है। ऐसी स्थिति में सही-गलत का, सत्य-असत्य का निर्णय करने में दृष्टिकोण को व्यापक बनाना और लचीलापन अपनाना चाहिए। बदले समय और परिस्थिति के आधार पर सत्य को परिवर्तित रूप में अपना लेने में कोई हर्ज नहीं समझदारी इसी को कहते हैं।


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