विवेकानन्द विदेश जा रहे थे। वे माता शारदामणि के पास आशीर्वाद लेने पहुँचे। माताजी ने कहा-पहले मेरा काम कर। बाद में आशीर्वाद दूँगी। सामने तलवार पड़ी थी इशारा करते हुए कहा-उसे उठा कर ला विवेकानन्द ने माता के हाथ में मूँठ थमा दी और धार वाली नोंक उसने हाथ में रखी।
माताजी ने आशीर्वाद देते हुए कहा-जो दूसरों की कठिनाई को समझता है और मुसीबत अपने हिस्से में लेता है, उसी पर भगवान् का आशीर्वाद बरसता है। तुम्हें भगवान का अनुग्रह सदा मिलता रहेगा।
विवेकानन्द जी कहते थे महानता के ढेरों गुण मुझे परमहंस जी के पारिवारिक वातावरण में सीखने-विकसित करने का लाभ मिला। अन्यथा वे दुर्लभ ही रहते।