मैली चादर धो न सके हम, रंगवाने को आ गये। आप मिले रंगरेज-अनूठे सबके मन को भा गये।
हर पल धोते, हर पल मैली, धोने में कुछ खोट है। शायद पूरे मनोयोग से, कर न सके हम चोट॥
षड् विकार का मैल न निकला, मात सभी से खा गये। मैली चादर धो न सके हम, रंगवाने को आ गये।
धो न सकें हम तो इसको, जीवन भर का रोना है। अपने ही हाथों से इसका, मैलापन प्रभु। धोना है।
भाग्य हमारे चेत गये है, करुणा कर को पा गये। मैली चादर धो न सके हम, रंगवाने को आ गये॥
हमने तो ऐलान कर दिया, चादर रंगने डाल दी। लाजवाब-रंगरेज आप हैं, आप हैं चर्चा यही उठाल दी॥
अब सब की ही नजर लगी है, सब पर ही तुम छा गये। अब सब की ही नजर लगी है, सब पर ही तुम छा गये।
आप मिले रंगरेज-अनूठे सबके मन को भा गये॥। आप मिले रंगरेज-अनूठे सबके मन को भा गये॥।
आप इसे धो देना ऐसी, रंग आपका चढ़ जाये। और छपाई ऐसी करना, कीमत इसकी बढ़ जाये॥
अपनी-अपनी मैली चादर, कितने ही रंगवा गये। मैली चादर धो न सके हम, रंगवाने को आ गये॥॥
रत्नाकर, अंगुली माल ने, अम्बपाली ने धुवाली। रत्ना के कामुक-तुलसी ने, राम-रंग में रंगवाली॥
वेद पुराण आपके रंग के गुण की गरिमा गा गये। आप मिले रंगरेज-अनूठे सबके मन को भा गये॥॥।
-मंगल विजय ‘विजयवर्गीय