संत तुकाराम की पत्नी बड़े कर्क स्वभाव की थी। एक बार उनके लिए किसी किसान ने गन्नों का एक गट्टा भेजा। रास्ते में जो परिचित बच्चे मिले, उनने एक-एक करके सभी गन्ने माँग लिए। घर के लिए एक बचा, सो उनने पत्नी को थमा दिया।
पत्नी गट्ठे की प्रतीक्षा में थी। एक मिला, तो कारण पूछा। बताने पर बहुत क्रुद्ध हुई। उस गन्ने को सन्त की पीठ पर इतनी जोर से मारा, कि टूट कर दो टुकड़े हो गए। चोट जोर की लगी। इतने पर भी संत ने सन्तुलन नहीं खोया। उलटे मारने वाले हाथों की प्रशंसा करने लगे। कैसे सधे हुए हाथ हैं वे कि गन्ना ठीक से टूटा। मुलायम वाला भाग पत्नी को थमाते हुए, कड़ा वाला स्वयं ले लिया, न क्रोध किया न उलाहना दिया।