जगद्गुरु शंकराचार्य (Kahani)

December 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पिता ने स्वयं बालक का यज्ञोपवीत संस्कार कराया। विद्वान पिता के विवेकवान पुत्र ने पूछा पिता जी यह धागे गले में डालने का क्या मतलब है। पिता बोला-मनुष्य जीवन को विवेक से बाँधकर रखा जाय ताकि मनुष्य साँसारिक आकर्षणों में ही उलझ कर न रह जाय वरन् अपना पारमार्थिक लक्ष्य भी पूरा करने के लिए सजग रहे।

बालक के मन में पिता की दी गई शिक्षा ऐसी गहरी बैठी। कि आगे चलकर यही बालक विश्व-विख्यात जगद्गुरु शंकराचार्य नाम से विख्यात हुआ।

कामेच्छा का सुनियोजित न होने के कारण वासना ही मन-मस्तिष्क पर हावी हो जाती है एवं व्यक्ति को अन्ततः पतन के गर्त में ले जाती है।

महाराज ययाति वैसे तो बड़े ही विद्वान् और ज्ञानवान् राजा थे, किन्तु दुर्भाग्यवश उन्हें वासनाओं का रोग लग गया और वे उसकी तृप्ति में निमग्न हो गये। स्वाभाविक था कि ज्यों-ज्यों वे इस अग्नि में आहुति देते गये, त्यों-त्यों वह और भी प्रचण्ड होती गई और शीघ्र ही वह समय आ गया, जब उनका शरीर खोखला और शक्तियाँ बूढ़ी हो गई। सारे सुकृत खोये, बेटे के प्रति अत्याचारी प्रसिद्ध हुए परमार्थ का अवसर खोया और मृत्यु के बाद युग-युग के लिए गिरगिट की योनि पाई, किन्तु वासना की पूर्ति न हो सकी। पाण्डु जैसे बुद्धिमान राजा पीलिया रोग के साथ वासना के कारण ही अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। शान्तनु जैसे राजा ने बुढ़ापे में वासना के वशीभूत होकर अपने देवव्रत-भीष्म जैसे महान् पुत्र को गृहस्थ सुख से वंचित कर दिया। विश्वामित्र जैसे तपस्वी और इन्द्र जैसे देवता वासना के कारण ही व्यभिचारी और तप-भ्रष्ट होने के पातकी बने। वासना का विष निःसन्देह बड़ा भयंकर होता है, जिनके शरीर का पोषण पाता है, उसके लोक-परलोक पराकाष्ठा तक बिगाड़ देता है। इस विष से बचे रहने में ही मनुष्य का मंगल हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118