समर्पित की अकुलाहट (Kavita)

June 1994

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सब कुछ, हे जीवन-धन ! देकर भी करता मन, दे दूँ कुछ और अभी ।

तन अंगीकार करो, मन को स्वीकार करो , भ्रम-लोभ-मोह लेकर , प्राणों का भार हरो , दूँ आठों याम तुम्हें , हर श्रम-विश्राम तुम्हें , सारा पूजन-अर्चन , देकर भी करता मन, दे दूँ कुछ और अभी ।

प्रभू ! भक्ति समर्पित हो , सब शक्ति समर्पित हो , जीवन भर की सारी , अनुरक्ति समर्पित हो , उँगलियाँ सुमिरन हों , पासें अनुसरनी हो , अंतस् का अनुगुँजन , देकर भी करता मन, दे दूँ कुछ और अभी ।

प्रभू ! नाम तुम्हारा हो , धन-धाम तुम्हारा हो , बस कर्म हमारे हों , परिणाम तुम्हारा हो , मैं अनजाना हो लूँ , बिना पहचाना हो लूँ , हर आश्रय-अवलंबन , देकर भी करता मन, दे दूँ कुछ और अभी ।

-चिन्मय


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