माइकेल फराडे (Kahani)

June 1994

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लंदन की एक गंदी बस्ती में एक अनाथ बालक रहता था । अखबार बेचकर अपना गुजारा करता था । सात वर्ष की आयु से ही एक जिल्द साज की दुकान पर काम करने लगा । एक दिन एक पुस्तक बाँधते हुए उसकी निगाह विद्युत संबंधी एक लेख पर पड़ी । मालिक से अनुमति माँग कर उसने एक ही रात में उस लेख को पढ़ डाला । जिज्ञासा बढ़ी । प्रयोग एवं परीक्षण के लिए उसने विद्युत की छोटी मोटी आवश्यक वस्तुएँ एकत्रित करनी आरंभ कर दीं । बालक की रुचि देखकर एक ग्राहक बहुत प्रभावित हुआ । उसे वह भौतिक शास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान डेंवी का भाषण सुनवाने ले गया । बालक ने डेवी की बातें ध्यान से सुनी एवं नोट भी किया । उसने डेवी के भाषण की समीक्षा करते हुए अपने परामर्श लिख भेजे । डेम्फ्री डेवी अत्यधिक प्रभावित हुए । उन्होंने यंत्रों को व्यवस्थित रूप में रखने के लिए बालक को रख लिया । बालक नौकर और सहयोगी वैज्ञानिक दोनों ही की भूमिका निभाता रहा । दिन भर कामों में व्यस्त रहता, रात को अध्ययन करता । यदि बालक अपने मनोयोग, अध्यवसाय एवं पुरुषार्थ के बल बूते प्रसिद्ध वैज्ञानिक बना । भौतिक विज्ञान की जगत में माइकेल फराडे को कौन नहीं जानता है ?


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