नमन है तुमको बारंबार (Kavita)

June 1994

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गुरुवर ! आज तुम्हारी वाणी बदलेगी साँर, नमन है तुमको बारंबार ।

वचन तुम्हारे हर लेंगे अब हर मन का अँधियार, नमन है तुमको बारंबार ।

शापित मानव में तुमने नूतन प्राण जगाये, संस्कृति के मरुथल में तुमने अमृत-कण बरसाये। निर्मम हृदयों में सरसायी करुणा की रसधार । नमन है तुमको बारंबार ।

सहज-सरल वाणी से तुमने जन-जन को अपनाया, जटिल और दुर्लभ दर्शन को तुमने सुलभ बनाया । सुगम हुए सारी धरती को यूँ उत्कृष्ट विचार । नमन है तुमको बारंबार ।

अत्याचार बहुत है, हाहाकार मचा है भारी , दुष्प्रभाव से देश-देश में फैली है लाचारी । इस विपत्ति-वेला में तुमने दिया सबल आधार । नमन है तुमको बारंबार ।

तर्क-बुद्धि से पहले भावों की प्रेरणा जगायी , पहले तपे स्वयं, फिर ऊर्जा कण-कण में खरायी। मानवता को दिया संजीवन-विद्या का उपहार । नमन है तुमको बारंबार ।

तपःपूत लेखनी तुम्हारी रही जगाने वाली , हर हताश के हृदय मनोबल सदा बढ़ाने वाली । दिया दुखी मानव को तुमने ही अमोघ उपचार । नमन है तुमको बारंबार ।

-शचीन्द्र भटनागर


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