धर्म चेतना का सार आध्यात्मिक पंचशील

June 1994

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पंचशीलों के कितने ही प्रकार हैं । उन्हें विभिन्न महापुरुषों ने विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया है । वे सभी अपने-अपने कार्य क्षेत्र और समय के अनुरूप हैं । पर इनमें से सभी ऐसे नहीं हैं जिन्हें हर वर्ग का व्यक्ति हर समय कार्यान्वित कर सकने की स्थिति में हो, ऐसी दशा में यह देखना होगा कि सर्वजनीन हित साधने की दृष्टि से उनमें किनका ऐसा चयन किया जाना चाहिए जो आज की परिस्थितियों के भी अनुकूल हों ।

भगवान बुद्ध के पंचशील उनने अनुचरों-बौद्ध भिक्षुओं को प्रधान लक्ष्य मानते हुए निर्धारित किये गये हैं । वे है-

1-किसी का जीवन नष्ट न करो अर्थात् पूर्ण अहिंसा बरतो (2) जो तुम्हें न दिया गया हो उसे मत लो अर्थात् चोरी से छल से कुछ भी अर्जित न करो । (3) ब्रह्मचर्य पालो तथा अपनी इंद्रियों का संयम रखो (4) कम बोलो, यथार्थ बोलो, धर्म के समर्थन को ध्यान में रख कर बोलो (5) नशा मत करो । यह निर्धारण इसलिए किये गये कि धर्मोपदेशकों को श्रद्धास्पद स्थान पर बैठने वाले लोगों को सामान्यजनों की तुलना में अपना स्थान ऊंचा रखना ही चाहिए अन्यथा सामान्य लोगों जैसा स्वभाव धारण करते हुए उच्च आदर्शों के संबंध में उसका प्रभाव न पड़ेगा ।

पं. नेहरू और चीन के शासनाध्यक्षों ने मिलकर राजनीतिक पंचशील की घोषणा की थी । उनके राष्ट्रों के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान खोजा गया था । वे थे-(1) राष्ट्र एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें तथा सार्वभौम हितों का ध्यान रखें (2) विवादों में आक्रमण की नीति न अपनाएँ वरन् पारम्परिक विचार विनिमय तथा पंच निर्णय के आधार पर उनका समाधान खोजा जाय (3) एक दूसरे के आँतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें (4) समानता और आपसी सद्भाव का निर्वाह करें (5) शाँतिपूर्ण सह अस्तित्व की बात सोचें । यह पाँचों बातें ऐसी है, जिन्हें राष्ट्राध्यक्षों के आपसी संबंधों को सही रखने की दृष्टि से तब निर्धारित किया गया था । इन्हें उन्हीं लोगों द्वारा अपनाया जा सकता था । जन साधारण इस संदर्भ में कुछ कर नहीं सकता मात्र अपने शासकों से इसके लिए अनुरोध और आग्रह कर सकता है ।

गाँधी जी ने सत्याग्रह के दिनों में विशिष्ट पंचशीलों की घोषणा की थी । वे उस समय की आवश्यकता को देखते हुए देशभक्तों के लिए आवश्यक थे । वे इस प्रकार निर्धारित हुए थे (1) निर्भयता (2) शारीरिक श्रम (3) अस्वाद का पालन (4) सर्वधर्म सम भाव (5) अस्पृश्यता निवारण । यह सभी वैसे हर समय में हर किसी के लिए कार्य रूप में अपनाए जाने योग्य हैं । सत्याग्रही व्यक्तियों के लिए स्वयं सबके लिए तो उस समय की विशिष्ट आवश्यकताओं को देखते हुए उपयोगी थे ही । महर्षि पतंजलि ने इन पाँच कर्तव्यों पाँच व्रतों को पाँच यज्ञ का नाम दिया है, इसकी व्याख्या इस प्रकार है- (1) अहिंसा (2) सत्य (3) अस्तेय (4) ब्रह्मचर्य (5) अपरिग्रह यह पांचों उनके लिए आवश्यक हैं जो आत्मिक प्रगति के मार्ग पर चलना चाहते हैं । योग साधना में जिनकी अभिरुचि है उनके लिए क्रिया पक्ष की साधनाएँ करने के साथ ही इन अनुबंधों का पालन करना आवश्यक निर्धारित किया गया है ।

एक पंचशील आज की परिस्थितियों में सभी सेवा भावी उदारचेता लोगों के लिए अपनाए जाने योग्य है, जिनका प्रणयन, युगधर्म के अनुरूप हमने किया है वह है (1) सत्य एवं तथ्य के प्रति आस्था (2) अपने संपर्क क्षेत्र के उत्कर्ष आस्था (3) मानवता के आदर्शों एवं सहयोग में आस्था । (4) सामाजिक न्याय में आस्था (5) ईश्वर में आस्था ।

यह पंचशील ऐसे हैं जिन्हें जन साधारण के आत्मिक उत्कर्ष की दृष्टि से योग्य एवं उपयोगी माना जा सकता है। इन्हें जन साधारण द्वारा अपनाया और कार्यान्वित भी किया जा सकता है । इनमें से प्रत्येक की इन्हीं सर्वोपयोगी पंचशीलों धर्म चेतना का सार समझते हुए अपनाने योग्य अपना विश्वास एवं उत्साह व्यक्त करना चाहिए ।


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