साहसी और डरपोक (Kahani)

June 1994

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एक आदमी चला जा रहा था। रास्ते में एक कुत्ता मिल गया। कुत्ते की कद-काठी और हाथ-भाव से वह डर गया और भागने लगा। कुत्ते ने भी उसका पीछा किया। आदमी बेतहाशा भागा जा रहा था और कुत्ता भी रुकने का नाम नहीं लेता।

दूर से यह सब दृश्य एक विज्ञ पुरुष देख रहा था। व्यक्ति जब उसके पास से गुजरा, तो उसने चिल्लाकर - “मूर्ख! रुक जा, भाग मत। कुत्ता तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा है।”

इस वाक्य से कुछ ढाढ़स हुआ। वह हाँफते हुए रुक गया। उसके रुकते ही कुत्ता भी उसके पीछे खड़ा हो गया, कुछ इधर-उधर सूँघ कर फिर चलता बना।

अब सुधी सज्जन से उसे समझाया- “कुत्ता वस्तुतः तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था। वह तो तुम्हारे भय के कारण पैदा हुए एड्रीनेलिन रस की गंध से खिंचा चला आ रहा था। तुम्हारे रुकते ही, भय समाप्त होते ही वह रसस्राव बंद हो गया, जिससे गंध का निकलना रुक गया और कुत्ता भी लौट गया।

अब वह व्यक्ति सोचने लगा-हमारी तरह न जाने कितने ही लोग रस्सी को साँप समझ बैठते और डरते-मरते रहते हैं। इसके बाद ही उसे इस उक्ति की सच्चाई समझ में आयी, जिसमें कहा गया है- डरपोक जीवन में कितनी ही बार मर चुकते हैं, जबकि साहसी का मरण सिर्फ एक बार उपस्थित होता है।


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