लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का स्वतंत्रता आँदोलन में अपना विशिष्ट स्थान है । राजनीति में वे जिस सक्रियता से भाग ले रहे थे उससे उनके निकटतम मित्र भी सोचने लगे थे कि संभव है तिलक की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी हो । उसी उद्देश्य से एक बार उनके घनिष्ठ मित्र ने पूछा-”स्वराज्य मिलने के बाद आप प्रधान मंत्री का पद सँभालेंगे अथवा राष्ट्रपति का ।”
उन्होंने जवाब दिया-”देखो बंधु ! किसी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से प्रेरित होकर राजनीति में नहीं आया, मैं तो भारत माता का एक छोटा सा बेटा हूँ और उसी की सेवा के लिए काम कर रहा हूँ ।”
तो स्वराज्य प्राप्ति के उपराँत आप की इस सेवा में क्या भूमिका होगी ? मित्र ने पूछा ।
तिलक ने गंभीर वाणी में कहा-”फिर भी वही सेवक की भूमिका निबाहूँगा । हमारे देश में अशिक्षा, अज्ञान और पिछड़ापन है । उसी के परिणाम स्वरूप मिल जाने के बाद में राजनीति से विलग रहकर अध्यापन का कार्य करूंगा । इसी कार्य को करते हुए जन मानस में उत्कृष्ट विचारों की स्थापना करने का प्रयास करता रहूँगा।