क्या बिगाड़ा था उसने किसी का ?

June 1994

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कई दिनों के झुटपूटे के बाद आज पहली बार सूरज निकला था। बादल छट गये थे और धूप बहुत सुखद लग रही थी। ओसीन की तबियत इधर कुछ दिनों से काफी खराब चल रही थी। सूर्य निकल आने से उसको काफी राहत महसूस हो रही थी। पता नहीं स्वास्थ्य सचमुच कुछ सुधर गया था फिर मौसम का ही प्रभाव था। ओसीन का पति ओकावा आज सुबह से ही बाहर गया हुआ था। मौसम ठीक होने के बाद ही उसका बाहर जाना संभव हो सका था।

पति को बाहर भेजकर वह घर के छोटे-छोटे कामों में लग गयी थी। वह चाहती थी की दोपहर के आस-पास जब ओकावा वापस आये, तब तक उसके सारे काम निबट चुके हों, ताकि दोनों आज के साफ मौसम का आनंद उठा सकें।

जापान के हिरोशिमा नगर के बाहरी छोर पर उनका अपना मकान था। जहाँ वह अपने पति और बच्चे के साथ सुखद जिन्दगी के सपने बुनने में उलझी रहती थी। पिछले कुछ दिनों से उसके मन में कुछ विशेष कामों के प्रति बहुत तीव्र इच्छा पैदा होने लगी थी। वह कुछ विशेष स्थानों पर जाना चाहती थी, विशेष तरह की चीजें खाना चाहती थी। लगभग दो वर्ष पहले इन्हीं दिनों जब ओसीन पहली बार माँ बनने की प्रतीक्षा कर रही थी, तभी उसकी इच्छाएँ कुछ इसी तरह तीव्र हो उठी थीं। पर वे इच्छाएँ इन इच्छाओं से बहुत भिन्न थीं। तब वह मीठी चीजें बहुत खाया करती थी। पर इन दिनों उसे खट्टी चीजें बहुत भाती थीं। पिछली बार उसके लड़का हुआ था और इस बार उसे मन ही मन विश्वास जग चुका है कि उसकी गोद में नन्ही सी गुड़िया आने वाली है।

उसका मन इन दिनों गहरी ममता से भर चुका है। उसे लगने लगा है कि वह अब दो बच्चों की माँ है। भीतर की ममता दुगुनी हो चुकी है। लेकिन अभी अपनी अनदेखी बिटिया को वह प्यार नहीं कर पाती। बस कभी-कभी एकाँत पाकर अपने उभरे हुए पेट पर धीरे से हाथ फिरा लेती हैं यदा-कदा अनचीन्ही बेटी को पुचकार लेती है। जब भीतर हिल डफल बहुत हो जाती है, तो बच्ची को इस शरारत के लिए डाट भी देती है। “क्यों तंग करती है लाड़ली मेरी “वह उसे समझाती है। “अभी से तू इतनी शैतान है, तो जन्म लेने के बाद क्या करेगी नहीं बेटी माँ को इस तरह तंग नहीं करते और फिर अपने आप ही मुस्करा उठती है। बाकी समय अपना सारा प्यार बेटे पर उड़ेलती रहती है।

आज सुबह वह अपने बेटे के कामों में लगी हुई है। धूप निकल आयी थी तो उसके मन में बेटे को नहला देने की बात भी आयी। दो दिनों से खराब मौसम के कारण होचोवा को इस डर से नहीं नहलाया था कि कहीं उसे ठंड न लग जाए। पर धूप निकल आयी थी। आज उसे नहला ही देना चाहिए। बहुत गंदा हो रहा था और फिर आज न नहलाया तो कल मौसम जाना कैसा रहे। यही सोचकर वह बच्चे के रोने के बावजूद उसके कपड़े उतारती रही। पहले कमीज उतारी। बनियान की बारी आयी तो होचोवा एकदम मचल गया। वह उसके हाथों से छूट-छूट जा रहा था। एक बार तो वह लगभग हाथों से निकल ही गया था। पर उसने उसे फिर घसीट लिया।

एक हाथ से होचोवा को पकड़ा और दूसरे हाथ से पानी छूकर देखा पानी बहुत ठंडा नहीं था और तभी उसके भीतर बहुत जोर से कुछ हिलने-डुलने लगा। ओसीन ने अपना गीला हाथ पेट पर रख लिया “न बेटी न तंग नहीं करते। भैया को नहला लेने दे। “ एक और होचोवा जोर जोर से रो रहा था और उसके हाथों से निकलने के लिये मचल रहा था और दूसरी और यह.......। “तुम दोनों भाई-बहिन क्यों तंग कर रहे हो मुझे!” ओसीन ने मुस्करा कर पेट के उभार की ओर देखा। “शैतान बच्चों!” और वह सोचने लगी इस समय ओकावा घर पर होता तो उसकी सहायता करता। उसके उसके पेट के भीतर की हलचल बहुत प्रबल होती जा रही थी। बिटिया रानी अब भीतर नहीं रहना चाहती वह खुद को बता रही थी।

उसी समय सहसा बहुत जोर से गूँ-गूँ ऊ -ऊ की आवाज हो उठी। उसका ध्यान एक बार फिर अपने पेट की ओर गया। पर दूसरे ही क्षण ध्यान आया, यह पेट के भीतर की आवाज नहीं थी। आवाज की दिशा में बहुत सारा धुंआ ओर गर्द गुबार उड़ रहा था। साफ आकाश कहीं छुप गया था। सारा वातावरण मटमैला हो गया था और इन सबके बीच पाँच हवाई जहाज उड़े जा रहे थे।

ओसीन को स्थिति समझने में क्षण भी नहीं लगा। उसने साबुन से पुते नन्हें होचोवा को झपट कर अपनी गोद में समेटा, एक हाथ पेट पर रखकर अपनी अनदेखी बेटी को साँत्वना दी और झपटकर भीतर भागी.......। नहाने का पानी, साबुन और तौलिया खुले आकाश के नीचे पड़े रहे।

चारों ओर शोर ही शोर था। आग और धुंआ। मनों मिट्टी धरती की कोख में उछल कर आकाश की ओर जाती थी ओर फिर आग के समान धरती पर बरस पड़ती थी।

धमाके बहुत पास आ गए थे। उसे लगा कि उसका घर धमाकों से घिर गया था। अचानक उसके मुँह से जोर की एक चीख निकली। उसे लगा कोई आग उसकी बांयी जाँघ को चीर कर भीतर घूमती चली गयी है। नंग-धड़ंग, साबुन ओर मिट्टी से सना नन्हा होचोवा उससे जोरों से चिपट गया।

इधर अभी ओकावा लौटते हुए अपनी बस्ती की सीमा तक पहुँचा ही था कि हवाई जहाजों की आवाज से उसके कान खड़े हो गए। यों यह अनुभव उसके लिए या बस्ती के किसी अन्य व्यक्ति के लिए नया था। अब तो विश्व युद्ध ही छिड़ा हुआ था। जाने कब तक यह लड़ाई चलेगी। हाँ इधर पिछले तीन दिनों से हवाई-जहाज नहीं दिखे थे। आज धूप निकली थी तो हवाई जहाज भी आ निकले थे।

वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें, बस एक ही बात उसके मन में थी, ऐसे समय उसे अपने घर ओसीन ओर होचोवा के पास होना चाहिए था। बस इसी एक बात को ध्यान में रखते हुए वह गिरते पड़ते घिसटते हुए चला जा रहा था। चारों ओर चीखने की आवाजें आ रही थीं। स्थानीय वालंटियर और सैनिक अधिकारी भी प्रकट हो गये थे। मोटर गाड़ियाँ इधर-उधर दौड़ रही थीं।

अपने घर पर दृष्टि पड़ते ही उसे लगा कि दिल की धड़कने बंद हो जाएँगी। जैसे-तैसे गिरता पड़ता हुआ घर के भीतर घुस गया। उसके सामने लहूलुहान और पड़ी थी और उसके सीने से बेजान सा होचोवा चिपटा था। अभी वह कुछ करता तभी एक अधिकारी कई वालंटियरों के साथ घर के भीतर जा पहुँचा उसने लगभग झपटते हुए ओसीन की छाती पर हाथ रखा और सहसा वह अपने साथियों की ओर मुड़ा-जीवित है।”

वालंटियर झुके और ओसीन को उठा ले चले। ओकावा ने लगभग झुलसे हुए होचोवा को उठा लिया। बीते पलों के साथ सूर्य ढक चला था। गाड़ियाँ अस्पताल के अहाते में प्रवेश कर रही थीं।

क्षण बीतते गए। वह बरामदे के एक कोने से दूसरे कोने तक टहल रहा था वह रात भर इसी प्रकार टहलता रहा था और अब ऊषा की पहली किरणें धरती को छू रहीं थीं।

उसे पता ही नहीं चला कि रात किधर गयी। वह तो यही जानता था कि डाक्टर ने ओसीन और होचोवा को सरसरी नजर देख दो अलग-अलग आपरेशन थियेटरों में भिजवा दिया था। रात भर वह यूँ ही टहलता रहा था और किसी ने उसे यह नहीं बताया था कि उसकी पत्नी-बच्चा कैसे हैं। वे बचेंगे भी कि नहीं वह नहीं जानता था। यदि वे नहीं बचे तो ?

‘उनके मरने से पहले मुझे उनसे थोड़ी बात कर लेने दो’ वह कहना चाहता था। पर किससे कहता ? यहाँ कौन था उसकी बात सुनता ? जिन दरवाजों के भीतर उसकी पत्नी उसका नन्हा बालक गये थे उनके भीतर उसे नहीं जाने दिया गया था और वह स्वयं भीतर घुसने का साहस नहीं कर सका था। तभी एक दरवाजा खुला।

वह पलट कर खड़ा हो गया। अभी कुछ सोचता इतने में एक नर्स का मायूस स्वर उभरा सॉरी मि0 ओकावा हम आपके बच्चे को नहीं बचा सके। इन शब्दों ने उसे निस्पंद कर दिया। लगा कि वह चक्कर खाकर गिर पड़ेगा। इतने में दूसरे दरवाजे के खुलने की आवाज ने उसे सचेत कर दिया।

“मि0 ओकावा आप आ सकते हैं” खुले दरवाजे के बीच प्रकट हुई एक अन्य नर्स ने कहा। नर्स उसे कई रास्तों से घुमाती हुई एक वार्ड में ले गयी। घायलों के एक जंगल में उसने एक बैड पर पड़ी ओसीन को देखा। अभी वह कुछ कहता की साथ ले आने वाली नर्स उसके बिल्कुल पास आ गयी थी।” हमें खेद है, मि0 ओकावा हम आपकी पत्नी और बच्ची को नहीं बचा सके।

“बच्ची!” और सहसा उसे ध्यान आया की उसकी पत्नी अपने शरीर में एक नन्ही सी जान को भी पाल रही थी। उसकी आँखों में आँसू उतर आए।

“आप बच्ची को देखना चाहेंगे ? नर्स उससे पूछ रही थी। उसका सिर अपने आप स्वीकृति में हिल गया। और फिर वह नर्स के पीछे-पीछे चलता हुआ बहुत सारे गलियारों को पारकर एक कमरे के सामने आया।

नर्स उसे वहीं रुकने का इशारा कर स्वयं भीतर चली गयी। दरवाजा खुला। नर्स के हाथों में सफेद कपड़ों में लिपटी एक बच्ची थी। नर्स ने कपड़े की तहें हटा दीं।

एक गोरी, चिट्टी स्वस्थ बच्ची कपड़े की बीच पड़ी थी। उसके मुख पर रोने के से भाव थे। शायद चीखती-चीखती उसकी बच्ची मर गयी थी। नर्स ने बच्ची के सिर को एक ओर घुमाते हुए ओकावा को बच्ची का बांया गाल दिखाया। गाल पर एक बड़ा सा ताजा-ताजा घाव था। चमड़ी फटी हुई थी। नंगा लाल माँस दिख रहा था। खून चारों ओर जमकर काला पड़ गया था।

वह कुछ सोचने लगा पास में पड़ी पत्नी और बच्चे की लाश पर एक नजर डालते हुए उसने नर्स की ओर देखते हुए बच्ची की ओर इशारा किया “सिस्टर! आखिर यह तो अभी दुनिया में आयी भी नहीं थी-इसने आक्रमणकारियों का क्या बिगाड़ा था?” कौन उत्तर देता। इस घटना से विदीर्ण हृदय ओकावा बौद्ध साधु हो गया। विश्व युद्ध समाप्त होने पर जब जापान का प्रतिनिधि मंडल वैज्ञानिक आइन्स्टीन से मिलने गया। उसमें ओकावा भी एक था उसकी बात-चीत से विगलित हो महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन शाँति प्रयत्नों में अग्रसर हुए। ओकावा ने अपने जीवन के मार्मिक तथ्यों को ‘द डे आफ्टर’ में पिरोया और अपना शेष संदेश समझने-समझाने में बिताने लगा।


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