सूक्ष्म अवयवों का सुसंचालन – स्वास्थ्य संवर्धन

June 1994

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शरीर को स्वास्थ्य और चुस्त-दुरुस्त बनाये रखने के लिए पौष्टिक आहार और अनुकूल जलवायु तो आवश्यक हैं ही, पर इनके साथ एक और बात की जरूरत पड़ती है, वह है आसन व व्यायाम। मशीन यदि बहुत अच्छी भी हो, पर लम्बे समय तक वह बंद पड़ी रहे, काम न लिया जाय, तो उसकी गुणवत्ता प्रभावित होती और कल-पुर्जे ठीक ढंग से काम नहीं कर पाते हैं। कोठी शानदार हो, किंतु अधिक काल तक परित्यक्त बनी रहे, तो उसमें चमगादड़ों, अवावीलों और मकड़ियों के घोंसले उसे रहने लायक स्थिति में नहीं रहने देते, उसका साज-सज्जा मारी जाती और धूल की पर्त यत्र-तत्र दिखाई पड़ती है।

यही बात शरीर के साथ भी है। उसे अच्छा भोजन मिल रहा हो, ओबोहवा भी अच्छे हो, पर अंग संचालन जैसी अनिवार्य प्रक्रिया नियमित रूप से संपन्न नहीं हो पा रही हो, तो अंग-अवयव जकड़-मकड़ दिखाने और शरीर का साथ नहीं दे पाने की विवशता प्रकट करने लगते हैं। इसीलिए व्यायाम स्वस्थता के लिए आवश्यक माने गये हैं। यों तो इसकी आवश्यकता-पूर्ति तो सामान्य रूप से चलने, दौड़ने और प्रतिदिन की कसरत से तो होती ही रहती है, पर इन प्रक्रियाओं का कुछ खास अंगों पर ही ज्यादा प्रभाव पड़ता है, शेष अंग या तो अप्रभावित बने रहते हैं अथवा असर तना न्यून होता है, जिसे नगण्य कहा जा सके। विशेषकर शरीर के भीतर के छोटे अवयवों तक इनका प्रभाव नहीं पहुँच पाता, इसलिए वे जंग लगे चाकू की सी स्थिति में धीरे-धीरे आने लगते हैं। इस कठिनाई को ध्यान में रख कर ही प्राचीन शरीर शास्त्रियों ने योगासनों की विशेष व्यवस्था की थी, ताकि उनसे संपूर्ण शरीर के बड़े-छोटे सभी अंगों की कसरत बराबर होती रह सके। इसके अतिरिक्त दंड-बैठक और दौड़ में अधिक ऊर्जा की खपत होती है, जबकि आसनों द्वारा उस अनावश्यक क्षरण को रोककर उसे उपयोगी प्रयोजनों में लगा देना संभव होता है। इस दृष्टि से योगासन स्वास्थ्य के लिए अधिक उत्तम और उपयोगी हैं। विशेषकर वैसे लोगों के लिए जो शरीर से कमजोर हैं और थकाने वाले व्यायाम नहीं कर सकते, उनके लिए तो यह विशेष लाभकारी है।

आधुनिक शरीर विज्ञानियों ने आपने प्रयोग-परीक्षणों में योगाभ्यास परक व्यायामों को प्रचलित व्यायामों की तुलना में अधिक प्रभावकारी और उपयोगी पाया है। शरीर को संचालित करने में प्राण जैसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सूक्ष्म प्रणालियों में भी इनका असर पड़ता देखा गया है। इसलिए इस विधा के विशेषज्ञों ने कुछ विशिष्ट आसनों की क्रियाओं में आवश्यक फेर-बदल कर उसे सर्वसाधारण के लिए अत्यंत सरल बना दिया है। बदले हुए रूप में इन यौगिक कसरतों का अभ्यास कितने ही लोग व्यक्तिगत रूप से करते देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण योगासनों को मिलाकर उसे एक संयुक्त आसान के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। अन्य कठिन अभ्यासों को न भी किया जाय और इन्हीं सरल ओर संयुक्त आसनों को करते रहा जाय, तो भी कामचलाऊ व्यवस्था बन जाती है। सूर्य नमस्कार जैसे आसान ऋषिगणों द्वारा इसी निमित्त गढ़े गये। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया में लगभग समस्त बाहरी-भीतरी अंगों का संचालन हो जाता है।

आज के आधुनिक युग में नृत्यों, ब्रेक डांस, गीत-संगीत पर आधारित अंग संचालनों के पीछे मूल दृष्टि संभवतः सम्मिलित लोगों का मनोरंजन करने की अधिक रही है। साथ-साथ अंगों के नर्तन-थिरकन द्वारा स्वास्थ्य संवर्धन का एक महत्वपूर्ण प्रयोजन पूरा होता है, यह भी संभव है किंतु प्राचीन नृत्यों में भारतनाट्यम् कथकली, ओडिसी, कत्थक जैसे प्रसिद्ध नाच एवं अगणित दूसरे लोकनृत्य शरीर शास्त्र के इसी सिद्धाँत पर आधारित है कि इनसे लोकरंजन और स्वास्थ्य संवर्धन का दुहरा लाभ मिले। दक्षिण भारतीयों नृत्यों को सूक्ष्मतापूर्वक देखा जाय, तो स्पष्ट ज्ञात होगा कि इन्हें शरीर विज्ञान की सूक्ष्मताओं को ध्यान में रखते हुए विनिर्मित किया गया है, अन्यथा सिर से लेकर पैर तक के अवयवों का जैसा संचालन उनमें होता है, वैसा लोकनृत्यों में शायद ही देखा जा सके। इसीलिए शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से इन्हें अधिक विज्ञान सम्मत माना गया है, पर हर एक के लिए यह न तो संभव है, न सरल। समय भी इनमें अधिक चाहिए और सीखने, अभ्यास करने में भी कष्ट साध्य है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कामचलाऊ निर्वाह आधुनिक अनुसंधानों द्वारा विकसित नवीन अभ्यासों एवं सूर्यनमस्कार जैसे संयुक्तासनों से किया जा सकता है। जिनके पास अधिक समय है और जो दूसरे आसनों को करने में सक्षम हैं, वे उन्हें भी कर सकते हैं। इसमें हर्ज नहीं।

आस्ट्रियाई अनुसंधानकर्ता स्टीफन सैंडरसन अपने लंबे काल के अध्ययन के उपराँत इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि यदि नियमित रूप से योगासनों को या जाय, तो आज की अधिकाँश बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है। उनका कहना है कि इन दिनों के रोगों का एक प्रमुख कारण आराम तलबी की बढ़ती प्रवृत्ति है। विज्ञान ने जिस अति से दुनिया को विकास की ओर धकेला है, यह प्रसन्नता की बात है, पर इसका दूसरा दुःखदायी पक्ष भी है। उसने इतने सुविधा-साधन मनुष्य को उपलब्ध कराये हैं की धीरे-धीरे उसके श्रम का माद्दा घटा है, वह अधिकाधिक आराम तलब बनता गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि जो काम पहले अपने हाथों से, अपने श्रम से संपन्न होता था, अब उन छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी मशीन का मोहताज होना पड़ रहा है। परिणाम सामने है। शारीरिक श्रम से जो थोड़ी-बहुत मेहनत हो जाती थी और जिससे व्यायाम की जो न्यूनाधिक पूर्ति होती थी, शरीर उससे वंचित हो गया। फलतः आवश्यक रोगी होने लगें। उनके अनुसार इस कमी की पूर्ति योगासनों के माध्यम से सरलतापूर्वक की जा सकती है। उनका दावा है कि इनसे न सिर्फ व्यायाम की आवश्यकता पूरी होती है, वरन् रोगों को भी दूर भगाया जा सकना संभव है। उनने स्वयं अनें प्रकार के रोगों पर इनका सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। अनेक दमाग्रस्त व्यक्तियों को उनने मात्र आसान-प्राणायाम के अभ्यास से स्वस्थ बनाने में सफलता पायी है। इसके अतिरिक्त मधुमेह, मिर्गी, उच्च रक्तचाप, एवं हृदय संबंधी प्राणघातक व्याधियों को इनसे ठीक किया है।

अमेरिका में भी इस संबंध में शोधें हो रही हैं। वहाँ के ‘यौगिक ट्रीटमेण्ट रिसर्च सेण्टर’ में मधुमेह पर विशेष अध्ययन किया गया है। शोधकर्ताओं द्वारा वहाँ निमित्त आयुवर्ग के लगभग 300 रोगियों पर योगासनों के प्रभावों का परीक्षण किया गया। उन्हें इस बीच संतुलित भोजन का नियमित आहार बराबर दिया जाता रहा। समय-समय पर इस मध्य उनके मूत्र, रक्त, की नियमित जाँच होती रही। तीन माह पश्चात् जब उनके रक्त का पुनः परीक्षण किया गया, तो आशातीत परिवर्तन दिखाई पड़ा। करीब 50 प्रतिशत रोगियों में रक्त में शक्कर की मात्रा काफी घटती देखी गई। जिन रोगियों को इससे कम लाभ प्राप्त हुआ, उनके बारे में गहराई से अध्ययन किया गया, तो पता चला क या तो वे बहुत पुराने रोगी थे अथवा वंशानुगत क्रम से एक-दूसरे में व्याधि चली आ रही थी।

हृदय रोग भी उक्त संस्थान में कुछ आरंभिक परीक्षण किये गये हैं, जिनका परिणाम काफी उत्साहवर्धक पाया गया है। जिन लोगों का हृदय संबंधी तकलीफें बनी रहती थीं, उन्हें कुछ विशेष प्रकार के आसनों का अभ्यास करने की सलाह दी गई। एक वर्ष उपराँत उनकी तकलीफें घटती देखी गई।

पोलैण्ड के ‘थर्डक्लीनिक ऑफ मेडिसिन’ में भी यौगिक क्रियाओं पर गहराई से अध्ययन हुआ है। अध्ययनों के उपराँत वहाँ के शोधकर्मी जिस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं, वह यह है कि यदि व्यक्ति ज्यादा नहीं तो कम-से-कम सर्वांगासन, हलासन, शवासन जैसे सरल आसनों को नियमित रूप से करता रहे तो भी उससे काफी फायदे होते हैं। सर्वांगासन का सीधा असर मस्तिष्क एवं मेरुदंड पर पड़ता है। मस्तिष्क में ही समस्त अंतःस्रावी ग्रंथियों को नियंत्रित करने वाला महत्वपूर्ण अवयव पीनियल ग्लैण्ड स्थित है। अंतः यदि इसे नियंत्रित किया जा सके, तो संपूर्ण अंतः स्रावी तंत्र ही संतुलित हो जाता है, ऐसा विशेषज्ञों का कथन है।

इस प्रकार विज्ञान ने भी अब यह सिद्ध कर दिखाया है कि सामान्य कसरतों की तुलना में आसनों का हलका-फुलका व्यायाम कहीं अधिक प्रभावकारी और स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी है। इसके करते रहने से माँसपेशियों में खिंचाव एवं सूक्ष्म अवयवों में दबाव पड़ता रहता है। अतः इसके सम्पादन स्वास्थ्य संवर्धन एवं आत्मोत्कर्ष का दुहरा लाभ मिलता है, इसे किया ही जाना चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118