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June 1994

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अनंत शास्त्रं बहुलाश्च विद्या अल्पश्चकालो बहुविध्नता च । यत्सार भूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीर मिवाम्बुमध्यात् ॥पंचतंत्र कथामुख

शास्त्र अनंत है, विद्याएँ अनेक है जीवन की अवधि थोड़ी है और विघ्न बहुत हैं । अतः जिस प्रकार हंस पानी अलग कर केवल दूध ही ले लेता है, वैसे ही हमें भी शास्त्रों का सार तत्व ग्रहण करके उसकी उपासना में लग जाना चाहिए ।


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