बाँसों का झुरमुट (kahani)

April 1985

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पास ही बाँसों का झुरमुट- पास ही आम का पेड़। बाँस ऊँचा था, आम छोटा। एक दिन बांस ने कहा- देखते नहीं मैं कितना बड़ा हो चला, कितनी तेजी से बड़ा, एक तुम हो जो इतनी आयु होने पर भी अभी छोटे ही बने हुए हो।

आम ने बाँस के सौभाग्य को सराहा पर अपनी स्थिति पर भी असन्तोष व्यक्त नहीं किया।

समय बीतता गया। बाँस पककर सूख चला। किन्तु आम की डालियाँ फलों से लदी और वह अधिक झुक गया।

बाँस फिर इठलाया। देखते हो मैं सुनहरा हो चला और बिना पत्तियों के भी दूर-दूर से कितना सुनहरा दिखता हूं। एक तुम हो, जिसे फलों से लदने पर भी नीचा देखना पड़ रहा है।

आम ने फिर भी अपने सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा, बाँस की सराहना भर कर दी।

एक आया यात्रियों का झुण्ड। ठहरने के लिए आश्रय की तलाश थी। सो फलों से लदा छायादार आम का पेड़ सबको सुहाया। डेरा डाल कर वे वहाँ रात्रि विराम करने लगे।

जरूरत आम की पड़ी- भोजन पकाने के लिए। नजर दौड़ाई तो पास में भी सूखा बाँस खड़ा दिखा, और काटा, जलाना आरम्भ कर दिया।

बाँस बड़बड़ाने लगा। पर आम ठहरे यात्रियों को सुख पाते देखकर सन्तोष की साँस लेता रहा।


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