एक संत थे। जो उनके निकट पहुँचता उसकी वे सहायता करते। दिन भर गुफा में रहते। सूर्यास्त के उपरान्त ही कुछ समय के लिए गुफा से बाहर निकलते।
एक आपत्तिग्रस्त आया। उसने सन्त का पल्ला पकड़ लिया और बोला तब छोड़ूंगा जब अपना कष्ट दूर करा लूँगा।
संत ने छुड़ाते हुए कहा- पल्ला ईश्वर का पकड़ो। मनुष्य तो एक दूसरे की सीमित सहायता ही कर सकते हैं।