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April 1985

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ॐ श्रद्धयाग्निः समिध्यते श्रद्धया हयते हविः। श्रद्धां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि॥ -ऋग्वेद मं0 10 अ॰ 11 सू0 141

अर्थात्- श्रद्धा से अग्नि समिद्ध की जाती है। श्रद्धा से अग्नि में हविष्य का हवन किया जाता है। सम्पूर्ण लौकिक, पारलौकिक, अलौकिक सम्पत्तियों में श्रेष्ठ श्रद्धा ही है। यह तथ्य हम सर्व साधारण के लिए घोषित करते हैं।


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