यह भयावह घटाटोप तिरोहित होगा।

April 1985

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अगला समय संकटों से भरा-परा है, इस बात को विभिन्न मूर्धन्यों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार विभिन्न प्रकार से जोरदार शब्दों में कहा है।

ईसाई धर्म ग्रन्थ बाइबिल में जिस “सैविन टाइम्स” में प्रलय काल जैसी विपत्ति आने का उल्लेख किया है, उसका ठीक समय यही है। इसलाम धर्मों में चौदहवीं सदी के महान संकट का उल्लेख है। भविष्य पुराण में इन्हीं दिनों महत्ती विपत्ति टूट पड़ने का संकेत है। सिक्खों के गुरु ग्रन्थ साहब में भी ऐसी ही अनेकों भविष्यवाणियाँ हैं। कवि सूरदास ने इन्हीं दिनों विपत्ति आने का इशारा किया है मिश्र के पिरामिडों में भी ऐसे ही शिलालेख पाये गये हैं।

अनेकों भारतीय भविष्य वक्ताओं ने इन दिनों भयंकर उथल-पुथल के कारण अध्यात्म आधार पर और दृश्य गणित ज्योतिष के सहारे ऐसी ही सम्भावनाएँ व्यक्त की हैं।

पाश्चात्य देशों में जिन भविष्य वक्ताओं की धाक है और जिनकी भविष्य वाणियों 99 प्रतिशत सही निकलती रही हैं, उनमें जीन डिक्सन, प्रो0 हरार, एण्डरसन, जॉन बावेरी, कीरो, आर्थर क्लार्क, नोस्ट्राडेमस, मदर शिप्टन आनन्दचार्य आदि ने इस सम्बन्ध में जो सम्भावनाएँ व्यक्त की हैं, वे भयावह हैं। कोरिया में पिछले दिनों समस्त संसार के दैवज्ञों का एक सम्मेलन हुआ था, उसमें भी डरावनी सम्भावनाओं की ही तबाही व्यक्त की गयी थी। टोरोन्टो कनाडा में- संसार भर के भविष्य विज्ञान विशेषज्ञों (फयूचरॉण्टालाजीस्टो) का एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें वर्तमान परिस्थितियों का पर्यवेक्षण करते हुए कहा था कि बुरे दिन अति समीप आ गये। ग्रह नक्षत्रों से पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने वालों ने इन दिनों सूर्य पर बढ़ते धब्बों और लगातार पड़ने वाले सूर्य ग्रहणों धरती निवासियों के लिए हानिकारक बताया है। इन दिनों सन् 85 में उदय होने वाला “हैली” धूमकेतु की विषैली गैसों का परिणाम पृथ्वी वासियों के लिए हानिकारक बताया गया है।

सामान्य बुद्धि के लोग भी जानते हैं कि अन्धा-धुन्ध बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अगले दिनों अन्न जल तो क्या सड़कों पर चलने को रास्ता तक न मिलेगा। औद्योगीकरण की भरमार से मशीनें हवा और पानी भी कम पड़ रहा है और विषाक्त हो चला है। खनिज तेल और धातुएँ, कोयला, पचास वर्ष तक के लिए नहीं है। अणु परीक्षणों से उत्पन्न विकिरण से अगली पीढ़ी और वर्तमान जन समुदान को कैंसर जैसे भयानक रोगों की भरमार होने का भय है। कहीं अणु युद्ध हो गया तो इससे ने केवल मनुष्य वरन् अन्य प्राणियों और वनस्पतियों का भी सफाया हो जायेगा। असन्तुलित हुए तापमान से ध्रुवों की बर्फ पिघल पड़ने, समुद्र में तूफान आने और हिमयुग के लौट पड़ने की सम्भावना बताई जा रही है। और भी अनेक प्रकार के संकटों के अनेकानेक कारण विद्यमान हैं। इस संदर्भ का साहित्य इकट्ठा करना हो तो उनसे ऐसी सम्भावनाएँ सुनिश्चित दिखाई पड़ती हैं, जिनके कारण इन वर्षों में भयानक उथल−पुथल हो। सन् 2000 में युग परिवर्तन की जो घोषणा है, ऐसे समय में भी विकास से पूर्व विनाश की-ढलाई से पूर्व गलाई की सम्भावना का अनुमान लगाया जाता है। किसी भी पहलू से विचार किया जाय, प्रत्यक्षदर्शी और भावनाशील मनीषी-भविष्यवक्ता इन दिनों विश्व संकट को अधिकाधिक बहरा होता देखते हैं।

पत्रकारों और राजनैतिज्ञों के क्षेत्र में इस बार एक अत्यधिक चिन्ता यह संव्याप्त है कि इन दिनों जैसा संकट मनुष्य जाति के सामने है, वैसा मानवी उत्पत्ति के समय में कभी भी नहीं आया। शान्ति परिषद आदि अनेक संस्थाएँ इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि महाविनाश का जो संकट शिर पर छाया हुआ है, वह किसी प्रकार टले। छुटपुट लड़ाइयाँ तो विभिन्न क्षेत्रों में होती ही रहती हैं। शीत युद्ध किसी भी दिन महाविनाश के रूप में विकसित हो सकता है, यह अनुमान कोई भी लगा सकता है।

भूतकाल में भी देवासुर संग्राम होते रहे हैं, पर जन जीवन के सर्वनाश की प्रत्यक्ष सम्भावना का, सर्वसम्मत ऐसा अवसर इससे पूर्व कभी भी नहीं आया।

इन संकटों को ऋषि-कल्प सूक्ष्मधारी आत्माएँ भली प्रकार देख और समझ रही हैं। ऐसे अवसर में वे मौन नहीं बैठी रह सकतीं। ऋषियों के तप स्वर्ग, मुक्ति एवं सिद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं होते। यह उपलब्धियाँ तो आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने वाले शरीरधारी भी प्राप्त कर लेते हैं। यह महामानवों को प्राप्त होने वाली विभूतियाँ हैं। ऋषियों को भगवान का कार्य सम्भावना पड़ता है और वे उसी प्रयास को लक्ष्य मानकर संलग्न रहते हैं।

हमारे ऊपर जिन ऋषि का-दैवी सत्ता का अनुग्रह है, उनने सभी कार्य लोक मंगल के निमित्त कराये हैं। आरम्भिक 24 महापुरश्चरण भी इसी निर्मित कराये हैं कि आत्मिक समर्थता इस स्तर की प्राप्त हो सके, जिसके सहारे लोक-कल्याण के अति महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करने में कठिनाई न पड़े।

विश्व के ऊपर छाये हुए महान संकटों को टालने के लिए उन्हें चिन्ता है। चिन्ता ही नहीं प्रयास भी किये हैं। इन्हीं प्रयासों में एक हमारे व्यक्तित्व को पवित्रता और प्रखरता से भर देना भी है। आध्यात्मिक सामर्थ्य इसी आधार पर विकसित होती है।

उपासना का वर्तमान चरण सूक्ष्मीकरण के रूप में चल रहा है। इस प्रक्रिया के पीछे किसी व्यक्ति विशेष की ख्याति, सम्पदा, वरिष्ठता या विभूति नहीं है। एकमात्र प्रयोजन यही है कि मानवी सत्ता और गरिमा के लड़खड़ाते हुए पैर स्थिर हो सकें। पाँच वीरभद्रों के कन्धों पर वे अपना उद्देश्य लादकर उसे सम्पन्न भी कर सकते हैं। हनुमान के कन्धों पर राम और लक्ष्मण दोनों बैठे फिरते थे। यह श्रेष्ठता प्रदान करना भर है। इसे माध्यम का चयन कह सकते हैं। एक गाण्डीव धनुष के आधार पर किस प्रकार इतना विशालकाय महाभारत लड़ा जा सकता था। इसे सामान्य बुद्धि से असम्भव ही कहा जा सकता है। पर भगवान की जो इच्छा होती है, वह तो किसी न किसी प्रकार पूरी होकर रहती है। महाबली हिरण्याक्ष को शूकर भगवान ने फाड़-चीरकर रख दिया था, उसमें भी भगवान की ही इच्छा थी।

इस बार भी हमारी निज की अनुभूति है कि असुरता द्वारा उत्पन्न हुई-विभीषिकाओं को सफल नहीं होने दिया जायेगा। परिवर्तन इस प्रकार होगा कि जो लोग इस महाविनाश में संलग्न हैं, इसकी संरचना कर रहे हैं वे उलट जायेंगे या उनके उलट देने वाले नए पैदा हो जायेंगे। विश्व-शांति में भारत की निश्चित ही कोई बड़ी भूमिका हो सकती है।

समस्त संसार के मूर्धन्यों शक्तिवानों और विचारवानों की आशंका एक ही है कि विनाश होने जा रहा है। हमारा अकेले का कथन यह है कि उलटे को उलटकर सीधा किया जायेगा। हमारे भविष्य कथन को अभी ही बड़ी गम्भीरता पूर्वक समझ लिया जाय। विनाश की घटाओं को प्रचण्ड वायु का तूफानी प्रवाह अगले दिनों उड़ाकर कहीं से कहीं ले जायेगा और अन्धेरा चीरते हुए प्रकाश से भरा वातावरण दृष्टिगोचर होगा। यह ऋषियों के पराक्रम से ही सम्भावित है और इसमें कुछ दृश्यमान एवं कुछ परोक्ष भूमिका हमारी भी हो सकती है।


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