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Akhand Jyoti
Year 1985
Version 2
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April 1985
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एकान्त सेवन का उद्देश्य है, जन समुदाय के साथ उपयोगी आदान-प्रदान की क्षमता का अर्जन।
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Page Titles
VigyapanSuchana
आत्मा और परमात्मा की एकता
सौभाग्य सुयोग का आरम्भ
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तीन जन्मों का सम्बन्ध इस जन्म का समर्पण
सुकरात (kahani)
मार्ग दर्शक द्वारा चार हिमालय यात्राओं का निर्देश
बाँसों का झुरमुट (kahani)
तीनों कार्यक्रमों का प्राण-पण से निर्वाह
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सफलताओं के कुछ रहस्य सूत्र
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प्रथम बुलावा - पग-पग पर खतरे
दिन भर गुफा में रहते (kahani)
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बड़ी प्रशंसा सुनी (kahani)
हिमालय की कन्दराओं में ऋषि सत्ता से साक्षात्कार
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आमन्त्रण का प्रयोजन एवं भावी रूप रेखा का स्पष्टीकरण
दो मनों के मल्लयुद्ध में उत्कृष्ट की विजय
अध्यात्म का ध्रुव केन्द्र-देवात्मा हिमालय
द्वितीय हिमालय यात्रा एवं मथुरा के लिए प्रयाण
मथुरा के कुछ रहस्यमय प्रसंग
मथुरा का विचार क्राँति अभियान एवं प्रयाण की तैयारी
तीसरा हिमालय यात्रा-ऋषि परम्परा का बीजारोपण
शान्तिकुंज- गायत्री तीर्थ
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ऋषियों की पुरातन योजनाओं का शुभारम्भ एवं क्रियान्वयन
अण्डे बहा ले गया (kahani)
हमने जीवन भर बोया एवं काटा
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चौथा और अन्तिम निर्देशन
Kahaniचन्द्रमा ने डाँटकर कहा (kahani)
वीरभद्र यह करने में जुटेंगे
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हजरत मूसा सिनाई (kahani)
यह भयावह घटाटोप तिरोहित होगा।
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नवयुग का आगमन अतिनिकट है।
दीप के स्वर (kahani)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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