वीरभद्र यह करने में जुटेंगे

April 1985

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हमारी जिज्ञासाओं एवं उत्सुकताओं का समाधान गुरुदेव प्रायः हमारे अन्तराल में बैठकर ही किया करते हैं। उनकी आत्मा हमें अपने समीप ही दृष्टिगोचर होती रहती है। आर्ष ग्रन्थों के अनुवाद से लेकर प्रज्ञा पुराण की संरचना तक जिस प्रकार लेखन प्रयोजन में उनका मार्गदर्शन अध्यापक और विद्यार्थी जैसा रहा है, हमारी वाणी भी उन्हीं की सिखावन को दुहराती रही है। घोड़ा जिस प्रकार सवार के संकेतों पर दिशा और चाल बदलता रहता है, वही प्रक्रिया हमारे साथ भी कार्यान्वित होती रही है।

बैटरी चार्ज करने के लिए जब हिमालय बुलाते हैं, तब भी वे कुछ विशेष कहते नहीं। सेनीटोरियम में जिस प्रकार किसी दुर्बल का स्वास्थ्य सुधर जाता है, वही उपलब्धियां हमें हिमालय जाने पर हस्तगत होती हैं। वार्तालाप का प्रयोग अनेकों प्रसंगों में होता रहता है।

इस बार सूक्ष्मीकरण की प्रक्रिया और साधना विधि तो ठीक तरह समझ में आ गई और जिस प्रकार कुंती ने अपने शरीर में से देव सन्तानें जन्मी थीं ठीक उसी प्रकार अपनी काया में विद्यमान पाँच कोशों, अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय और आनन्दमय कोशों को पाँच वीर भद्रों के रूप में विकसित करना पड़ेगा, इसकी साधना विधि भी समझ में आ गई। जब तक वे पाँचों पूर्ण समर्थ न हो जाय, तब तक वर्तमान स्थूल शरीर को उनके घोंसले की तरह बनाये रहने का भी आदेश है और अपनी दृश्य स्थूल जिम्मेदारियाँ दूसरों को हस्तांतरित करने की दृष्टि से अभी शान्तिकुँज ही रहने का निर्देश है।

यह सब स्पष्ट हो गया। साधना विधान भी उनका निर्देश मिलते ही आरम्भ की दिया।

अब प्रश्न यह रहा कि पाँच वीरभद्रों को काम क्या सौंपना पड़ेगा और किस प्रकार वे क्या करेंगे। उसका उत्तर भी अधिक जिज्ञासा रहने के कारण अब मिल गया। इससे निश्चिन्तता भी हुई और प्रसन्नता भी।

इस संसार में आज भी ऐसी कितनी ही प्रतिभाएं हैं जो दिशा पलट जाने पर अभी जो कर रही हैं, उसकी तुलना में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य करने लगेंगी। उलटे को उलटकर सीधा करने के लिए जिस प्रचण्ड शक्ति की आवश्यकता होती है। उसी को हमारे अंग, अंश वीरभद्र करने लगेंगे। प्रतिभाओं की सोचने की यदि दिशा बदली जा सके तो उनका परिवर्तन चमत्कारी जैसा हो सकता है।

नारद ने पार्वती, ध्रुव, प्रहलाद, वाल्मीकि, सावित्री आदि की जीवन दिशा बदली, तो वे जिन परिस्थितियों में रह रहे थे, उसे लात मार कर दूसरी दिशा में चल पड़े और संसार के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन गये। भगवान बुद्ध ने आनन्द, कुमार जीव, अंगुलिमाल, अम्बपाली, अशोक, हर्षवर्धन संघ मित्रा आदि का मन बदल दिया तो वे जो कुछ कर रहे थे, उसके ठीक उल्टा करने लगे और विश्व विख्यात हो गये। विश्वामित्र ने हरिश्चन्द्र को एक मामूली राजा नहीं रहने दिया वरन् इतना वरेण्य बना दिया कि उनकी लीला अभिनय देखने मात्र से गाँधी जी विश्व बंध हो गए। महाकृपण भामाशाह को सन्त बिनोवा ने अन्तःप्रेरणा दी और उनका सारा धन महाराणा प्रताप के लिए उगलवा लिया। आद्य शंकराचार्य की प्रेरणा से मान्धाता ने चारों धामों के मठ बना दिये। अहिल्याबाई को एक सन्त ने प्रेरणा देकर कितने ही मन्दिरों घाटों का जीर्णोद्धार करा लिया और दुर्गम स्थानों पर नये देवालय बनाने के संकल्प को पूर्ण कर दिखाने के लिए सहमत कर लिया। समर्थ गुरु रामदास जी ने शिवाजी को वह काम करने की अन्तःप्रेरणा दी जिसे वे अपनी इच्छा से कदाचित ही कर पाते। रामकृष्ण परमहंस थे, जिन्होंने नरेन्द्र के पीछे पड़कर उसे विवेकानन्द बना दिया। राजा गोपीचन्द का मन वैराग्य में लगा देने का श्रेय सन्त भर्तृहरि का था।

ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है, जिसमें कितनी ही प्रतिभाओं को किन्हीं मनस्वी आत्म वेत्ताओं ने बदलकर कुछ से कुछ बना दिया। उनकी अनुकम्पा न हुई होती तो वे जीवन भर अपने उसी पुराने ढर्रे पर लुढ़कते रहते, जिस पर कि उनका परिवार चल रहा था।

हमारी अपनी बात भी ठीक ऐसी ही है। यदि गुरुदेव ने उलट न दिया होता तो हम अपने पारिवारिक जनों की तरह पौरोहित्य का धन्धा कर रहे होते या किसी और काम में लगे रहते। उस स्थान पर पहुँच ही न पाते, जिस पर कि हम अब पहुँच गये हैं।

इन दिनों युग परिवर्तन के लिए कई प्रकार की प्रतिभाएँ चाहिए। विद्वानों की आवश्यकता है, जो लोगों को अपने तर्क प्रमाणों से सोचने की नई पद्धति प्रदान कर सके। कलाकारों की आवश्यकता है, जो चैतन्य महाप्रभु, मीरा, सूर, कबीर की भावनाओं को इस प्रकार लहरा सकें, जैसे सपेरा साँप को लहराता रहता है। धनवानों की जरूरत है, जो अपने पैसे को विलास में खर्च करने की अपेक्षा सम्राट अशोक की तरह अपना सर्वस्व समय की आवश्यकता पूरी करने के लिए लुटा सकें। राजनीतिज्ञों की जरूरत है जो गाँधी, रूसो और कार्लमार्क्स, लेनिन की तरह अपने संपर्क के प्रजाजनों को ऐसे मार्ग पर चला सकें, जिसकी पहले कभी भी आशा नहीं की गई थी।

भावनाशीलों का क्या कहना? सन्त सज्जनों न न जाने कितनों को अपने संपर्क से लोहे जैसे लोगों को पारस की भूमिका निभाते हुए कुछ से कुछ बना दिया।

हमारे वीरभद्र अब यही करेंगे। हमने भी यही किया है। लाखों लोगों की विचारणा और क्रिया पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन किया है और उन्हें गाँधी के सत्याग्रहियों की तरह, विनोबा के भूदानियों की तरह, बुद्ध के परिव्राजकों की तरह अपना सर्वस्व लुटा देने के लिए तैयार कर दिया। प्रज्ञापुत्रों की इतनी बड़ी सेना हनुमान के अनुयायी वानरों की भूमिका निभाती है। इस छोटे से जीवन में अपनी प्रत्यक्ष क्रियाओं के द्वारा जहाँ भी रहे, वहीं चमत्कार खड़े कर दिये तो कोई कारण नहीं कि हमारी ही आत्मा के टुकड़े जिसके पीछे लगे, उसे भूत−पलीत की तरह तोड़ मरोड़ कर न रख दें।

अगले दिनों अनेकों दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन की आवश्यकता पड़ेगी। उसके लिए ऐसे गाण्डीव धारियों की, जो अर्जुन की तरह कौरवों की अक्षौहिणी सेनाओं करे धराशायी कर दे आवश्यकता पड़ेगी। ऐसे हनुमानों की जरूरत होगी जो एक लाख पूत-सवा लाख नाती वाली लंका को पूँछ से जलाकर खाक कर दे। ऐसे परिवर्तन अन्तराल बदलने भर से हो सकते हैं। अमेरिका के अब्राहमलिंकन और जार्ज वाशिंगटन बहुत गई-गुजरी हैसियत के परिवारों में जन्मे थे, पर वे अपने जीवन प्रवाह को पलट कर अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये।

प्रतिभा हीनों की बात जाने दीजिए, वे तो अपनी क्षमता और बुद्धिमता की चोरी, डकैती, ठगी जैसे नीच कर्मों में भी लगा सकते हैं, पर जिनमें भावना भर हो वे अपने साधारण पराक्रम से समय को उलटकर कहीं से कहीं ले जा सकते हैं। स्वामी दयानन्द, श्रद्धानन्द, रामतीर्थ जैसों के कितने ही उदाहरण सामने हैं, जिनकी दिशाधारा बदली तो वे असंख्यों को बदलने में समर्थ हो गये।

इन दिनों प्रतिभाएँ विलासिता में, संग्रह में, अहंकार की पूर्ति में निरत हैं। इसी निमित्त वे अपनी क्षमता और सम्पन्नता को विसर्जित करती रहती हैं। यदि इनमें से थोड़ी-सी भी अपना ढर्रा बदल दे तो गीता प्रेस वाले जय दयाल गोयन्दका की तरह ऐसे साधन खड़े कर सकती हैं जिन्हें अद्भुत और अनुपम कहा जा सके।

कौन प्रतिभा किस प्रकार बदली जानी है और उससे क्या काम लिया जाना है, यही निर्धारण उच्च भूमिका से होता रहेगा। अभी जो लोग विश्व युद्ध छेड़ने और संसार को तहस-नहस कर देने की बात सोचते हैं, उनके दिमाग बदलेंगे तो विनाश प्रयोजनों में लगने वाली बुद्धि, शक्ति और सम्पदा को विकास प्रयोजनों की दिशा में मोड़ देंगे। इतने भर से परिस्थितियाँ बदल कर कहीं से कहीं चली जायेंगी। प्रवृत्तियाँ एवं दिशाएँ बदल जाने से मनुष्य के कर्तव्य कुछ से कुछ हो जाते हैं और जो श्रेय मार्ग पर कदम बढ़ाते हैं उनके पीछे भगवान की शक्ति सहायता के लिए निश्चित रूप से विद्यमान रहती है। बाबा साहब आमटे की तरह वे अपंगों का विश्व विद्यालय कुष्ठ औषधालय बना सकते हैं। हीरालाल शास्त्री की तरह वनस्थली बालिका विद्यालय खड़े कर सकती है। लक्ष्मीबाई की तरह कन्या गुरुकुल खड़े कर सकती है।

मानवी बुद्धि की भ्रष्टता ने उसकी गतिविधियों को भ्रष्ट, पापी, अपराधी स्तर की बना दिया है। जो कमाते हैं, वे हाथोंहाथ अवाँछनीय कार्यों में नष्ट हो जाता है। सिर पर बदनामी और पाप का टोकरा ही फूटता है। इस समुदाय के विचारों को कोई पलट सके, रीति-नीति और दिशाधारा में बदल सकें, तो यही लोग इतने महान बन सकते हैं। ऐसे महान कार्य कर सकते हैं कि उनका अनुकरण करते हुए लाखों धन्य हो सकें और जमाना बदलता हुआ देख सकें।

इन दिनों हमारी जो सूक्ष्मीकरण साधना चल रही है, उसके माध्यम से जो अदृश्य महाबली उत्पन्न किये जा रहे हैं, वे चुपके-चुपके असंख्य अंतःकरणों में घुसेंगे, उनकी अनीति को छुड़ाकर मानेंगे और ऐसे मणि-माणिक्य छोड़कर आवेंगे जिससे वे स्वयं धन्य बना सकें और ‘‘समय परिवर्तन’’ जो अभी कठिन दिखता है, कल सरल बना सकें


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