श्री प्रफुल्लचन्द्र राय ने केवल आठ सौ रुपये की पूँजी से बंगाल केमिकल नामक औषधि निर्माण कारखाना प्रारम्भ किया था। उन्होंने संकल्प किया कि इस प्रतिष्ठान में बनी हुई कोई भी दवा विदेशी दवा से हलकी नहीं होगी। एक बार दवा बनाते समय कई सौ बोतलों का आसव कुछ बिगड़ा गया। कारखाने के एक कर्मचारी ने कहा-‘‘आसव थोड़ा ही बिगड़ा है। किसी को पता भी नहीं चलेगा। बाजार में आसानी से बिक जायगा। अन्यथा कम्पनी को बड़ा नुकसान होगा।’’ श्री राय ने दृढ़ता से जवाब दिया-‘‘ऐसी दवाओं से हानि होगी। जरा सी भी बदनामी अच्छी वस्तुओं के प्रसार में बाधक होती है। थोड़े रुपयों का नुकसान भविष्य में हमारी प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला होगा।’’ राय ने आसव को तत्काल फिंकवा दिया।
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