सन् 1930 में मिस्र की एक भावनाशील महिला-शा देवी -रोम में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन, में भाग लेने गई। उन्होंने पहली बार देखा कि संसार की नारी कितनी आगे निकल गई किन्तु मिस्र की महिलाएं कितनी पिछड़ी पड़ी हैं। बुर्के ने उनके मानवोचित अधिकारों को किस प्रकार अवरुद्ध कर रखा है। एक ओर सम्मेलन के विविध-विध कार्यक्रम चलते रहे। दूसरी और शा देवी एक संकल्प गढ़ने और उसे पूरा करने की योजना बनाने में लगी रहीं। वे एक निश्चय के साथ वापिस लौटीं।
जब वे मिस्र वापस लौटीं तो बन्दरगाह पर कितने ही नर-नारी उनका स्वागत करने पहुँचे। जहाज की सीढ़ियों से उतरते-उतरते उन्होंने सब के सामने अपना बुर्का उतार कर समुद्र में फेंक दिया। इस ऐतिहासिक घटना ने मिस्र में महिला जागरण की एक नई आग लगा दी। लाखों बुर्के उतार कर फेंक दिये गये और उसके बाद उस देश के प्रबुद्ध वर्ग ने एक प्रकार से पर्दे के उस प्रचलन को अमान्य ठहरा दिया, जिसे किसी जमाने के लोग धार्मिक कट्टरता के साथ बेतरह जोड़े चिपकाये बैठे थे।
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