उस आत्मा का सौभाग्य अटल (kavita)

August 1976

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औरों के हित जो मरता है,औरों के हित जो जीता है। उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘‘गीता’’ है॥

जो तृषित किसी को देख, सहज ही होता है आकुल-व्याकुल। जिसकी साँसों में पर -पीड़ा, भरती है अपना ताप अतुल॥

वह है ‘‘शकर’’ जो औरों की वेदना निरन्तर पीता है। उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘गीता’ है॥

जो सहज समर्पित जन-हित में होता है ‘‘स्वार्थ त्याग’’ करके। जिसके पग चलते रहते हैं, दुःख - दर्द मिटाने घर-घर के॥

वह है ‘‘दधीचि’’ जिसका जीवन जग-हित तप करके बीता है। उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘‘गीता’’ है॥

जिसका चरित्र, गंगाजल-सा है, स्वच्छ, विमल, पावन, उज्ज्वल। जिसके उर से सद्भावों की , धारा बहती कल-कल, छल-छल॥

वह है ‘’लक्ष्मण’’ जिसने पर-नारी को समझा ‘‘माँ सीता’’ है। उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘‘गीता’’ है॥

जिसका जीवन संघर्ष - बनी औरों की गहन समस्या है। तम में प्रकाश फैलाना ही, जिसकी आराध्य तपस्या है॥

जो प्यास बुझाता जन-जन की वह पनघट कभी न रीता है। उसका हर आँसू “रामायण” प्रत्येक कर्म ही “गीता” है॥

जिसने “जग के मंगल’’ को ही अपना जीवन व्रत मान लिया। “परिव्याप्त, विश्व के कण-कण में भगवान” तथ्य पहचान लिया॥

उस आत्मा का सौभाग्य अटल, वह ही “प्रभु की परिणीता”है। उसका हर आँसू “रामायण” प्रत्येक कर्म ही “गीता” है।

-माया वर्मा

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*समाप्त*


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