उस रात अल्लाह सपने में इब्राहीम के पास आये और बोले तेरी इबादत तो सही है, पर इसमें पूर्णता बलिदान के बिना कैसे आवेगी ?
मैं किसकी कुर्बानी करूं, मेरे पाक परवरदिगार ? इब्राहीम ने पूछा। उत्तर मिला-अपने प्यारे से प्यारे की।
इब्राहीम सोचने लगे मुझे सबसे ज्यादा प्यार तो अपने बेटे से है। क्या उसी की कुर्बानी करनी होगी? लड़का इस्माइल समझदार था सो उन्होंने उसी से सलाह लेना ठीक समझा और सपने का हाल सुनाया। बेटे ने कहा-मेरे प्यारे पिता अल्लाह के राह पर जो चीज दी गई, वह धन्य है। आप मेरी कुर्बानी खुशी-खुशी दे दें।
इब्राहीम बेटे को पवित्र वेदी के निकट ले गये और उसका सिर काटने पर उतारू हो गये।
आकाशवाणी ने कहा-सिर काटना कुर्बानी नहीं। बेटे को अल्लाह के काम में लगा दे। नष्ट करना नहीं-बलिदान का अर्थ है-नेकी की राह पर बलिवस्तु का समर्पण कर देना। तब से इब्राहीम के साथ उनका बेटा इस्माइल भी मिल्लत के लिए दिन-रात काम करने लगा।
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