स्वतन्त्रता के साथ स्वावलम्बन जुड़ा हुआ है। दोनों ही सिक्के के दो पहलू के समान हैं। स्वतन्त्र राष्ट्र कभी परावलम्बी नहीं होगा और परावलम्बी कभी स्वतन्त्र नहीं हो सकता क्योंकि परावलम्बन से परानुकृति आती है, परावलम्बन में हम अपने आपको पहिचान ही नहीं पाते।
-दीनदयाल उपाध्याय
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