कृष्ण की बाँसुरी ही वहाँ धरी थी। वे स्वयं कहीं गये थे। सूने घर में अर्जुन ने प्रवेश किया। एकाकीपन खला तो बाँसुरी से पूछने लगे—सुभगे, तुम्हें कृष्ण स्वयं हर समय होठों से लगाये रहते हैं, जब कि हम सब उनकी कृपा पाने के लिए बहुत प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो पाते, इसका रहस्य क्या है?
बाँसुरी हँस पड़ी—बोली मेरे अन्तर को देखो न, बिलकुल खाली है। उसमें बजाने वाले के स्वर ही गूँजते हैं। अपनेपन का अवरोध उसमें कहीं कुछ है ही नहीं। अपनेपन को गँवा कर किया गया सच्चा समर्पण सदा होठों से लगाये जाने योग्य ही तो होता है।