अनीति को जीवित रहते सहन नहीं करना चाहिये (kahani)

March 1974

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सोम नाथ का मन्दिर लूट कर महमूद गजनबी वापिस गजनी जा रहा था। उसके साथ एक लाख सेना थी।

एक पड़ाव पर जैसे ही सेना पहुँची कि डेढ़ सौ घुड़सवारों का एक जत्था लोहा लेने के लिये तीर की तरह बढ़ता आ रहा उनने देखा। टुकड़ों का नेतृत्व एक सत्तर वर्ष का बूढ़ा राजपूत कर रहा था।

महमूद गजनबी समझ नहीं सका कि इतनी छोटी टुकड़ी आखिर क्यों एक लाख सेना से लड़ कर अपने को समाप्त करने आ रही है। उसने दूत भेजा और इन लड़ाकुओं का मंतव्य पुछवाया।

बूढ़े नायक ने कहा— बादशाह से कहना — संख्या और साधन− बल में इतना अन्तर होने पर भी लड़ने का क्या परिणाम हो सकता है सो हम जानते हैं। पर भूलें यह भी नहीं कि अनीति को जीवित रहते सहन नहीं करना चाहिये।

घुड़सवारों की टुकड़ी जान हथेली पर, रख कर इस तरह लड़ी कि डेढ़ सौ न देखते−देखते डेढ़ हजार को धराशायी बना दिया। भारी प्रतिरोध में वह दस मर खप कर समाप्त हो गया। पर मरतेदम तक वे कहते यही रहे सदि हम प्रतिरोधी एक हजार भी होते तो इन एक लाख से निपटने के लिये पर्याप्त थे।

इस बिजली झपट लड़ाई का महमूद पर भारी प्रभाव पड़ा। वह राजपूतों की अद्भुत वीरता पर अवाक् रह गया। भविष्य की नीति निर्धारित करते हुए उसने नया आधार ढूँढ़ा। भारतीयों को बल से नहीं जीता जा सकता, उन पर विजय पाने के लिए छल का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि इस देश के निवासी छल से परिचित ही नहीं है।


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