परिषद के प्राँगण में लेखन के सभी उपकरण एकत्रित हुए और साहित्य सृजन में अपनी−अपनी भूमिका का बढ़−चढ़ कर उल्लेख करने लगे।
कलम ने कहा — जो कुछ लिखा गया है उसका श्रेय मुझे मिलना चाहिए। स्याही बोली— मेरे बिना लेखन का कार्य एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता। हाथों ने कहा — हम जो घिसते पिसते हैं —सो?
मस्तिष्क ने कहा— तुम सबका कथन अपने स्थान पर सही है। पर यह क्यों भूल जाते हो कि तुम लोगों से आगे भी कोई अदृश्य चेतना है जो उस प्रयोजन को पूरा करती है जिसका श्रेय लेने के लिए तुम्हारी आतुरता उमड़ रही है।