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Akhand Jyoti
Year 1974
Version 2
प्राण प्रतिष्ठा (kavita)
प्राण प्रतिष्ठा (kavita)
March 1974
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Page Titles
उपलब्धियों का सदुपयोग करना सीखें
भावना सर्वोपरि है, विधि−विधान नहीं
सहृदयता के संवर्धन से ही विश्व कल्याण सम्भव होगा
विज्ञान और दर्शन के समन्वय की आवश्यकता
सच्चा समर्पण (kahani)
हमारी बुद्धिमत्ता भयावह किस्म की मूर्खता सिद्ध न हो
साधन तो चाहिए ही! (कहानी)
प्रकृति का उपहार−अनुदान मक्खी जैसे जन्तुओं को भी मिला है
दधिची की पुण्य परम्परा फिर प्रचलित की जाय
हम पुरखों से हर क्षेत्र में पिछड़ ही नहीं रहें
गर्मी गर्मी ही नहीं शान्ति और शीतलता भी आवश्यक है
गंदगी की आदत छूटे तो कृमि कीटकों से जान बचे
रासायनिक आवेश हमें कठपुतली न बनाने पाये
श्रेय (kahani)
Quotation
कम खायें− अधिक जीयें
क्या सचमुच धर्म और राजनीति के दिन लद गये?
अनीति को जीवित रहते सहन नहीं करना चाहिये (kahani)
हमारा दृष्टिकोण दुराग्रही न हो
Quotation
मनोविकारों का अवरोध हमें अपँग बना देता है
उद्विग्नता ही स्वास्थ्य को चौपट करती है
देवताओं का धरती पर आगमन एक तथ्य
अन्धकार को चुनौती (kahani)
आत्मबोध जीवन का सर्वोपरि लाभ
भारतेंदु हरिश्चंद्र का सहयोगभाव (कहानी)
योग शब्द के अर्थ का अनर्थ न किया जाय
राजेन्द्र बाबू की सादगी और सज्जनता (kahani)
अभीष्ट फलदायिनी गायत्री माता
Quotation
अपनों से अपनी बात - शान्ति कुँज में पाँच स्तर के शिक्षण शिविरों की शृंखला
VigyapanSuchana
प्राण प्रतिष्ठा (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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