अन्धकार को चुनौती (kahani)

March 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सूर्यदेव अस्ताचल उतरे तो उन्हें यह अभिमान सताने लगा कि उनके बाद धरती वालों की बड़ी दुर्गति होगी। सघन अन्धकार में वे पास की वस्तुएँ तक न देख सकेंगे और जरा भी दूर तक न चल सकेंगे।

अन्धेरा आया तो जरूर पर वैसा संकट उत्पन्न न हुआ जैसा कि सूर्यदेव सोचते थे। अन्धकार को चुनौती स्वीकार करते हुए असंख्यों लघुकाय दीपकों ने जलना आरम्भ कर दिया और अन्धेरे के बीच भी दुनिया के आवश्यक काम बिना रुके चलते रहे।

खिड़की खोलकर सूर्यदेव ने धरती वालों की स्थिति को देखा तो तथ्य स्पष्ट था। कि बड़ों के चले जाने पर भी भगवान की बनाई इस दुनिया में कहीं कुछ कार्य रुकता नहीं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118