अदूरदर्शितायुक्त बुद्धिमत्ता— मूर्खता से भी बुरी

June 1972

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आज के संबंध में सत्तर्क रहना चाहिए और उसे अच्छा बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए, पर कल की संभावना तथा आवश्यकता को भूल नहीं जाना चाहिए। ओछी दृष्टि को आज की या अभी की ही बात सूझती है। कल की संभावना को एक प्रकार से भुला ही दिया जाता है। परिणाम यह होता है कि आज के हास-विलास के पीछे न तो कल की आवश्यकता ध्यान में रहती है और न उस उपेक्षा के कारण उत्पन्न होने वाली भावी कठिनाइयों का ध्यान रहता है।

जो विद्यार्थी आज की मटरगश्ती में व्यस्त रहे और यार-दोस्तों के क्रीड़ा-विनोद में उलझे रहे। पढ़ने की बात भूल जाए तो उसे परीक्षा के समय निराश होना पड़ेगा। एक वर्ष मारा जाएगा। पाठशाला में नीची नजर रहेगी। अभिभावक दुखी होंगे और इसका प्रभाव उस छात्र के ऊपर भी अच्छा न पड़ेगा। मटरगश्ती में जो खुशी मिली थी, वह हलकी थी और उसकी तुलना में परीक्षा में असफल रहने की क्षति भारी है। तुलनात्मक विचार करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि तुरंत की तुच्छ प्रसन्नता के ऊपर भविष्य की महान प्रसन्नता का बलिदान करके भूल ही की गई। उस समय वह खेल-कूद ही सब कुछ दीखता था— दूरदृष्टि उस समय कुंठित थी। यदि आगे के परिणाम को देखा और समझा जा सका होता, उसका अनुमान लगाया गया होता तो वह भूल न की जाती। थोड़ा हास-विनोद पर्याप्त मान लिया जाता और साथ ही पढ़ने के नियत समय पर अध्ययन के लिए परिश्रम किया गया होता। दूरदर्शिता का अभाव ही उस विद्यार्थी के प्रगति-पथ में अवरोध बनकर खड़ा हो गया।

किसान बीज बोने के दिनों को इधर-उधर आलस में गँवा दे तो उसके खेत उजड़े ही पड़े रहेंगे। साल भर भूखा मरना पड़ेगा और सबके ताने सहने पड़ेंगे, कर्ज चढ़ेगा सो अलग। उस चटोरे व्यक्ति को क्या कहा जाए जो स्वाद ही स्वाद में गरिष्ठ और तीखे पदार्थ खाता चला जाता है और पीछे पेट के दरद, उलटी एवं दस्त से ग्रसित होकर दुख पाता है। उस नशेबाज को क्या कहा जाए, जो एक आवेश की तृप्ति के लिए अपना सब कुछ खोकर दर-दर  की ठोकरें खाता फिरता है।

यह मनुष्य जीवन अमृतफल प्राप्त करने के लिए है। इसे ठीक तरह सोचा जाए तो यह कल्पवृक्ष के रूप में परिणत हो सकता है। इसे ऐसे ही विषय-विकारों की फुलझड़ी में जलाकर भी समाप्त किया जा सकता है। समय और श्रम की संपदा को सही दिशा देकर एक से एक बड़े अनुदान-वरदान प्राप्त किए जा सकते हैं। महामानव—प्रकाश-स्तंभ—अजर-अमर और देवोपम श्रद्धास्पद बना जा सकता है। यदि उसका दुरुपयोग किया जाए तो इस जीवन में निंदित, घृणित, असफल, भारभूत और दुख-दरिद्रता से ग्रस्त बनकर नारकीय स्थिति में भी रहा जा सकता है।

प्रश्न केवल दूरदर्शिता और अदूरदर्शिता का है। अदूरदर्शी व्यक्ति क्षणिक आकर्षणों पर ही निछावर हो जाते हैं। भविष्य उन्हें न दीखता है, न सूझता है। मछली आटे को देखती है, काँटे को नहीं— चिड़िया दाने को देखती है, जाल को नहीं—अदूरदर्शी यही करते हैं। उनकी सारी समझ और सारी चेष्टा आज के अधिकाधिक लाभ और सुख पर केंद्रित रहती है। इस ओर उनका ध्यान जाता ही नहीं कि इसका परिणाम क्या होगा?

कल परमेश्वर के न्यायालय में उपस्थित होना ही पड़ेगा। जन्म-जन्मांतरों के भविष्य को अंधकारमय बनाने में लगी हुई आज की अपनी दुर्बुद्धि से अभी कुछ दोष नहीं दीखता, पर कल विदित होगा कि इस अदूरदर्शी बुद्धिमत्ता ने कैसा धोखा दिया और कैसे वह मूर्खता से भी बदत्तर सिद्ध हुई।


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