असंभव को संभव करने वाली महाशक्ति

June 1972

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भूमध्यसागर में ट्रीनडाड से 280 मील उत्तर की ओर 45 मील लंबा और 20 मील चौड़ा एक द्वीप है— 'मार्टीनीक'। यह द्वीप ऊँचे पर्वतों और सघन वनों से घिरा हुआ है। इनमें से एक सबसे ऊँचे पर्वत शिखर माउंट पेली के उत्तरी सिरे पर एक ज्वालामुखी बहुत दिनों से अपना अस्तित्व बनाए हुए है। ज्वालामुखी का नाम है— 'ला मांतोन।' इस द्वीप का प्रमुख नगर है— 'सेंट पियरे'।

यह ज्वालामुखी अठारहवीं सदी में प्रकट हुआ था। सन् 1851 के छोटे विस्फोट की भी लोगों को याद थी। उसमें गर्जन-तर्जन ही दिखाया था। कभी कोई बड़ी हानि नहीं पहुँचाई थी, पर सत्तर वर्ष पूर्व तो ऐसा मचला कि एक प्रकार से उस क्षेत्र के लिए प्रलय ही उपस्थित कर दी।

23 अप्रैल को अचानक ला मांतोन सक्रिय हुआ। माउंट पेली के पश्चिमी और दक्षिणी ढलान पर राख और अंगारे बरसने शुरू हुए। भूकंप जैसे झटके लगे। दो दिन बाद ज्वालामुखी उग्र हो उठा। चट्टानें लाल पड़ गईं। आग का भयंकर गुब्बारा फूट पड़ा। राख की दूर-दूर तक वर्षा होने लगी। सेंट पियरे नगर के निवासी गर्मी से अकुलाने लगे, पर वे सोचते रहे कि यह कोई सामयिक घटना है। दो-चार दिन में सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा।

दो सप्ताह तक ऐसी ही गड़बड़ चलती रही। 7 मई को प्रभात होने भी न पाया था कि माउंट पेली ने भयंकर रूप से गर्जन आरंभ कर दिया और ज्वालामुखी से रंग-बिरंगी ज्योति-किरणें चमकने लगीं। समुद्र में भारी तूफान आया। चट्टानें और मिट्टी उछल-उछलकर चारों ओर बिखर गए। समुद्रतट पर हजारों टन मछलियों की लाशें जमा हो गई।

इस स्थिति में नागरिक चिंतित तो थे, पर यह किसी को आशा न थी कि स्थिति कुछ असाधारण या अप्रत्याशित हो उठेगी। देहात से ग्रामीण जनता भागकर शहर को आ रही थी। उसका ख्याल था कि शहर अधिक सुरक्षित होते हैं। स्थिति बिगड़ती देखकर तत्कालीन गवर्नर मौट्टेत ने स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक समिति नियुक्त की। उसने भी यह निष्कर्ष निकाला कि बड़े खतरे जैसी कोई बात नहीं है।

सवेरे के आठ बजे ज्वालामुखी का मुँह फटा। घनी काली भाप, तोप जैसी कर्णबेधी ध्वनि के साथ निकली और आकाश में दूर-दूर तक छा गई। काली छतरी की तरह अंधकार उत्पन्न करती हुई, वह गिलगिली भाप तेजी से उठी और उसने एक प्रकार से अपनी चादर में सारा क्षेत्र ढक लिया। लोग हक्का-बक्का हो गए। क्या हो रहा है, क्या होने वाला है और क्या किया जाए? किसी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।

उबलती हुई भाप ने जलप्रलय जैसा रूप बनाया और वह इस तरह दौड़ी मानो नगर को निगल जाना ही उसका लक्ष्य हो। आगे-आगे धूल उड़ रही थी और  पीछे धुँआ उमड़ रहा था। उससे आग की लपटें और रंग-बिरंगी बिजली-सी चमक उठ रही थी। उसके पीछे भाप का तूफान लहराता चला आ रहा था। देखते-देखते उसने सारे नगर को अपनी कुंडली में कस लिया। भट्टी में पड़े हुए लकड़ी के टुकड़े की तरह सारा नगर अपनी शोभा-सुषमा खोकर अग्निमय हो गया।

तूफान की भयानकता रोमांचकारी थी। बंदरगाह पर खड़े जहाज उलटकर डूब गए। जो डूबने से बच गए, उनने अपने लंगर खोल दिए और लड़खड़ाते हुए खुले समुद्र में किसी भी ओर भागे। जो तट से दूर थे, उन्होंने अपने कदम पीछे मोड़ लिए।

विस्फोट इतना तीव्र और इतना आकस्मिक था कि उस द्वीप के निवासी कई घंटों तक यह समझ ही न सके कि कहाँ क्या हो रहा है? गवर्नर ने गश्ती जहाज को स्थिति का पता लगाने भेजा तो जलते हुए सेंट पियरे तक पहुँच सकना उसके लिए संभव न हो सका। शक्तिशाली दूरबीनों से सिर्फ इतना देखा, जाना जा सका कि नगर एक चिता की तरह जलकर बुझने की स्थिति में मुरझाता जा रहा था। राडडम जहाज का कप्तान अपने जहाज को भगाकर पड़ौस के द्वीप सेंट लूशिया के कैस्त्रीज बंदरगाह के लिए ले जाने लगा तो गर्मी से उसके हाथों का माँस लटक गया, बाईस नाविक तो डेक पर ही झुलसकर मर गए।

तूफान में जब हलकापन आया और स्थिति का लेखा-जोखा लिया गया तो पता चला कि तीस हजार की आबादी में तीन व्यक्ति जले-भुने सिसकते मिले, जो कुछ ही घंटे बाद मर गए।

इस समस्त नगर में एक ही व्यक्ति जीवित बचा। वह था— जेल में कैद पच्चीस वर्षीय 'आगस्त सिल्वेयरिस'। उसे यातनापूर्ण कैद की सजा मिली थी और जमीन के नीचे एक कोठरी में बंद करके रखा गया था। इस कोठरी में हवा के लिए एक छोटा सा छेद दरवाजे के पास था। तीन दिन बाद जब नगर की खोज-खबर लेना संभव हुआ तो जेलखाने के खंडहरों में से किसी के कराहने की आवाज आई। मलबा खोदकर निकाला गया तो ‘आगस्त’ जीवित बचा हुआ पाया गया।

विस्फोट ने सेंट पियरे नगर को पूरी तरह निगल लिया। इसके आगे वाले क्षेत्र में भी जीवित प्राणी कोई नहीं बचा, पर वहाँ तक प्रवाह हलका हो जाने से संपत्ति की हानि उतनी नहीं हुई। इसके बाद में वृक्ष-वनस्पति जल गए, पर मनुष्यों ने भागकर अपनी जान बचा ली। मृत्यु का प्रवाह कुछ ऐसा विचित्र बहा कि जहाँ एक सीमा रेखा का सब कुछ नष्ट हो गया, वहाँ उसके पास की सीमा रेखा में किसी का कुछ भी नहीं बिगड़ा। अनुमान किया जाता है कि उस विस्फोट में कम से कम 2000 डिग्री फारेनहाइट गर्मी थी। भाप और धुएँ के साथ इतने घातक और विषैले पदार्थ भरे थे कि उनकी चपेट में जो भी आया, बच न सका। विस्फोट की गैस ने उस क्षेत्र के अधिकांश लोगों के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डाला और वे बहुत दिनों तक बीमारियों के ग्रास बने कराहते रहे।

मनुष्य अकेला नहीं है। उसके साथ उसका भगवान भी है। जिसे वह बचाना चाहता है, उसे किसी तरह भी बचा लेता है। जैसे— इस प्रलयंकारी तूफान में समस्त नगर जल जाने पर भी सेंट पियरे का जमींदोज दी बच गया। मनुष्य ने उसके मारने में कमी न रखी। जिस स्थिति में उसे कैद रखा गया था, उसमें बहुत दिन जीवित नहीं रह सकता था। जब भगवान को बचाना हुआ तो इस तरह बच गया, जिसे देखकर भौतिक नियमों को ही सब कुछ मानने वाले लोगों को चकित रह जाना पड़ता है।

प्रहलाद का जीवनक्रम ऐसा ही है। उसका पिता हिरण्यकश्यप तथा उसकी बुआ होलिका उसे मार डालने के लिए हर क्षण प्रयत्न करते रहे, पर बचाने वाले ने बताया कि मनुष्य से भगवान की शक्ति अधिक है। मारने वाला ही सब कुछ नहीं— बचाने वाला भी ‘कुछ’ है। कुम्हार के धधकते हुए अवे में से जब बिल्ली के बच्चे जीवित निकले तो प्रहलाद को विश्वास हो गया कि भौतिक नियमों से ऊपर भी कोई दिव्य नियम-व्यवस्था मौजूद है। यदि यह सहायक हो तो बड़ी से बड़ी आपत्तियों का शमन हो सकता है।

संत कबीर ने इस सत्य को अधिक गहराई के साथ जाना था, और उनने हर किसी से कहा था— "संसार के विरोध और अवरोध की चिंता न करके उस परम शक्तिशाली को पकड़ा जाए, जिसके अनुकूल रहने पर संसार की समस्त प्रतिकूलताएँ निरस्त हो जाती हैं।" कबीर का एक दोहा याद रखने के ही योग्य है—

'जाको राखै साइयाँ, मार न सकता कोय।

बाल न बाँका कर सके जो जग बैरी होय॥'

सेंट पियरे की उस रोमांचकारी दुर्घटना में सब कुछ दुखदायक दुर्घटना भरा चित्रण ही है, वहाँ एक प्रकाश की किरण भी विद्यमान है। वह यह की कोई समर्थ सत्ता ऐसी है, जो चाहे तो घोर विभीषिकाओं के प्रस्तुत रहते भी किसी को उबार सकती है।

हम ऐसी महान सत्ता का मजबूती से पल्ला पकड़ें तो उसमें अपना ही हितसाधन है।



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