प्रेमी का हृदय दीनों का भवन है और भगवान का हृदय प्रेमी का वासस्थान है। प्रेमी के हृद्देश में दरिद्र नारायण ही एकमात्र प्रेमपात्र है। दरिद्र सेवा ही सच्ची ईश्वरसेवा है। दीन-दुखियों के दर्द का मर्मी ही महात्मा है। गरीबों की पीर जानने वाला ही सच्चा पीर है।
— कबीर