प्रेम और आत्मीयता का प्राणीमात्र पर प्रभाव

June 1972

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सद्भावनाओं का, प्रेमपूर्ण अंतःकरण का मनुष्यों पर ही नहीं, पशुओं पर भी प्रभाव पड़ता है— इस तथ्य को प्रतिपादित करने में इंग्लैंड के एक सामान्य व्यक्ति ने न केवल तर्क प्रस्तुत किए, वरन प्रामाणिकता की प्रतिमा बनकर स्वयं ही खड़ा हो गया। उसने न केवल सामान्य पशुओं पर प्रेम की प्रतिक्रिया का प्रदर्शन किया, वरन यह भी साबित कर दिया कि खूँखार, उद्दंड और जंगली जानवरों को भी सभ्य और मृदुल बनाया जा सकता है। इस व्यक्ति का नाम था— 'जान सोलेमन रेरी'।

उसके पिता ओहियो प्रदेश के फ्रेंकलिन गाँव में रहते थे। नाम था— 'एडम रेरी'। उनने एक घोड़ा खरीदा। घोड़ा जितना शानदार था, उतना ही सस्ता भी। एडम ने सोचा कि इसे सधा लेंगे, पर वह बहुत ही खूँखार था। उसे सिखाने-सधाने के लिए दूर-दूर से क्रमशः एक दर्जन से भी अधिक घुड़सवार बुलाए गए, पर वे सभी असफल रहे। घोड़ा किसी के काबू में न आया। एडम ने स्वयं उसे काबू में लाने की कोशिश की और कोड़े मारे। क्रुद्ध घोड़े ने रस्सों से बँधे होते हुए भी उन्हें ऐसा पछाड़ा कि टाँग टूट गई। उन्हें अस्पताल भिजवाया गया। घोड़ा छूट निकला। उसे खतरनाक समझकर पुलिस द्वारा उसे मरवा देने का निश्चय किया गया।

बालक जान रेरी उन दिनों सिर्फ 12 वर्ष का था। उसने सारी स्थिति समझी और सीधा उस जंगल में चला गया जहाँ घोड़ा-चौकड़ियाँ भर रहा था। लोगों को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ जब उन्होंने देखा कि लड़का बिना लगाम और जीन के उस घोड़े की पीठ पर बैठा हुआ घर आ रहा है। पूछने पर उसने बताया कि, "यह कोई जादू नहीं है। मुहब्बत यदि गहरी और सच्ची हो तो खूँखार पशुओं को भी वशवर्त्ती बनाया जा सकता है।"

बालक की ख्याति घोड़ों के शिक्षक के रूप में फैल गई। लोग अपने-अपने उद्दंड घोड़े ठीक कराने उसके पास लाने लगे। सिलसिला घोड़ों का चल पड़ा तो उसने वही काम हाथ में ले लिया। कई वर्ष तक उसे यही काम करना पड़ा। बीस वर्ष का होते-होते वह सरकस के लिए घोड़े सधाने की कला में निष्णात हो गया। उसने उन्हें ऐसे-ऐसे विचित्र खेल सिखाए, जो उससे पहले सरकसों में कहीं भी नहीं दिखाए जाते थे। इससे पहले घोड़े सधाने की कला उन्हें पीटने, भूखा रखने, पैरों में कीलें ठोकने जैसे निर्दयतापूर्ण तरीकों पर अवलंबित थी। रेरी ने सिद्ध किया कि उससे कहीं अधिक कारगर प्यार-मुहब्बत का तरीका है। वह कहता था कि, "यदि जानवरों को प्यार मिले तो न केवल पालतू प्रकृति के पशु, वरन नितांत जंगली और मनुष्य से सर्वथा अपरिचित जानवर भी वशवर्त्ती, सहयोगी एवं सरल प्रकृति के बन सकते हैं।" यह उसने सिर्फ कहा ही नहीं, वरन करके भी दिखाया।

जब घोड़े ही उसके पल्ले बँधने लगे तो उसने उनकी आदतें समझने के लिए कई महीने जंगली घोड़ों के साथ रहने की व्यवस्था बनाई। उनकी रुचि और प्रकृति को समझा। उन्हें बदलने एवं सधाने के आधार ढूंढ़े और अपने विषय में पारंगत हो गया। रेरी ने चुनौती दी कि कोई कितना ही भयंकर घोड़ा क्यों न हो वह उसे कुछ ही दिनों में, कुछ ही घंटों में वशवर्त्ती बना सकता है। पत्रों में छपी इस चुनौती ने घोड़ेवालों में भारी दिलचस्पी पैदाकर दी। अब से लगभग 125 वर्ष पूर्व घोड़े ही युद्ध और यातायात के प्रमुख माध्यम थे। मोटरें तो तब थी नहीं। बड़े लोग घोड़े ही पालते थे। कृषि और वाहन प्रयोजनों के लिए उन्हें ही काम में लाया जाता था। बड़े और बिगड़े घोड़ों की संख्या भी कम नहीं थी। वे मालिकों के लिए सिरदर्द बने हुए थे। कीमती होने के कारण उन्हें न मारा जा सकता था और न भगाया जा सकता था। उन्हें कोई खरीदता भी नहीं था। उन पर होने वाले खर्च तो बेकार थे ही, साथ ही जान-जोखिम की आशंका भी बनी रहती थी। ऐसे घोड़े आए दिन रेरी के पास आते और उन्हें अनुशासित बनाया जाता था।

छपी चुनौती से प्रभावित होकर लार्ड डारचेस्टर ने रेरी का द्वार खटखटाया। उसने 15 हजार डालर से घुड़दौड़ में बाजी जीतने के लिए एक बलिष्ठ घोड़ा  खरीदा था। कुछ दिन तो वह ठीक रहा, पर पीछे वह बेकाबू हो गया। लोहे की जंजीरें तोड़ देता, जंगले उखाड़ देता और कभी-कभी गुस्से से अपनी ही अगली टाँगें काट लेता। उसके लिये ईंटों की कालकोठरी बनानी पड़ी। उसी में चारा-दाना दिया जाता। पूरे चार वर्ष उसे उसी कोठरी में बंद रहते हो गए थे। ढेरों खर्चीले उपाय कर लिए गए थे, पर वह किसी तरह काबू में नहीं आया। उसे अंधा बनाने की बात सोची जा रही थी ताकि कम खतरनाक रह जाए और उसे दौड़ाने में काम लाया जा सके। उसका नाम था— क्रूजर।

लार्ड डारचेस्टर ने उस घोड़े को ठीक करने की चुनौती दी। रेरी ने उसे स्वीकार कर लिया। उसे ही यूरेल्स ग्रीन जाना पड़ा, क्योंकि घोड़ा लंदन तो आ नहीं सकता था। उस समय घोड़ा अत्यंत क्रुद्ध था। कोठरी के दरवाजे तोड़ने में लगा हुआ था। उसकी भयंकर स्थिति देखकर लोगों ने समझाया कि वह इसे सुधारने के झंझट में न पड़े और वापिस चला जाए, पर रेरी अपनी बात पर अड़ा ही रहा। उसे विश्वास था कि वह किसी भी भयंकर जानवर को— इस घोड़े को भी अनुशासित कर सकता है।

रेरी सीधा घोड़े की कोठरी में निहत्था घुस गया। उसने उसकी पीठ और गरदन सहलाई और तीन घंटे तक उसके साथ बातें करता हुआ दुलारता रहा। जब वह घोड़े के साथ उसकी गरदन के बाल पकड़े कोठरी से बाहर आया तो दर्शकों ने उसे जादूगर कहा, पर वह यही कहता रहा कि, "यदि प्रेम को जादू कहा जाए तो ही उसे जादूगर कहलाना मंजूर है। उसके पास कोई मंत्र-तंत्र नहीं है।"

लार्ड डारचेस्टर इस सफलता पर भावविभोर हो गए। उनने घोड़े को उपहारस्वरूप रेरी को भेंट किया और साथ ही एक बड़ी धनराशि भी दी। विदाई के अवसर पर लार्ड महोदय ने कहा—”यदि रेरी की नीति मनुष्य जाति ने अपनाई होती, तो उसके ईसाई धर्म का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो जाता।”

महारानी विक्टोरिया ने रेरी की ख्याति सुनी तो उनने भी उसकी कला देखने की इच्छा प्रकट की। शाही निमंत्रण देकर उसे बुलाया गया। प्रदर्शन में रेरी के सामने एक ऐसा घोड़ा प्रस्तुत किया गया जो पहले तीन घुड़सवारों का कचूमर निकाल चुका था। रेरी उसकी कोठरी में निर्भयतापूर्वक घुस गया और सोलह मिनट बाद उस पर सवार होकर बाहर आया। दूसरे घोड़े को तो उसने दस मिनट में ही वशवर्त्ती कर लिया।

अब उसे एक अत्यंत खतरनाक ऐसे घोड़े का सामना करना था जिसने दो घुड़सवारों की पहले ही जान ले ली थी। रेरी घुड़साल में भीतर गया और भीतर से कुंडी बंद कर ली। साथ ही यह भी निर्देश दिया कि, "जब तक वह कहे नहीं तब तक कोई उसे छेड़ने या दरवाजा खोलने की कोशिश न करे।"

घोड़ा अत्यधिक भयंकर था। महारानी सहित प्रतिष्ठित दर्शक रेरी के निहत्थे और एकाकी भीतर घुसने से बहुत चिंतित थे, पर वह घुसा सो घुसा ही रहा।   जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था अधीरता बढ़ती जा रही थी। जब पूरे तीन घंटे बीत गए और भीतर से कोई हलचल सुनाई न दी तो यही समझ लिया गया कि घोड़े ने रेरी को मार डाला। निदानस्वरुप, दरवाजा तोड़ने का आदेश हुआ। भीतर जो कुछ देखा गया उससे सभी स्तब्ध रह गए। घोड़ा फूस के ढेर पर सोया हुआ था और उसकी टाँग का तकिया लगाए रेरी भी खर्राटे भर रहा था। दोनों की नींद खुली। वे परम मित्र की तरह साथ-साथ अस्तबल से बाहर आए तो महारानी विक्टोरिया को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ। वे यह न समझ सकीं कि इतना खूँखार घोड़ा किस प्रकार इतनी जल्दी इतना नम्र बन सकता है।

रेरी ने अपनी कला का प्रदर्शन टैक्सास में किया। जिसमें दूर-दूर से दर्शक और पत्रकार आए थे। उसके सामने चार ऐसे घोड़े पेश किए गए जो जंजीरों से कसे रहते थे और चारों ही अपने मालिकों का खून कर चुके थे। रेरी पौने तीन घंटे सींखचे वाली कोठरियों में अकेला उनके साथ रहा और फिर चारों को अपने साथ खुले मैदान में ले आया। उसने घोड़ों को लेटने का आदेश दिया तो वे बिल्ली की तरह लेट गए। दर्शकों ने भारी हर्षध्वनि की।

एक बार तो उसने जंगली बारहसिंगों के एक जोड़े को पालतू कुत्तों जैसा बना लिया और वह उन्हें साथ लेकर प्रेम, दया और आत्मीयता के इस प्रत्यक्ष प्रभाव का प्रदर्शन करता हुआ गाँव-गाँव घूमा।

यों लोग उसे घोड़ों का शिक्षक या जादूगर भर मानते थे, पर वस्तुतः वह प्रेम का प्रयोक्तामात्र था। जो कुछ उसने किया, वह सिर्फ इसलिए कि सर्वसाधारण को आत्मीयता की शक्ति का थोड़ा-सा आभास मिल सके। इस महान मंतव्य की शिक्षा देने के लिए वह देश-देश में घूमा और उसने सर्वसाधारण को यही समझाया कि यदि प्रेम और करुणा की नीति को अपनाया जा सके तो न केवल सच्चे अर्थों में धर्मात्मा बना जा सकता है, वरन पारस्परिक विग्रह की समस्त समस्याओं को देखते-देखते सुलझाया जा सकता है।

रेरी अपने मिशन का प्रचार करने के लिये स्वीडन प्रशिया, मिश्र, फ्रांस, रूस, अमेरिका आदि अनेक देशों में गया और उसने वहाँ घोड़ों पर किए गए अपने प्रयोगों की चर्चा करते हुए प्रेम के परिणाम को जानने और उसे व्यावहारिक जीवन में अधिकाधिक मात्रा में प्रयुक्त करने की प्रेरणा दी। वह जहाँ भी गया, जनता ने उसका भरपूर स्वागत किया।

फ्रांस सरकार ने उसके कर्तृत्व की शोध करने और उसका निष्कर्ष निकालने के लिए एक आयोग नियुक्त किया। अमेरिका के राष्ट्रपति वुकेनन ने उसकी शिक्षापद्धति के नोट्स लेकर ऐसी पुस्तक लिखाई जिससे घोड़ों को सिखाने-सधाने में सहायता मिले। अश्व विज्ञान की वह पुस्तक अब भी बड़ी प्रामाणिक मानी जाती है।

राल्फ एमर्सन ने कहा था—"प्रेम की महत्ता के लिए विनिर्मित ईसाई धर्म के मूल सिद्धांत को रेरी ने जिस अनोखे ढंग से प्रतिपादित किया है, उससे सभ्यता के इतिहास में एक नए अध्याय का आरंभ हुआ है।"



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