जिस प्रकार पीतल के पात्रों को यदि नित्य स्वच्छ न किया जाए तो वे अपनी चमक खो देते हैं और जंग लग जाता है, उसी प्रकार यदि साधक नित्य साधना ना करे तो उसका हृदय भी अपवित्र होने लगता है।
— तोतापुरी