विचार शक्ति (मंत्र शक्ति) द्वारा पदार्थ का हस्तान्तरण

November 1971

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मलाया के राजा परमेसुरी अगोंग ने अपनी पुत्री राजकुमारी शरीफा साल्वा का विवाह निश्चित किया। तैयारियाँ कई दिन पूर्व से ही प्रारम्भ हुईं। और विवाह से एक दिन पूर्व ही धूम-धाम में बदल गईं ।

मलाया सघन वर्षा के लिए सारे संसार में विख्यात है। यहाँ काफी घने जंगल हैं और उनमें तरह-तरह के जीव-जन्तु परमात्मा की विलक्षण सृष्टि-सर्जन का बोध कराते हैं। मलय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित 128478 वर्ग मील क्षेत्र और 10674200 जनसंख्या वाले इस देश में मलय,चीनी, भारतीय और बोर्निया जाति के लोग रहते हैं। भारत की तरह मंत्र-तंत्र पर इस देश के लोग बहुत विश्वास रखते हैं। भारत में तो मंत्र-साधना ने अब अधिकांश या तो आडंबर का रूप ले लिया है या अनभिज्ञता का, पर मलाया में आज भी मंत्रशक्ति का सर्वत्र बोल-बाला है। सार्वजनिक समारोह तथा राजकाज तक में मंत्रशक्ति का सहयोग लिया जाता है।

इधर विवाह की तैयारियाँ हो रही थीं, उधर बादल सघन होते जा रहे थे। प्रकृति और प्राणी जगत की इच्छाओं में विलक्षण वैषम्य पाया जाता है, इसलिए प्रकृति को लोग विद्रोहिणी मानते हैं। कई बार उसका दमन चक्र चलता है तो देश-देश नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। किन्तु भारतीय मान्यता इन सबसे भिन्न यह है कि प्रकृति पुरुष की आत्मिक चेतना की सहचरी है। अपनी भावचेतना या विचारशक्ति द्वारा प्रकृति के कार्यों में ठीक उसी प्रकार व्यवधान और रोक उत्पन्न की जा सकती है, जिस प्रकार प्रकृति मनुष्यों के काम में अवरोध उत्पन्न कर देती है। यह शक्ति तप और कष्ट साध्य तो है, तत्त्ववेत्ता उसके प्रदर्शनों को अनुचित मानते हैं और प्रकृति को व्यवस्थापिका मानकर उसके विधान में हस्तक्षेप न करने के पक्ष में भी हैं, किन्तु जब मनुष्य यह चुनौती देता है कि आत्मशक्ति नाम की प्रकृति से बड़ी कोई शक्ति नहीं तो सिद्धिसम्पन्न योगी इस तरह के चमत्कारों को भी बुरा नहीं मानते । यहाँ भी उद्देश्य लोगों का ध्यान सूक्ष्मचेतना की ओर प्रेरित करना ही होता है।

विवाह प्रारंभ होने में अभी कुछ देर थी कि बरसात प्रारंभ हो गई। इतनी घनघोर बरसात हुई कि नदी-नाले उमड़ पड़े। एक बार को तो लगा कि विवाह का शाही रंग नष्ट हो गया, पर यह चिन्ता प्रकृतिवादी को हो सकती है, अध्यात्मवादी को नहीं। महाराज परमेसुरी को अपने देश की मंत्रशक्ति पर विश्वास था। रहमान नामक एक ताँत्रिक स्त्री को बुलाया गया। आज एक प्रकार का रसायन बादलों में छिड़ककर थोड़ी-सी कृत्रिम-वर्षा करा लेने की योग्यता तो वैज्ञानिकों ने पा ली है, पर यह अध्यात्म की शक्ति है, जो इच्छानुसार प्रकृति के काम को भी रोक सकती है, अभी तक वैज्ञानिक भी यह शक्ति प्राप्त नहीं कर सके।

रहमान ने प्रयोग किया और तब वहाँ का दृश्य ही कुछ और था। जानते सब हैं कि जब पृथ्वी के पूर्ण भाग में सूर्य का प्रकाश रहता है तब पश्चिमी गोलार्द्ध में रात्रि का सघन अन्धकार विराट की यह धूप-छांव भले ही कोई न देख पाता हो किन्तु उस दिन न केवल मलयवासियों ने वरन् सुदूर देशों से पधारे शाही अतिथियों ने भी देखा, सारे नगर में वर्षा हो रही है, पर जिस क्षेत्र में विवाह समारोह संपन्न हो रहा है, वह बादलों से घिरा होने पर भी उसमें एक बूँद पानी नहीं गिर रहा। विवाह आयोजन जिस धूम धाम से प्रारंभ हुआ था, समापन भी उसी धूम-धाम से हुआ। तब तक उस क्षेत्र में एक बूँद भी पानी नहीं गिरा और जैसे ही रहमान ने दूसरा मन्त्र फूँका, उस क्षेत्र में भी वर्षा प्रारंभ हो गई।

सन् 1963-64 में इसी प्रकार राष्ट्र मंडलीय क्रिकेट दल मलाया में खेलने गया। प्रकृति को तो परमात्मा के आदेश का पालन करना ठहरा। वह मनुष्य की सुविधा-असुविधा की बात नहीं देखती। खेल अभी शुरू होने को ही था कि जोरदार बरसात शुरू हुई। मलाया की क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने रेम्बाऊ के एक विख्यात वमोह (ताँत्रिक को मलाया में वमोह कहते हैं) को बुलाया। खेल ठीक समय पर प्रारंभ कर दिया गया क्योंकि वमोह आ गया था। आधे लोग खेल देख रहे थे और आधे मंत्रशक्ति के विचित्र प्रमाण को। सारे नगर कुआलालम्पुर में दूर-दूर तक वर्षा हो रही थी, किन्तु क्रिकेट के मैदान में एक बूँद भी बारिश नहीं हुई मानों उतने स्थान पर शब्दशक्ति ने कोई विशाल छतरी बुन दी हो। खेल समाप्त होने तक यही स्थिति रही। 15 मार्च 1964 के धर्मयुग में इस समाचार को बड़े आश्चर्य के साथ छापा गया।

ऐसी ही स्थिति एक बार 'दि ईयर ऑफ दि ड्रेगन' फिल्म की शूटिंग के अवसर पर भी उपस्थित हुई थी। शूटिंग प्रारंभ हुई ही थी कि बारिश आ गई। विख्यात वमोह [ताँत्रिक] अब्दुल्ला बिन उमर की सेवाएँ ली गईं और उसी का परिणाम था कि जिस क्षेत्र में शूटिंग हो रही थी, उस क्षेत्र में एक बूँद भी पानी नहीं हुआ उसके चारों ओर इतनी सघन वर्षा हुई कि सारा क्षेत्र जलमग्न हो गया।

आज लोग चेतनाशक्ति को सक्षम और समर्थ न बना पाएँ तो यह दोष आत्मविद्या का, मंत्रशक्ति का नहीं, वरन् लोगों की भौतिकवादी असक्ति का है। हमें जानना चाहिए कि हमारे भीतर क्रियाशील आत्मचेतना की शक्ति और सामर्थ्य अकूत है। योग-साधनाओं द्वारा उसे प्रखर बनाया जा सके तो बरसात को रोकना तो क्या, सूर्य जैसी महाशक्ति की ऊर्जा का हस्तान्तरण कर सारे सौर मंडल का मन्थर और युग परिवर्तन तक किया जा सकता है। थोड़े से भूभाग की तो बात ही क्या है।

इस प्रकार की योगशक्ति का प्रदर्शन अकेले भारत वर्ष में, मलाया में ही होता हो, शेष विश्व उससे अनभिज्ञ हो, सो बात नहीं। इस सम्बन्ध में 'रिसर्चेज साइकोलॉजिक आइकरेस्पाण्डेन्स सर ला मैग्नेटिज्मे वाइटल एण्ट्रे अन सालिटेयर एट एम डिल्यूज' पेरिस (फ़्रांस) के अध्यक्ष डॉ. बिल्लाट ने व्यापक शोधें की हैं और इन क्रियाओं को पदार्थ विज्ञान के समान ही व्यवस्थित विज्ञान की संज्ञा दी है। 27 अक्टूबर 1820 के दिन एक अन्धी स्त्री ने डॉ. बिल्लाट के आग्रह पर प्रदर्शन किया और अपनी पराशक्ति से एक फूल मँगाकर वहाँ उपस्थित सैकड़ों लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया।

रैन्थम (मैसाच्यूसेट्स) में एक डाक्टर रहते थे। उनका नाम था—डॉ. लार्किन। इनके घर में एक नौकरानी थी, जिसका नाम था 'जेनी'। जेनी के बारे में लोगों में एक चर्चा सारे मुहल्ले में व्याप्त थी कि उसने अपनी इच्छाशक्ति पर इतना जबर्दस्त अधिकार प्राप्त किया हुआ है कि सैकड़ों मील की दूर की वस्तु भी वह अपनी इच्छाशक्ति से मँगा सकती है और वापस भेज भी सकती है। डॉ. लार्किन को इन सब बातों पर विश्वास नहीं था। वे प्रायः इस सत्य का प्रतिपादन किया करते। 'जेनी' जानती थी कि प्रदर्शन से किसी को थोड़ी देर के लिए आश्चर्यचकित तो किया जा सकता है,पर प्रदर्शन अन्ततः अपने दर्शन, पर और परा विद्या तीनों के अहित में ही होता है। सो वह डाक्टर के साथ विवाद में पड़ना नहीं चाहती थी, किन्तु डॉ. लार्किन उसके पीछे ही पड़ गये। तब 1840 की बात है जेनी ने एक दिन प्रदर्शन की आज्ञा दे दी।

डॉ. लार्किन ने उन लोगों को इकट्ठा किया, जो इस पर विश्वास करते थे, ताकि उन्हें मौके पर ही अंधश्रद्धालु प्रमाणित किया जा सके। अपने मित्रों परिजनों के अतिरिक्त उन्होंने नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी सम्मिलित किया। उन्होंने अपनी ओर से कोई डेढ़ बालिस्त का एक टुकड़ा लिया और उसे अपने रसोई घर के सामने जाकर रख दिया। फिर सब लोगों के साथ मकान के बड़े वाले हाल में उपस्थित हुए। दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर दिये गए, जिससे बाहर की हवा भी अंदर ना आ सके।

जेनी ने मंत्र पढ़ा, प्रार्थना की और मन ही मन में उथल-पुथल करने वाली विचारशक्ति का संचार किया। न कोई खटका हुआ न कोई शीशा टूटा। दरवाजे ज्यों के त्यों बन्द थे। तभी पास में फर्श पर डाले कपड़े को जेनी ने उठाया लोग आश्चर्यचकित रह गए यह देखकर कि ठीक वही लोहे का टुकड़ा जो बाहर रसोई घर के सामने रखा गया था,कपड़े के नीचे रखा हुआ है। डॉ. लार्किन अपने साथियों सहित रसोई घर की तरफ गये। जाकर देखा तो वहाँ से लोहे का टुकड़ा गायब था। रसोई घर का ताला लगाकर चाबी अपने हाथ में लिए वे वापस लौटे और बोले—"अच्छा जेनी ! अब इस टुकड़े को रसोई घर के अंदर पहुँचा दो। जेनी ने क्रिया-योग का प्रयोग किया और फिर कपड़ा उठाया तो उसके नीचे से लोहे का टुकड़ा गायब था। डॉ. लार्किन वापस लौटकर रसोई घर गए, ताला खोला, तो देखा कि वहाँ ठीक वही लोहे का टुकड़ा रखा हुआ है। पदार्थ किस प्रकार से वायुभूत होकर एक स्थान से दूसरे स्थान उड़ जाता है और किस प्रकार परमाणुओं का एक स्थान पर संलग्न हो जाता है। यह सब डॉ. लार्किन समझ नहीं सके, किन्तु उन्होंने मान लिया कि इच्छाशक्ति-मंत्रशक्ति में वस्तुतः कुछ यथार्थ अवश्य है।

सामान्य क्रिया कलाप देखने में शरीर करता दिखाई देता है पर उसमें इच्छा की ही मूल प्रेरणा रहती है। वह प्रेरणा विद्युतशक्ति की भाँति शरीर में इफरेन्ट नाड़ियों द्वारा शरीर के किसी विशेष अंग जाती और “अफरेन्ट नाड़ियों द्वारा संदेश लाती हैं। यदि मन को पूर्ण एकाग्र किया जा सके तो नाड़ियों में दौड़ने वाली इस अग्नि विद्युत को बहुत दूर तक भेजा, पदार्थ को जलाया, टुकड़े-टुकड़े किया जा सकता है और वायुभूत कणों में इच्छाशक्ति द्वारा ही कहीं भी खींचकर एकत्र किया जा सकता है। योग विज्ञान में यह बहुत ही छोटा चमत्कार है। पदार्थवादियों के लिये इसमें चाहे जितना कौतुक क्यों न भरा हो ?


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