300 वर्ष आयु के श्री तैलंग स्वामी

November 1971

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वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं। वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएँ हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में बंद करने का आदेश दिया गया।

पुलिस के आठ-दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है। एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो सकपकायी, पर आखिर पकड़ना तो था ही, वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था, मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे, मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों, किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा जब किसी से नहीं डरता, तो अनेक सिद्धियों-सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा, तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है। यों कहिए आनंद की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है। बालसुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनंद के लिए 'श्री तैलंग स्वामी' नामक योगी भी इच्छुक रहे हों, तो क्या आश्चर्य ?

पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए और वहाँ से गंगा जी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामी जी गंगा में कूद गए, पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं; हाँ! चारों तरफ से घेरा डाल दिया, कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा। लेकिन एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा— तब सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे। अब अस्ताचलगामी हो चले, किन्तु स्वामी जी प्रकट न हुए। कहते हैं, उन्होंने जल के अंदर ही समाधि ले ली। उसके लिए उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अंदर फेंक रखी थी और यह जन श्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा जाने के बाद उसी शिला पर घंटों समाधि लगाए जल के भीतर ही बैठे रहते हैं।

उनको किसी ने कुछ खाते नहीं देखा, तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर-घर में तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियाँ आज भी प्रचलित हैं। निराहार रहने पर भी प्रतिवर्ष उनका वजन एक पौण्ड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका, जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई; इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया शायद इसीलिए वे दूसरा प्रबन्ध करने के लिए थाने लौट गए। इस बीच अन्य लोग बराबर तमाशा देखते रहे, पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।

प्रातःकाल पुलिस फिर वहाँ पहुँची। स्वामी जी इस तरह मुस्करा रहे थे मानों उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनंद के और कुछ हो ही नहीं। शक्ति तो आखिर शक्ति ही है। संसार में उसी का ही तो आनंद है। योग द्वारा संपादित शक्तियों का स्वामी जी रसास्वादन कर रहे हैं तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुँची, स्वामी फिर गंगा जी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्लाह को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामी जी कल की तरह आज भी पानी के अंदर छुपेंगे और जिस प्रकार मेंढ़क मिट्टी के अंदर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे, बिना श्वाँस के पड़े रहते हैं उसी प्रकार स्वामी जी भी पानी के अंदर समाधि ले लेंगे। किन्तु यह क्या, जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में संतुलितकर तैरता चला जाता है, उसी प्रकार तैलंग स्वामी पानी में इस प्रकार दौड़ते हुए भागे मानों वह जमीन पर दौड़ रहे हों । नाव उस पार नहीं पहुँच पाई, स्वामी जी पहुँच गए। पुलिस खड़ी देखती रह गई।

स्वामी जी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई, तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। हनुमान जी ने मेघनाथ के सारे अस्त्र काट डाले, किन्तु जब उसने ब्रह्म-पाश फेंका तो वे प्रसन्नतापूर्वक बँध गए। लगता है श्री तैलंग स्वामी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे, पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक शक्तियों से बहुत चढ़-बढ़कर है। तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस बार चुपचाप ऐसे बैठे रहे, मानों उनको कुछ पता ही न हो। हथकड़ी डालकर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गई और हवालात में बंद कर दिया। इन्सपेक्टर रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामी जी की गिरफ्तारी मार्के की सफलता लग रही थी।

प्रस्तुत घटना 'मिस्ट्रीज आँफ इंडिया एण्ड इट्स योगीज' नामक लुई-द-कार्टा लिखित पुस्तक से उद्धृत  की जा रही है। कार्टा नामक फ़्रांसीसी पर्यटक ने भारत में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम-घूम कर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानंद ने भी उक्त घटना का वर्णन अपनी पुस्तक 'आटो बाई ग्राफी आँफ योगी' के 31 वे परिच्छेद में किया है।

प्रातःकाल ठंडी हवा बह रही थी, थानेदार जी हवालात की तरफ आगे बढ़े तो शरीर पसीने में डूब गया- जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायुसेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बंद थे, ताला भी लग रहा था। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुँच गया ? अवश्य ही संतरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे संतरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक क्षण को भी खुला नहीं, फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुँच गए। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे, पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। आखिर योगी को फिर हवालात में बंद किया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया, चारों तरफ पहरा लगा और ताली लेकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बंद ताला बाकायदा बंद था। सन्तरी पहरा भी दे रहे थे। उस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे थे। थानेदार की आँखें खुली की खुली रह गईं, उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।

श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुए तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जाएँ  तो तेल की ऊष्मा उसे भाप बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है। उसी प्रकार विष खाते समय एक बार आँखें जैसे झपकती पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता, कहाँ चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी, चूने के पानी को लेजाकर स्वामी जी के सम्मुख रख दिया और कहा—" महात्मन् ! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूँ।" स्वामी जी उठाकर पी गए उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुए थे कि  वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था, कराहने और चिल्लाने लगा। स्वामी जी के पैरों में गिरा, क्षमा-याचना की तब कहीं पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा भाई मेरा कसूर नहीं है, यह तो न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य होती है। 

मनुष्य शरीर एक यंत्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन अथवा शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस शरीर से। भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियाँ और सामर्थ्य योगविद्या, योगसाधना में सन्निहित हैं, जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते और आनन्द लाभ प्राप्त करते हैं।


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