संसार का ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो स्वप्न न देखता हो और स्वप्नों की विचित्रताएँ अनुभव न करता हो। किन्तु कितने लोग ऐसे हैं जो स्वप्नों से कुछ सीख और कुछ अर्थ निकाल पाते हैं। मनुष्य प्रतिदिन सोता है। प्रतिदिन निद्रा के बीच वह कुछ क्षणों के लिए स्वप्नों के अज्ञात जगत की सैर करता है। यदि इस परिभ्रमण का कभी कोई अर्थ नहीं निकलता तब तो यह कहा जा सकता था कि स्वप्न, मात्र मानसिक कल्पना का चित्रण है, पर हजारों सच्चाईभरे स्वप्न समीक्षा की कसौटी पर कसे जाएँ तो पता चलेगा कि स्वप्न जागृत ओर अतीन्द्रियलोक का संधि द्वार हैं। इन घटनाओं द्वारा उस अदृश्य संसार की बहुत-सी बातों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
बहुत समय पहले की बात है, मैनचेस्टर के एक दंपत्ति के दो लड़के खो गए। बहुत पता लगाने पर भी पुलिस उन्हें खोज नहीं पाई। एक रात की बात है कि स्त्री ने एक स्वप्न देखा कि उसके पति ही उन दोनों लड़कों को लेकर एक ऐसे स्थान पर गए जो बहुत ही सघन भीड़ वाला है। एक स्थान पर उसने चेस्टर सिटी लिखा देखा। उसने देखा कि इसके बाद उसका पति बच्चों को लेकर एक खंडहर मकान में घुसा और वहाँ जाकर उनकी हत्या कर दी। हत्या करते देख स्त्री चीख पड़ी, नींद टूटी उसे पूरा शक हो गया कि हत्या उसके पति ने ही की है, जो आज कई दिनों से ही बाहर है। उसने पुलिस में जाकर रिपोर्ट लिखाई, पर स्वप्न की बात मानने के लिए पुलिस वाले बिलकुल तैयार न हुए। स्त्री ने जोर डालकर कहा—"मैंने स्वप्न में जो-जो स्थान देखे हैं, उन सबको पहचान जाऊँगी। आप हमें चेस्टर ले चलिए।" पुलिस वाले मान गए। वह स्त्री को लेकर वहाँ पहुंचे, तो एक स्थान को पहचानकर स्त्री तंग गलियों में से गुजरती हुई उसी खंडहर में जा पहुँची। वहाँ जले शव के निशान तथा गड़ी हुई हड्डियाँ मिलीं। पीछे बाप पकड़ा गया तो उसने सारी बातें अक्षरशः वैसे ही स्वीकार कीं जैसे कि स्वप्न के आधार पर स्त्री ने रिपोर्ट लिखाई थी। लोग छुपकर पाप करते हैं और यह मानते हैं कि उन्हें तो कोई नहीं देख रहा, पर यह घटना बताती है कि कोई एक जागृत देवता सब कुछ देखता-सुनता रहता है, भले ही उसका विधान लोग देर से समझ पाएँ, पर वह कष्ट देने और दिलाने से चूकता नहीं।
“मैनचेस्टर की ही एक स्त्री ने एक रात” में तीन बार एक ही स्वप्न देखा कि उसकी लड़की मोटर ऐक्सीडेंट का शिकार हो गई है। प्रातःकाल यह स्वप्न सच निकला। जब इस आशा का समाचार मिला कि लड़की ऐक्सीडेंट में मर गई। स्वप्न और ऐक्सीडेंट के समय विचित्रता यह थी कि पहली बार का स्वप्न भविष्य सूचक था। दूसरी बार का स्वप्न आया, ठीक उसी समय दुर्घटना हुई। तीसरी बार का स्वप्न भविष्यदर्शी स्वप्न था। यह घटना यह प्रमाणित करती है कि हमारे कितने ही स्वप्न ऐसे होते हैं जिन्हें हम समझ नहीं पाते, पर जो वस्तुतः किन्हीं भी घटनाओं से संबंधित होते हैं। चित्त शान्त और निर्मल हो तो न समझ आने पर भी घटनाओं के पूर्वाभास द्वारा आत्मशोधन—प्रक्रिया का संचालन किया जा सकता है।
आए दिन ऐसे समाचार पढ़ने को मिलते रहते हैं कि कोई व्यक्ति मरा और मरने के घंटे-दो घंटे बाद जीवित हो गया। जीवित होने पर उसने बताया कि उसे यमराज के सामने ले जाया गया। यमराज ने मुस्कराकर कहा भाई गलत आदमी को ले आए इसी नाम का दूसरा व्यक्ति अमुक स्थान में है, उसे लाओ। जिस समय यह व्यक्ति जी कर उठा, ठीक उसी समय वह दूसरा व्यक्ति मर गया।
ऐसी घटनाएँ काल्पनिक उड़ान जैसी लगती हैं और मृत्योत्तर जीवन को उपहासास्पद बनाती लग सकती हैं, किन्तु क्राडिफ में एक ऐसी घटना घटी, जिसने उक्त दावे को पुष्ट करते हुए यह सिद्ध कर दिया कि अतीन्द्रिय जगत में दैवी-विधानों की बात बिलकुल झूठ नहीं हो सकती। भले ही कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हों अथवा बना देते हैं। उक्त घटना प्रसिद्ध लेखक जे.बी. प्रीस्टले द्वारा वर्णित सत्य घटना है। प्रीस्टले लिखते हैं कि एक रात एक परिचित स्त्री ने स्वप्न देखा कि वह सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई है। वह जब जागी तो उसके शरीर के अंग-अंग में चोट जैसा दर्द था और वह अपने आपको बिल्कुल मृत जैसा अनुभव कर रही थी।
दूसरे दिन अखबार में एक घटना छपी थी। इस स्त्री की एक हमनाम स्त्री दुर्घटना का शिकार हो गई थी। दुर्घटना का स्थल, दुर्घटना का कारण, वाहन दोनों बिल्कुल वही थे जैसा कि इस स्त्री ने स्वप्न में देखा था। लगता था स्वप्न भूल कर गया नाम की। जिसे स्वप्न दिखाना था, उसे न दिखाकर उसी नाम की उसी शहर की अन्य स्त्री को दिखाया गया।
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोगकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि बाह्य वातावरण का स्वप्नों पर प्रभाव पड़ता है; उदाहरण के लिए दो सोते हुए व्यक्तियों को चुना गया। पहले एक की आँख के सामने एक जलती हुई मोमबत्ती ले जाई गई। इस मोमबत्ती की प्रतिक्रिया उस व्यक्ति को स्वप्न में हॉकी खेलने के दृश्य के रूप में दिखाई दी, जबकि दूसरे व्यक्ति को उसी मोमबत्ती की प्रतिक्रिया एक मोटे आदमी द्वारा डंडा लिये मारने की मुद्रा के रूप में हुई। यहाँ भी अपनी-अपनी मनोभूमियाँ निर्णायक भूमिका अदा कर रही थीं। पहला व्यक्ति एक युवक है, खेल-कूद में अभिरुचि रखता है, इसलिए उसे मोमबत्ती की लौ, गेंद और शेष भाग हॉकी स्टिक के रूप में दिखी जबकि दूसरा था ऑफिस का एक क्लर्क। अपने ऊपर वाले अफसरों से डरने वाला भीरु किस्म का। मनोभूमि की विशिष्टता के बावजूद दोनों में एक बात समान रूप से सिद्ध हुई, वह यह कि अंतर्मन की चेतना के अतिरिक्त बाह्य परिस्थितियाँ भी स्वप्ननिर्माण-क्रिया में भाग लेती हैं।
यहाँ एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है जो ठीक इससे विपरित है और यह सिद्ध करता है कि स्वप्न जगत की सत्ता और क्रियाशीलता इतनी सशक्त और समर्थ है कि वह शरीर पर भी अपना तीव्र प्रभाव छोड़ सकती है। घटना 15 मार्च 1970 के दैनिक नवभारत टाइम्स में फोटो सहित छपी और इस प्रकार है।
दक्षिण इटली में फादर पिआओ नामक एक भिक्षु रहा करते थे। सिसली में उनकी एक शिष्या थी, उसका नाम था— एंज-ला-टोना। एक दिन एंज-ला-टोना ने स्वप्न में अपने धर्मगुरु पिआओ के दर्शन प्राप्त किए। उसी समय से एंज-ला-टोना के हाथों की दोनों गदेलियों पर घाव हो गए, साथ ही साथ सीने पर भी। घटना का सार समझने के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि फादर पिआओ के भी ठीक इन्हीं अंगों अर्थात् हाथ की दोनों गदेलियों और सीने में घाव थे। सामान्य अवस्था में घाव सूखे रहते थे, किन्तु कभी कोई अंधा, लँगड़ा, लूला, अपाहिज व्यक्ति फादर के सामने आ जाता और उनकी करुणा उमड़ उठती तो यह घाव अपने आप हरे हो जाते। उनके जख्मों में बिल्कुल ताजा रक्त आ जाता।
यह घटना जहाँ आत्मा का भावनास्वरूप प्रतिपादित करती है वहाँ ध्यान और सारूप्य की भारतीय मान्यता का भी समर्थन करती है। सूर्य का ध्यान करते हुए ध्यान का परिपक्व होकर “अहं” का सूर्य रूप हो जाना और उन सामर्थ्यों सिद्धियों का स्वामी बन जाना जो सूर्य में हैं (गायत्री उपासना की सिद्धि) यह भी इस घटना से स्पष्ट समर्थित और प्रतिपादित हो जाता है।
इस घटना पर टिप्पणी करते हुए पत्रकार ने एक और घटना साथ में दी है। कलकत्ता के एक चीनी की, जिसे स्वप्न में दिखा कि उसे लाटरी का प्रथम पुरस्कार मिला है। उसने दूसरे दिन लाटरी खरीदी और सचमुच उसे पुरस्कार मिला। इन पंक्तियों के साथ एक प्रश्न किया गया है—मनुष्य आज चन्द्रमा तक पहुँच गया। बड़े-बड़े प्रमेय उसने हल कर लिए किन्तु इस प्रकार की घटनाओं का कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण उसके पास है क्या ? अर्थात् नहीं—भाव सत्य,भाव-विज्ञान द्वारा ही उद्घाटित हो सकता है। उसकी अनुभूति उन साधनाओं द्वारा ही सम्भव है जो मन की स्थूलसत्ता का अतीन्द्रियसत्ता से मेल कराकर ऐसे रहस्यों को एक सामान्य बात बनाकर अलौकिकसत्ता की अनुभूति का मार्ग प्रशस्त कर देती हैं। यह साधनाएँही भारतीय तत्त्व दर्शन के ठोस प्रमाण हैं, छुट-पुट घटनाएँ तो मात्र अतीन्द्रिय सत्य के अस्तित्व का प्रतिपादन भर कर सकती है।
फादर पिआओ की घटना अपनी तरह की अकेली नहीं है। इसमें एक व्यक्ति का दर्द दूसरे के शरीर में उतर आया तो लिवरपूल में एक घटना ऐसी घटी, जिसमें स्वप्न ने रोग ठीक कर दिया। 1919 की बात है लिवरपूल में जेम्स नामक एक व्यक्ति रहता था, जो बहुत पहले कभी फौज में रह चुका था। एक लड़ाई के दौरान तोपों की भारी गर्जना के कारण उसके कान के पर्दे फट गए थे और वह बहरा हो गया था। पैंशन पर आ जाने के बाद एक रात उसने एक स्वप्न देखा। उसने अपने आपको सेंट विनिफ्रेड कुँए के पास खड़ा पाया। लिवरपूल के लोग उसे गंगा की तरह पवित्र मानते हैं। थी बात स्वप्न की, पर जेम्स को देवदर्शन की तरह बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने सोचा इस कुँए में स्नान कर लेना चाहिए। पानी निकालकर उसने जैसे ही शरीर पर डाला कि उसे शीत की-सी कंपकंपी लगी। और इसी क्षण उसकी नींद टूट गई। वह हड़बड़ा कर उठ बैठा, पास में सो रहे उसके घरवालों ने पूछा कौन ! और यह 'कौन' शब्द जेम्स के जीवन का नया सन्देश बन गया। उसने आश्चर्यपूर्वक बताया—"मैं हूँ जेम्स,'' पर यह क्या हो गया, जिस बहरेपन को अच्छे-अच्छे डाक्टर ठीक नहीं कर सकते थे, एक स्वप्न ने कैसे ठीक कर दिया? यह घटना इस बात का भी प्रमाण है कि स्वप्न में जो तत्त्व सक्रिय रहता है उसे सर्वव्यापी ही नहीं सर्वशक्तिमान भी होना चाहिए।
रेवरेण्ड फ्रीमैन विल्स की लँगड़ी टाँगें भी इसी तरह स्वप्न में ठीक हुईं थीं। जब उसने यह स्वप्न देखा था कि कोई एक फरिश्ते ने आकर उसके टूटे हुए अंग में प्रकाश की किरणें इस तरह फेंकी जैसी कोई प्लाज्मा लाइट वैल्डिंग करते समय किसी धातु पर फेंकी जाती है। स्वप्न टूटने पर जागे विल्स यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि उनकी टाँगें जिनके बारे में डॉक्टरों का कथन था कि मृत्यु होने तक यह टाँगें सीधी नहीं हो सकती, ठीक हो गई और विल्स चलना- फिरना तो क्या दौड़ में भी लोगों को पछाड़ने लगा। बिना किसी औषधि, बिना किसी शल्य-क्रिया के इस प्रकार किसी असाध्य रोगी का ठीक हो जाना स्वप्नसत्ता को और भी रहस्यपूर्ण ही बनाता है।
स्वप्नों द्वारा अपने किसी प्रियपात्र को पूर्वाभास कराना, किसी होनहार घटना से सजग करना अथवा कोई महत्त्वपूर्ण सन्देश देना सम्मोहन-क्रिया का एक अंग है। योगीजन, सिद्ध और सन्त एकाग्रचित्त से अपनी भावनाएँ प्रेक्षित कर इस तरह के संदेश दिया करते हैं। कई बार लोग अपनी विकट-वासना और गन्दी मनोभूमि के कारण इन संदेशों को ग्रहण न कर पाएँ, यह दूसरी बात है, पर इस तथ्य की सत्यता पूर्ण प्रमाणसम्मत है। बात उन दिनों की है जब रूस में क्रान्ति मच रही थी। वहाँ के डेनियल बेवर नामक प्रसिद्ध विचारक ने उन दिनों चीन में एक लामा के बारे में सुन रखा था कि वह किसी भी व्यक्ति की भूतकालीन घटनाओं को स्वप्न में दिखा देने की क्षमता रखता है।
श्री बेवर उस तांत्रिक से एक बौद्ध मंदिर में मिले और उस तरह का प्रयोग देखने की इच्छा प्रकट की। लामा ने एक नवयुवक पर एक प्रयोग करके दिखाया। योग-निद्रा स्वप्न की अनुभूति कराने के बाद लामा ने पाल नामक इस युवक से पूछा—"तुमने क्या देखा?" उसने बताया कि मैं रूस के सेन्ट पीटर्सवर्ग नगर में हूँ। मेरी प्रेमिका एक बड़े शीशे के सामने खड़ी श्रृंगार कर रही है। उसे उसकी दासियाँ 'क्रास आफ अलेक्जेंडर' हीरे की अँगूठियाँ पहना रही हैं। मैंने मना किया कि नहीं तुम यह अँगूठी मत पहनो। मैंने सारी बातचीत रूसी भाषा में ही की। अपनी प्रेमिका से मिलन का यह स्वप्न बड़ा ही मधुर रहा।
“तभी एक दूसरा स्वप्न भी दिखाई दिया। मैंने अपने आपको एक परिवर्तित दृश्य में निर्जन रेगिस्तान में पाया। मेरे दो बच्चे भूख से तड़प रहे हैं, पर मैं उनके लिए भोजन नहीं जुटा पाया। मुझे एक ऊँट ने हाथ में काट लिया। मेरा अंत बड़ी दुःखद स्थिति में हुआ।”
अपने सम्मुख यह घटना देखने के बाद डॉ. वेबर रूस लौटे। दैवयोग से एक बार सेंट पीटर्सबर्ग में उनकी भेंट एक स्त्री से हुई। उससे इस बात का क्रम चल पड़ा तो वह एकाएक चौंकी और बोली आप जिस महल की बातें बता रहे हैं, वह मेरा ही मकान है। मेरे पास 'क्रास आँफ एलेक्जेंडर' हीरे की अँगूठी भी थी। मैं उसे कई बार पहनना चाहा करती थी, किन्तु मेरा प्रेमी रास्पुटिन इसे पसंद नहीं करता था। ठीक जिस तरह आपने पाल की घटना सुनाई, वह मुझे यह अँगूठी पहनने से रोकता था।
डॉ. वेबर उस स्त्री के साथ उसके घर गए। हूबहू वही दृश्य जो स्वप्न में देखकर पाल ने बताए थे। डॉ. वेबर आश्चर्यचकित रह गए और माना कि स्वप्न सत्य था और यह भी कि जीवात्मा के पुनर्जन्म का सिद्धान्त मिथ्या नहीं है। वे सहारा जाकर दूसरी घटना की भी जाँच करना चाहते थे, पर कोई सूत्र न मिल पाने से वे निराश रह गए पर यह सत्य था कि उनको जितनी भी जानकारियाँ मिली, उन्होंने उन मान्यताओं का समर्थन ही किया। इन घटनाओं का उल्लेख प्रो. वेबर ने अपनी पुस्तक 'द मेकर ऑफ हैवेनली ट्राउजर्स' में किया है।