ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं

November 1971

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रूस के सुप्रसिद्ध खगोल-विशारद आई.एस.श्क्लोव्स्की  ने 'इण्टेलीजेन्ट लाइफ इन दि यूनीवर्स' नामक पुस्तक न लिखी होती तो तत्त्वदर्शन का परलोकवाद सिद्धान्त पूरी तरह धूल-धूसरित हो गया होता। उसने अनेक तर्कों और वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर यह लिखा है कि-"हमारी आकाशगंगा क्षेत्र में जिसमें कि अपना समस्त सौरमंडल भी आता है लगभग 10 लाख ऐसे ग्रह हैं जहाँ कि धरती के समान ही बुद्धिमान और सभ्य लोग निवास करते हैं। इनमें से कई लोक तो इतने सुन्दर हैं कि उनकी तुलना स्वर्ग से की जा सकती है।”

जीवात्मा के अन्य लोकों में गमन की बात को अंधविश्वास माना जाए तो विज्ञान की उक्त धारणा को भी अज्ञानग्रस्त काल्पनिक उड़ान ही कहा जाएगा; क्योंकि ब्रहांड कितना अनंत और समीप है, उसकी कुछ यथार्थ जानकारी अभी तक भी पूर्णतः नहीं मिल पाई है। हम जिस सौरमंडल में रहते हैं, वह “स्पाइल” नामक आकाश गंगा से प्रकाश पाता है और इस आकाश गंगा की चौड़ाई 100000 (एक लाख) प्रकाश वर्ष है। एक प्रकाश वर्ष अनुमानतः 6000000000000000000 मील की दूरी को कहते हैं। तात्पर्य यह है कि समस्त आकाशगंगा वाले ब्रहांड की दूरी इससे भी 1 लाख गुना 600000000000000000000000 मील की है। श्री श्क्लोव्स्की के अनुसार इस दूरी में बसे बौद्धिक शक्ति वाले लोगों वाले उन ग्रहों की परस्पर दूरी 300 प्रकाश वर्ष अर्थात् 1800000000000000000000 मील की दूरी पर है।

विज्ञान के महारथी अल्बर्ट आइन्स्टीन का मत है कि संसार में अधिकतम वेग वाला विमान प्रकाश की गति वाला हो सकता है, इससे अधिक तीव्र गति  भौतिक जगत में सम्भव नहीं हैं; अतएव कितना भी कोई प्रयत्न करे, बुद्धि संपदा वाले प्राणियों से संबद्ध इन ग्रहों में आवागमन सम्भव नहीं हो सकता। हमारे सबसे समीप का तारा “प्राक्सिमा सेन्टारी” है; यद्यपि वह एक वीरान क्षेत्र है, तथापि यदि वहीं जाया जाए तो एकबार की यात्रा में 4 वर्ष 4 महीने लगेंगे। इतनी लम्बी यात्रा की थकान इतनी भयंकर होगी कि व्यक्ति लगभग अर्द्धमृत हो जाएगा।

भौतिक दृष्टि से सभ्यता वाले सितारों की यात्राएँ असंभव हैं, किन्तु जब हम “मन” नामक शक्ति की कल्पना करते हैं और उसकी गति का अनुमान करते हैं।  तब पता चलता है कि नियंत्रित मन तो एक सेकेंड में हजारों प्रकाशवर्ष की सीमाओं को पार कर सकता है। एक सेकेंड में जितनी कल्पनाएँ हो सकती हैं, उतनी बड़ी से बड़ी दूरियाँ मन पार कर सकने में समर्थ है। इस मानसिक चेतना के कहीं ठहरा दिया जाए तो भौतिक दृष्टि से अदृश्य होने पर भी विद्युत चुम्बकीय स्पंदनों की भांति उससे किसी भी अज्ञात स्थान की जानकारी ली जा सकती है। ब्रहांड के ज्ञान का और आत्माओं के परलोकगमन का आधार यह मन ही है। जब उस सूक्ष्मता में चित्तवृतियों का निरोध किया जाता है तो सारा ब्रह्माण्ड भ्रू मध्य में उतर आया दीखता है। तब योगी चाहे तो किसी मन चाहे ग्रह में प्रवेशकर उससे आत्मरूप हो सकता है, स्वर्ग अथवा मुक्ति भी प्राप्त कर सकता है।


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