अत्याचारी शासक एक चीते से अधिक भयंकर होता है

November 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अब से सैकड़ों वर्ष पहले की घटना है। एक बार चीन के महान् दार्शनिक कन्फ्यूशियस, अपने कुछ शिष्यों के साथ ताई नामक पहाड़ी पर से कहीं जा रहे थे। एक स्थान पर वे सहसा रुक गए। शिष्यों ने जिज्ञासु नेत्रों से उनकी ओर देखा। वे बोले—"कहीं पर कोई रो रहा है।" इतना कहकर वे रुदन को लक्ष्य करके चल पड़े। शिष्यों ने उनका अनुगमन किया।

कुछ दूर जाकर उन्होंने देखा एक स्त्री रो रही है। उन्होंने बड़ी सहानुभूति से रोने का कारण पूछा। स्त्री ने बताया कि इसी स्थान पर उसके पुत्र को एक चीते ने मार डाला। कन्फ्यूशियस ने कहा—"किन्तु तुम अकेली ही दीखती हो तुम्हारे परिवार के अन्य लोग कहाँ हैं ?" स्त्री ने कातर होकर बताया —"अब उसके परिवार में है ही कौन। इसी पहाड़ी पर उसके ससुर और पति को भी चीते ने फाड़ डाला था। "कन्फ्यूशियस ने बड़े आश्चर्य से कहा—"‘तो तुम इस भयंकर स्थान को छोड़ क्यों नहीं देती ?" स्त्री बोली—"इस स्थान को इसलिए नहीं छोड़ती कि यहाँ पर किसी अत्याचारी का शासन नहीं है।"

महात्मा कन्फ्यूशियस यह सुनकर चकित हो गए। उन्होंने शिष्यों की ओर उन्मुख होकर कहा—"यद्यपि, निश्चित रूप से यह स्त्री करुणा और सहानुभूति की अधिकारिणी है। तथापि इसकी बात ने हम लोगों को एक महान् सत्य प्रदान किया है। वह यह कि अत्याचारी शासक एक चीते से अधिक भयंकर होता है। अत्याचारी शासन में रहने की अपेक्षा अच्छा है कि किसी पहाड़ी अथवा वन में रह लिया जाए। किन्तु यह व्यवस्था सार्वजनिक नहीं हो सकती। अस्तु, जनता को चाहिए कि वह अत्याचारी शासन का समुचित विरोध करे और सत्ताधारी को अपना सुधार करने के लिए विवश करने का उपाय करे। अत्याचारी शासन को भय के कारण सहन करने वाला समाज किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर पाता। विकासहीन जीवन बिताता हुआ वह युगों तक नारकीय यातना भोगा करता है तथा सदा-सर्वदा अवनति के गर्त में ही पड़ा रहकर जिस-तिस प्रकार जीवन व्यतीत करता रहता है। अतः दुशासन को पलटने के लिए जनता सदैव जागरुक रहे।"


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles