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August 1971

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याद रक्खो कि सम्पूर्ण जगत एक शरीर है, तुम्हारा शरीर हाथ की तरह एक अवयव है, केवल उंगली या नख के तुल्य है यदि तुम सफल होना चाहते हो तो तुम्हें अपने आत्मा को अखिल विश्व के आत्मा से भिन्न और पृथक न समझना चाहिए हाथ के फलने-फूलने के लिए यह आवश्यक है कि वह समग्र शरीर के हितों से अपने हितों की संवेदना का अनुभव करे। दूसरे शब्दों में हाथ को यह समझना और अनुभव करना होगा कि उसका आत्मा केवल कलाई तक की सीमा से स्थिर नहीं है बल्कि उसे व्यावहारिक रूप से समग्र शरीर के आत्मा से अपने को एक और अभिन्न समझना पड़ेगा। समग्र शरीर के आत्मा को खिलाना हाथ के आत्मा को खिलाना है। जब तक तुम इस तथ्य का अनुभव और इस सत्य का आचरण न करोगे कि तुम और विश्व एक हो, कि मैं और ईश्वर एक हूँ, तब तक तुम्हें सफलता नहीं मिल सकती है। वियोग और वेदना के कीचड़ में जब तुम फंसते हो तब तुम सुख-विहीन और पीड़ा में लीन रहते हो। तु अपने आपको समग्र और सर्व अनुभव करते हो तो वास्तव में पूर्ण और सर्व हो जाते हो।


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