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August 1971

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विषय को जीतने का स्वर्ण-नियम राम-नाम अथवा ऐसा ही कोई अन्य मन्त्र होता है। अपनी-अपनी भावना के अनुसार किसी भी मन्त्र का जप किया जा सकता है।

मुझे लड़कपन से राम-नाम, सिखाया गया और मुझे बराबर उसका सहारा मिलता रहा, पर जिस किसी मन्त्र को हम जपें, उसमें हमें तल्लीन हो जाना चाहिए। निश्चित समय पर ही इष्ट मन्त्र का जप अधिक प्रभावकारी होता है, जप करते समय कण्ठ से ध्वनि हो किन्तु पास बैठा व्यक्ति भी ध्वनि सुन न सकें, आवाज कण्ठगत ही होती रहे। मन को एकाग्र करने की चेष्टा की जाये, ताकि एकाग्र भाव से जप चलता रहे, किन्तु फिर भी मन्त्र का जपे समय दूसरे विचार आवें, तो परवाह नहीं, यदि हम श्रद्धा रखकर मन्त्र का जप करते रहेंगे तो अन्त में सफलता अवश्य प्राप्त करेंगे, मुझे इसमें रत्तीभर भी शक नहीं। यह मन्त्र हमारी जीवन डोर होगा और हमको तमाम संकटों से बचायेगा। ऐसे पवित्र मन्त्र का उपयोग किसी आर्थिक लाभ के लिये हरगिज न करना चाहिए। यह भी याद रखना चाहिए कि तोते की तरह इस मन्त्र को न पढ़ें। इसमें अपनी आत्मा पूरी तरह से लगा देनी चाहिए। तोता यन्त्र की तरह मन्त्र को पढ़ते हैं, हमको उसे ज्ञान पूर्वक पढ़ना चाहिए।

-महात्मा गाँधी


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