फ्रांस के सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता पियरी मिसी में जहाँ अभिनय सम्बन्धी अनेक विशेषतायें थी वहाँ उसमें कई अभूतपूर्व चमत्कारिक विशेषतायें भी थी। वह अपनी इच्छानुसार ही शरीर के किसी भी हिस्से को कोई भी बाल हिला सकता था। बाल की नोक को खड़ा कर सकता था उन्हें पानी और आँधी के कारण गिरी हुई फसल की तरह लिटा सकता था, इतना ही नहीं कोमल सपाट बालों को वह जब चाहे अपनी इच्छा शक्ति द्वारा ही घुँघराले बना सकता था।
उसकी इन विशेषताओं ने अनेक विद्वान विचारकों, वैज्ञानिकों को कौतूहल में डाला और सोचने को विवश किया ऐसे कौन सी शक्ति है जो इस तरह की नियन्त्रणा है अनेक लोगों ने परीक्षण किये पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया इसी बीच डॉ. आगस्ट कैबेनीज को पियरी मिसी की इन विशेषताओं का पता चला तो उन्होंने भी जाकर परीक्षण किये। उन्होंने अपने जीवन-संस्मरण में उक्त घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि-इस तरह की विशेषता का कारण मिसी की कोई शारीरिक विलक्षणता नहीं अपितु उसका मानसिक संकल्प मात्र है उसने अपनी सुदृढ़ इच्छा शक्ति द्वारा बाल की पेशियों को इतना असाधारण रूप से विकसित कर लिया है कि उनसे कोई भी मनमाना काम ले सकता है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति द्वारा संकल्प द्वारा इससे भी अद्भुत कार्य कर सकता है उदाहरण के लिए सूक्ष्म दृश्य संस्थानों को विकसित कर दूर दर्शन, कर्णेंद्रिय को विकसित कर दूर श्रवण, घ्राणेंद्रिय को विकसित कर इच्छानुसार घ्राणा का सुख ले सकता है।
उपनिषद्कार मन की अपार शक्ति से परिचित थे तभी उन्होंने लिखा है-
यज्जाग्रतो दूर मुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति। दूरगंम ज्योतिषाँ ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिव संकल्प मस्तु॥ शिव संकल्पोपनिषत्॥
अर्थात्-जो मन जागता हुआ तथा सोता हुआ भी बहुत दूर तक जाया करता है तथा जो सभी इन्द्रियों में इस प्रकार चमकता है जैसे आकाश में स्थिति तारों के मध्य सूर्य। हमारा वह मन, हे परमेश्वर! शुभ संकल्प वाला हो।
ऊपर दिये गये उदाहरण की तरह ही मन की सुदृढ़ इच्छा शक्ति-संकल्प शक्ति का दूसरा प्रमाण थी-अब्बेविले (फ्राँस) की इक 12 वर्षीय लड़की एन्नेट फ्रेलान। इस अद्भुत लड़की ने भारतीय योगियों जैसी अद्भुत पराशक्ति प्राप्त की थी। उसने अधिकांश मौन रहने का नियम बनाया था, कभी बोलती भी तो अत्यन्त सारगर्भित संक्षिप्त और आवश्यकता से अधिक नहीं। वह कहा करती थी कि मनुष्य के बोलने का जितना प्रभाव होता है उससे अधिक प्रभाव उसके गहरे विचारों का होता है। वह इस कथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाणित भी करती थी।
कभी कोई व्यक्ति प्रश्न पूछता तो वह एकाग्र चित्त हो जाती फिर जो पूछा जाता उसका उत्तर उभरे लाल बड़े-बड़े अक्षरों में उसकी बाहों में, पैरों में तथा कन्धों में लिख जाता। इच्छा शक्ति से उत्पन्न यह लेखन कुछ देर द्रष्टव्य रहते धीरे-धीरे बिना कोई छाप छोड़े ही गायब हो जाते।
मानसिक संकल्प की ऐसी अद्भुत क्षमताओं का ज्ञान था तथा सृष्टिकार ने लिखा है-”मनोहात्मा मनो हि ब्रह्म मन उपास्वेति” (छान्दोग्य)
अर्थात्-यह मन ही आत्मा है, मन ही लोक और मन ही ब्रह्म है। इसलिये तुम मन की ही उपासना करो।