मृत्यु जिनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती

August 1971

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प्राणों की जिस प्रतिभा का लाभ मनुष्य को सृष्टि का सर्व श्रेष्ठ प्राणी होने के रूप में मिला, सृष्टि के अन्य प्राणी भी उस प्राण की महत्ता कि सृष्टि के नन्हें-नन्हें जीव भी अनभिज्ञ नहीं। बेशक वे प्राणों के स्वरूप की व्याख्या नहीं कर सकते, प्राणों का असीमित विकास और उसके फल स्वरूप प्राप्त होने वाली तेजस्विता, दीर्घजीवन प्रज्ञा बुद्धि का लाभ नहीं ले सकते पर उनमें भी इच्छा शक्ति इतनी दृढ़ होती हैं कि वे अपने मृत शरीर का बार-बार इस्तेमाल कर सकते हैं। परकाया प्रवेश की क्षमता भारतीय योगी ही अर्जित कर सके हैं पर प्रकृति में ऐसे अनेकों योगी हैं जो अपने ही मरे, कुचले टूटे-फूटे शरीर का अपने प्राणों के बल पर पुनः उपयोग कर लेते हैं।

जीवित स्पंज को लेकर टुकड़े-टुकड़े कर डालिये, उससे भी मन न भरे तो उन्हें पीसकर कपड़े से छान लीजिये। जिसे और कूट कपड़छन किये शारीरिक द्रव्य को पानी में डाल दीजिये शरीर के सभी कोष धीरे-धीरे फिर एक स्थान पर मिल जायेंगे और कुछ दिन बाद पूरा नया स्पंज फिर से अपनी जीवन यात्रा प्रारम्भ कर देगा। चुनौती है स्पंज की जब तक प्राण हैं तब तक मुझे शरीर के अवसान की कोई चिन्ता नहीं मरना जीना तो मात्र प्राणों का ही खेल है।

हाइड्रा, स्टेन्टर तथा प्लेनेरिया आदि जीवों में यह गुण होता है कि वे अपने शरीर के एक छोटे से अंश को (300 वे भाग तक छोटे टुकड़े को) ही तोड़कर नया शरीर बना देते हैं उन्हें गर्भ धारण, भ्रूण विकास और प्रजनन जैसी परेशानियाँ उठानी नहीं पड़तीं। लगता है प्राण तत्व की जानकारी होने के कारण ही प्राचीन भारत के तत्वदर्शी एक भ्रूण से 100 कौरव, घड़े से कुंभक और जघा सरस्वती पैदा कर दिया करते थे। अन्य एक कोषीय जीवों, में पैरामीशियम तथा यूग्लीना में भी एक कोष से विभक्त होकर दूसरा स्वस्थ कोष अर्थात् नया जीव पैदा कर देने की क्षमता होती है। यह घटनायें इस बात की साक्षी भी हैं कि ऐसी क्षमतायें अणु जैसी सूक्ष्म मनःस्थिति तक पहुँचने वाली क्षमता से ही प्रादुर्भूत हो सकती हैं।

टूटे हुये शारीरिक अंगों के स्थान पर नये अंग पैदा कर लेने की क्षमता ही कुछ कम विलक्षण नहीं ट्रइटन, सलामाण्डर, गोह अपने कटे हुए शरीर की क्षति पूर्ति तुरन्त नये अंग के विकास रूप में कर लेते हैं। अमेरिका, अफ्रीका में पाये जाने वाला शीशे का साँप जरा-सा छूने से टूट जाता है पर उसमें यह भी विशेषता होती है कि अपने टूटे हुये अंग को पुनः जोड़ लेता है। आइस्टर, शम्बूक घोंघा, समुद्री मकड़ी, मन्थर आदि जीवों में भी यह गुण होते हैं। स्टारफिश के पेट में कोई जहरीला कीड़ा चला जाये तो वह अपना पूरा पेट ही बाहर निकाल कर फेंक देती है ओर नया पाचन संस्थान तैयार कर लेती है पर सलामेंसिनानेस, साहलिस तथा काटो गास्टर जीव तो स्पंज की तरह होते हैं उन्हें कितनी ही मार डालिये, मरना उनके लिये जबर्दस्ती प्राण निकाल देने के समान होता है जहाँ दबाव समाप्त हुआ यह अपने प्राणों को फिर मरे मराये शरीर पर प्रवेश करके जीवन यात्रा प्रारम्भ कर देते हैं इतना सब देखने पर भी वैज्ञानिकों की वृद्धि को क्या कहा जाये जो यह कहते हैं कि प्राण कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं मात्र एक रासायनिक चेतना है।


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