भीरु बनकर नहीं निर्भय होकर जियें

August 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नैतिक गुणों में निर्भयता एक महान सद्गुण है। यह भी वह गुण है जिसके आधार पर मनुष्य कठिन काम करके दिखला देता है। संसार में जहाँ जो भी महान पुरुष हुए हैं उन सब में निर्भयता का सद्गुण अवश्य रहा है। साथ ही जो जितना अधिक निर्भय रहा है उसने उतना ही अधिक महान कार्य कर दिखाया है। महान पथ पर अग्रसर होने पर अथवा समाज की हानिकारक परम्पराओं को मिटने का बीड़ा उठाने वालों को आपत्तियों और जन-विरोधों का सामना करना ही पड़ता है। एक सच्चा सुधारक होता है और दूसरी ओर विरोधियों का बड़ा जन समुह जो कि उस सत्य पुरुष के प्राणों का ग्राहक बना होता है। तब भी वह व्यक्ति अपनी सच्ची बात कहता हुआ अन्ध परंपराओं पर कुठाराघात करता रहता है। इस प्रकार का प्रचण्ड साहस उसे किस बात से मिलता है। यह साहस उस निर्भयता का ही प्रसाई होता है जो कि उस महापुरुष की आत्मा में निवास करती है।

जहाँ एक भीरु व्यक्ति सत्य का पक्ष होने पर भी किसी एक विरोधी के सम्मुख नहीं ठहर पाता, वहाँ एक निर्भय पुरुष हजारों में सिंह की तरह दहाड़ता है। निर्भयता एक महान दैवी गुण है-जो मनुष्य को सिंह पुरुष बना देता है। भगवान बुद्ध, महावीर, दयानन्द, लूथर और महात्मा गाँधी प्रभृति महापुरुष निर्भयता के जीते जागते उदाहरण थे। इन्होंने अपने विरोध में लाख-लाख व्यक्तियों के होते हुए भी अपने सदुद्देश्यों को निर्भयता के बल पर पूरा कर दिखाया।

निर्भयता का भाव बड़ा प्रभावशाली होता है। एक निर्भय पुरुष अपने आस-पास के सारे लोगों को निर्भय बना देता है। जिस आबादी में एक भी निर्भय तथा साहसी व्यक्ति रहता है उस आबादी में गुण्डे लफंगों की गति विधियाँ नहीं चलने पातीं। उस एक सत्य पुरुष के प्रभाव से आबादी में साहस तथा निर्भयता का वातावरण छाया रहता है। लोग उसके आधार पर किसी भी बुराई से टक्कर लेने को तैयार रहते हैं। जिसे देश और समाज के नेता जितने निर्भय और साहसी होते हैं उसके जनगणना भी उसी अनुपात से निर्भय और साहसी बनते हैं। सेनापति का साहस और निर्भयता अपनी सेना को भी अपनी ही तरह निर्भय और साहसी बना देती है। कायर सेनापति बना देती है। कायर सेनापति के सैनिक भी भीरु और डरपोक होते हैं। सेनापति नेपोलियन जिस समय अपनी सेना के बीच आ जाता था, उस समय उसकी निर्भयता और साहस के प्रभाव से हर सैनिक अपने में नेपोलियन का ही आदर्श। अनुभव करने लगता था। निर्भय पुरुष सत्य के पक्ष में मौत के सम्मुख भी वक्ष तान कर बढ़ते चने जाते हैं।

निर्भयता मनुष्य की जीवन्त आत्मा का प्रमाण है। जिसकी आत्मा मर चुकी होती है, उसका तेज समाप्त हो गया होता है वह मनुष्य कायर बन जाता है। आत्मा की तेजस्विता सदाचार से बढ़ती और बनी रहती है। जब मनुष्य सदा सत्य ही बोलता है, सत्य व्यवहार करता है और सत्य विचार ही करता है तो उसकी आत्मा का तेज प्रखर होता है और उसी के अनुसार ही उसकी निर्भयता का भाव भी विकसित हो जाता है। जो झूठा, छली और दम्भी होता है वह ऊपर से एक बार निर्भयता का नाटक भले ही कर दिखाए पर वास्तव में वह होता बड़ा कायर है। अपराध वृत्ति के लोग निर्भय रह ही नहीं सकते यह असम्भव है।

जहाँ दुराचार कायरता का दोष पैदा करता है, वहाँ कायरता मनुष्य को अपराधी बना देती है। जो व्यक्ति कायर और साहसहीन होता है वह विरोध और विपत्ति के भय से खुलकर पुरुषार्थ के क्षेत्र में नहीं उतरता। निर्भय और साहसी व्यक्ति को कपट का सहारा नहीं लेना पड़ता। वह अपनी उन्नति के लिए खुलकर पुरुषार्थ करता है और खेम ठोककर मैदान में असत्य तथा अनाचार का विरोध करता है।

निर्भय और साहसी व्यक्तियों का ही यह काम है कि समाज में दुष्टताएं तथा दुष्प्रवृत्तियाँ छाने नहीं पातीं अन्यथा समाज के दुष्ट व्यक्ति सारे समाज को ही नरक निवास बना डालें। वास्तव में जब कायर और कुचालियों की संख्या समाज में बढ़ जाती है तब समाज बड़ी गहरी विपत्ति में फंस जाता है। वह न केवल निर्बल और संत्रस्त ही बन जाता है बल्कि उसके नष्ट हो जाने तक की आशंका पैदा हो जाती है। किन्तु धन्यभाव साहसी पुरुषों को शतशः धन्यवाद है कि वे समाज के किसी कोने से उठकर आते हैं और फैली हुई बुराइयों को न केवल ललकारते ही हैं बल्कि उनको जड़मूल से उखाड़कर फेंक देते हैं। यह निर्भय और साहसी व्यक्तियों तक ही सौभाग्य होता है कि वे सदुद्देश्यों के लिये न केवल कष्ट ही सह लेने की शक्ति रखते हैं कि बल्कि उसके लिये हँसते-खेलते हुए बलिदान भी हो जाते हैं।

भय अथवा कायरता बहुत बड़ा दोष है। जिसे यह घेर लेता है उसका जीवन बेकार कर देता है। भीरु तथा कायर पुरुष संसार में कोई महान कार्य तो नहीं ही कर सकते वे व्यक्तिगत सामान्य जीवन भी सुख-शान्ति से नहीं बिता पाते। कायर और डरपोक लोग संसार में सबसे ज्यादा सताये जाते हैं। जरा-जरा सी बात में हर कोई उन्हें आँख दिखला और डरा धमका सकता है। कायर और क्लीव व्यक्तियों के ही अधिकारों का हरण किया जाता है। कायर स्वभाव के व्यक्ति संसार में पग-पग पर डरते-मरते रहते हैं। उन्हें रास्ता चलते गुण्डों लफंगों का भय सताता है। रात में अकारण ही चोर डाकुओं की आशंका उनकी नींद का हरण कर लेती है। किसी से यदि कुछ कहा सुनी हो गई है तब तो उनका सारा समय डरते-डरते ही बीता रहता है। कायर व्यक्ति स्वभाव से ही अपने को सबसे निर्बल और असहाय समझ लेता है। कायरता और भीरुता बड़ा भयानक दोष है। यह आत्मवान् व्यक्ति के लिए एक कलंक है। भीरुता को मनीषियों ने मनुष्य की जीवित मृत्यु बतलाया है। कहा है कि जो कायर होता है जिससे वह जीवन का कोई आनन्द नहीं उठा पाता।

कायरता की उत्पत्ति निर्बलता तथा चरित्रहीनता से होती है। जो मनुष्य असंयम तथा असावधानी द्वारा अपना स्वास्थ्य नष्ट कर डालता है, शरीर की शक्ति समाप्त कर डालता है वह तो स्वभावतः सबसे भयभीत ही रहेगा। जिसके शरीर में शक्ति नहीं बल और सामर्थ्य नहीं वह कदम-कदम पर हर व्यक्ति से डरता बचता ही चलेगा। यदि कोई उसे अकारण भी दबाएगा तो भी सहन कर लेगा। निर्बलता के कारण अपने स्वत्वों को भी मजबूर होकर छोड़ देता है। संसार में निर्भय होकर रहने के लिये शक्ति की नितान्त आवश्यकता है।

इसके साथ ही बहुत बार ऐसे लोगों को भी कायर तथा भीरु पाया जाता है जो देखने सुनने में बड़े ही स्वस्थ बलिष्ठ विदित होते हैं। ऐसे लोगों की भीरुता का कारण मानसिक दौर्बल्य होता है। जिसकी उत्पत्ति चरित्रहीनता से होती है। जो चोर, व्यभिचारी अथवा असत्यनिष्ठ है, उसका हृदय बहुत कमजोर और आत्मा बड़ी मलिन होती है। उसका पाप उसे भीतर ही भीतर दमित करके खोखला बना देता है। जब तक मनुष्य का पाप खुलता नहीं उसकी आत्मा ही उसे त्रस्त तथा भयभीत बनाए रखती है और जब समय आने पर भंडा फूटता है तब तो उसके भय का पारावार नहीं रहता। समाज की कोप दृष्टि उसके प्राण सोख लेती है और वह जड़वत् किंकर्तव्य विमूढ़ होकर पूरी तरह से निस्सहाय तथा निरुपाय हो जाता है। उस पर चारों ओर से निन्दा, लाँछन और अपमान की बौछार होने लगती है।

भीरु स्वभाव के व्यक्तियों के जीवन की सारी प्रगति रुक जाती है। उन्हें पग-पग पर बाधायें और विरोध घेरते रहते हैं। कायर व्यक्ति प्रायः परावलंबी बन कर दूसरे की आड़ में जीवन चलाने की कोशिश करते हैं कायर व्यक्तियों को स्वाधीनता में नहीं पराधीनता में ही अपनी सुरक्षा तथा सुख-शान्ति मालूम होती है। कारण यह है कि स्वावलम्बन के लिए जिस शक्ति, साहस और दृढ़ता की आवश्यकता होती है कायर व्यक्ति में उसका अभाव रहता है। इस प्रकार का पराधीन तथा परावलम्बी व्यक्ति संसार में उन्नति ही क्या कर सकता है। कायर व्यक्ति स्वभावतः निराश तथा निरुत्साह बना रहता है। प्रथम तो वह किसी प्रगति के लिए कदम उठाते डरता है, और यदि उठाता भी है तो असफलता का भय उसे पहले ही सताने लगता है। जरा सा विरोध अथवा असहयोग देखकर ऐसे कायर तथा साहसहीन व्यक्ति से उन्नति अथवा प्रगति की आशा नहीं की जा सकी।

यश, सम्मान, प्रतिष्ठा तथा समृद्धि के उन्नत शिखर पर वे ही चढ़ सकते हैं जो अन्दर बाहर दोनों ओर से निर्भय तथा साहसी होते हैं। निर्भयता एक तेजस्वी गुण है। जिसकी प्राप्ति सत्य तथा सदाचार से होती है। सदाचारी व्यक्ति पवित्र जीवनयापन के कारण शरीर तथा मन दोनों से स्वस्थ रहता है। सत्य उसकी आत्मा को प्रकाशित बनाए रहता है जिससे उसे निराशा तथा निरुत्साह का अन्धकार नहीं घेर पाता। सदाचारी के लिए संसार में कहीं भी भय उसे छूने तक नहीं पाता। सत्यनिष्ठ सदाचारी की आत्मा में निर्भयता, साहस तथा उत्साह की हिलोरें उठनी और उसके व्यक्तित्व की प्रभावशाली बनाती रहती है। मानव जीवन की सार्थकता इसी बात में है कि उसको हर प्रकार से निर्भयतापूर्वक यापन किया जाय। कायरता जीवित मृत्यु के समान होती है। वह मनुष्य का सारा सुख सारा चैन और सारा अधिकार अपहृत करा देती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118